‘आकाश’ : वास्तविकता या अति आशावाद?

मेरा बेटा वल्कल, सूचना प्रौद्योगिकी स्नातक (आई. टी., बी. ई.), एम. बी. ए. (ई-गवर्नेन्स) है और जैसा कि चलन है, एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में नौकरी कर रहा है। कल शाम मुझे उसका एक मेल मिला। ‘आकाश’ की बुकिंग, 14 दिनों में लाख हो जाने का समाचार वह कल शाम को ही पढ़ चुका था। वल्कल का यह मेल इस अप्रत्याशित बुकिंग को लेकर ही है।

सूचना प्रौद्योगिकी ज्ञान की मेरी दुनिया बहुत ही छोटी और सीमित है। रवि रतलामीजी यदि मेरे ब्लॉग-जनक हैं तो वल्कल मेरे ब्लॉग का रखरखाव करनेवाला। वह मेरी, अकस्मात उपजीं, वल्कल की भाषा में, ‘छोटी-मोटी’ समस्याएँ (जिनके उपजते ही मेरे हाथ-पाँव फूल जाते हैं) हल करता रहता है।

वल्कल के इस मेल की विषय वस्तु मेरे लिए ‘अजूबा’ ही है। किन्तु इसकी जिस बात ने मुझे आकर्षित, सुखद रूप से विस्मित और आश्वस्त किया वह है - भ्रष्टाचार, स्वास्थ्य-शिक्षा जैसी, जन सामान्य से जुड़ी राष्ट्रीय समस्याओं तथा देश की आधी आबादी की स्थिति का उल्लेख और इनके प्रति व्यक्त उसकी चिन्ता। इसके साथ ही साथ, ‘सूचना के अधिकार’ को लेकर उसका आशावादी भरोसा।
आशावादी और नौजवानों को देश का भविष्य माननेवाला होते हुए भी मुझे लगता रहता है कि हमारे नौजवान ‘पेकेज केन्द्रित’ हो कर रह गए हैं। वातानुकूलित कमरों में (लकड़ी के खाँचों में) बन्द ये नौजवान केवल कम्प्यूटर के पर्दे पर जिस तरह से खुद को व्यक्त करते हैं, वह सब मुझे प्रायः ही ‘फैशन’ से अधिक नहीं लगता। (यह लिखते समय मैं, अण्णा हजारे के आन्दोलन में सड़कों पर उतरे नौजवानों को भीली-भाँति देख रहा हूँ।) ऐसे में, मेरी इस ‘खूसट धारणा’ को भंग करने वाले, वल्कल के इस मेल ने मेरे भरोसे और आशावाद को बढ़ाया ही है।
चूँकि ‘आकाश’ और इसकी उपयोगिता के बारे में मेरी जानकारी ‘शून्य’ है, इसलिए वल्कल का यह मेल यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। इसमें केवल वैयाकरणिक त्रुटियाँ और वाक्य रचना सुधारी गई हैं। बाकी सब ‘जस का तस’ है।
मेरी उत्सुकता केवल यही है कि वल्कल की बातें ‘अति आशावाद’ हैं या वास्तविकता?
(मेल में उल्लेखित ‘बबली’, मेरे साले की बिटिया ‘नवनी’ का घरेलू नाम है जिसका विवाह 17 फरवरी को हो रहा है।)


यह टट्टू है बड़े काम का


पापा,


प्रणाम,

आज यह समाचार पढ़ कर तबीयत खुश हो गई। ऐसा इसलिए नहीं कि मैं भी इन 14 लाख लोगो में शामिल हूँ, बल्कि इसलिए कि अब digital divide के दिन गिनती के रह गए हैं। यह आँकड़ा 14 करोड़ भी हो सकता था यदि बुकिंग केवल ऑनलाइन नहीं होती। मात्र ढाई-तीन हजार रुपये दे कर लोग इन्टरनेट से न केवल जुड़ जायेंगे बल्कि कहीं से भी जुड़ने की आजादी पा लेंगे। यह वो ‘जादू का पटिया’ है जो आने वाले समय में व्यवस्था की खड़ी हुई खटिया को बैठने लायक बना देगा।


इसके बारे में आपने अभी तक जो भी पढ़ा, शायद कुछ भी समझ नहीं आया हो, तो पहले यह बता दूँ कि आज की तारीख मे ‘आकाश’ सब से सस्ता टेबलेट है। टेबलेट, लैपटॉप और मोबाइल के बीच का ‘टट्टू’ है जिसे खरीदने वालों और बनाने वालों, दोनों की होड़ लगी हुई है।

इस ‘टट्टू’ को बनाने वाली कम्पनी को भी आशा नहीं थी की लोग इसको इस तरह, ‘हाथों हाथ’ नहीं, ‘सर माथे पर’ ले लेंगे। इसके चलते स्कूली शिक्षा इतनी सस्ती हो सकती है जिसकी आप और हम कल्पना भी नहीं कर सकते। शानदार बात यह है कि सस्ती होने के बावजूद शिक्षा का स्तर अधिक व्यापक और उन्नत हो जाएगा। गांवो में शिक्षा का प्रचार और स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारियों का प्रसार भी काफी आसान हो जायेगा, खास कर जीवन रक्षा सम्बन्धी परामर्श जो अभी गाँवों मे या तो है ही नहीं, और यदि है तो गिनती के लोगो की पहुँच में ही।


‘टट्टू’ के सस्ता होने के एक बड़ा फायदा देश की उस आधी आबादी को भी मिलेगा जिसके सपने, ललक और जिज्ञासा को ‘फालतू’ कह कर चूल्हे तक ही सीमित कर दिया जाता है। इस ‘टट्टू’ में वह क्षमता है जो बिनी किसी और की सहायता से इस आधी आबादी के लिए ज्ञान खोज लाएगा।


ITR के लिए तो यह ‘टट्टू’, ‘राम का हनुमान’ साबित होगा। इसकी मदद से ‘ITR का राम’ अब गरीब को भी सहजता से मिलेगा। कम्प्यूटर न होने की लाचारी और बिजली कम होने की बीमारी से यह ‘टट्टू’ निजात दिलाएगा। ‘टट्टू’ बड़े काम है। इसकी और खूबियाँ कभी फुर्सत से।

अभी हाल ही में मेरी एक मान्यता टूटी। अभी तक मैं ये समझता था कि मँहगे मोबाइल लोग बस दिखाने के लिए रखते हैं, यह जाने बिना कि वे इस से क्या कर सकते हैं।


बबली के विवाह की खरीददारी के सिलसिले में एक दूकान पर मैंने दूकान वाले के पास iPhoe4 देखा। इसकी कीमत कुछ 30-35 हजार के बीच है। दूकान से निकलते वक्त, जूते की लेस बाँधते हुए मैंने ऐसे ही कहा - ‘मोबाइल तो बड़ा एडवांस्ड है आपका! आपका है या आपके बालक का?’ कहने भर की देर थी, दुकानदार छूटते ही बोला ‘साब! यह तो मेरी आँखें है।’ पहले क्षण तो कुछ समझ में नहीं आया कि वे क्या कर रहे हैं। किन्तु इतनी देर मे उन्होंने अपना मोबाइल मेरी तरफ किया और बोले ‘ये देखो साब! मैं अपनी पाँचों दूकानों पर इस से निगरानी करता हूँ कि काम हो रहा है या नहीं।’ मैंने पूछा - ‘फोन करके?’ वो बोले - ‘नहीं, देख कर।’ दूसरे जूते की लेस बाँधने का उपक्रम छोड़ कर मैं उनके थोडा नजदीक गया। तब तक वे अपने मोबाइल की एक एप्लीकेशन शुरु कर चुके थे। उन्होंने बताया कि उनकी दो दुकानें उज्जैन में और तीन इन्दौर में हैं। इतनी ही देर में मोबाइल की स्क्रीन पर पाँच कैमरों से आई हुई तस्वीरें दिखने लग गई। ये सभी तस्वीरें लाइव टेलीकास्ट थीं, उनकी पाँच दुकानों की, जिनमें दुकान पर खड़े उनके कर्मचारी और आए ग्राहक दिख रहे थे। मैं भी खुद को देख पा रहा था।

मैंने बहुत ही खुश मन से उनकी प्रशंसा की और बोला कि मैं उनसे सीखने आता रहूँगा। मन ही मन यह भी सोचा कि काश! यह दुकानदार किसी जिले का कलेक्टर या एसपी होता तो, या तो भ्रष्टाचार होने नहीं देता और अगर होने देता तो आटे और नमक का अनुपात तो बनाये रखता!


आपका बेटा,
‍वल्‍कल

9 comments:

  1. Sutradhar/Jimmedarlog bhi iska upyog karenge bhrastachar ki roktham/ nigrani ke liye kam, bhrastachar ki RAKAM par nigrani aur uski Bandar-bant ke liye adhik. Chinje aur niyam to jan-manas ki bhalai ke liye hi bante hain,par har koi unka upyog apni-apni jaroorat ke mutabik badal leta hai.

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  2. गजब वल्कल !! ... तुम(सस्नेह) तो जबर्दस्त ब्लॉगर वाली कटेगरी रखते हो भैया... मेल भी लिखा तो एक पोस्ट जैसा ठेल दिया... बहुत खूब... वैसे अभी आकाश की तकनीकी सक्षमता उतनी बेहतर नहीं है कि उसे 'आँख' बनाया जा सके... लेकिन दो चार महीने मे उसके अगले वर्जन जरूर उपयोगी होगा.... संभव है 2012 की मार्केट टैबलेट प्रतिस्पर्धा के लिए जाना जाय। अभी आ रहे इलेक्ट्रानिक पटिया की तकनीकी क्षमता और आने वाले अगले संस्कारण पर एक और मेल का इंतज़ार रहेगा... बहुत बहुत शुभ कामनाएँ

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  3. पहली बात...
    आकाश के एडवांस्ड वर्सन की प्री-बुकिंग तो मैंने भी कर दी है. इतना सस्ता कहीं नहीं, और कुछ तो काम आएगा ही. और ये आपके एलआईसी के कार्यों के लिए भी बहुउपयोगी हो सकता है.

    आखिरी बात...
    (कलेक्टर एस पी वाली, क्योंकि सरकारी महकमे में मैं रह चुका हूं...)अच्छा है, उन्हें इसकी यह उपयोगिता नहीं पता (या चलाना नहीं आता), अन्यथा इसका उपयोग वे यह सुनिश्चित करने में लगाते कि मातहतों से उनका सही हिस्सा उन तक पहुँच रहा है कि नहीं, और कहीं वे उनके नाम पर उगाही कर ज्यादा हिस्सा हजम तो नहीं कर ले रहे हैं!

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  4. बड़ा ही सटीक लिखा है, पता नहीं पर आकाश के प्रति आशा बल्ली नहीं हो पा रही हैं।

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  5. मुझे भी मोबाइल से ही चिढ थी. अब समझ में आ रहा है. सुन्दर और ज्ञानवर्धक पोस्ट. नववर्ष आपके लिए मंगलमय हो.

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  6. कलेक्टर/एसपी इन सुविधाओं का दुरुपयोग करेंगे ये विचार मेरे दिमाग मे भी कौंधा था, लेकिन तकनीक जब हर एक के हाथ मे उपलब्ध होगी तो बहुत सारे 'लोकल अन्ना' भी उसका उपयोग करेंगे, जो की तकनीक का दुरुपयोग असंभव नहीं तो कठीन तो कर ही देगा. आप सभी के प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद. बाज़ार में उपलब्ध 'टट्टूओं' को ले कर कुछ जानकारी उपलब्ध करने की कोशिश जल्दी ही करूँगा. ये 'टट्टू' वाकई बहुत काम का है, पापा के ब्लॉग पर इतने लोग प्रसिद्धि पाते है, आज ये 'गधा' 'टट्टू' के कारण जगह पा गया :)

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  7. H C JOSHI, BM-LIC-BO :NAGDAJanuary 7, 2012 at 5:19 PM

    ये ''बोडॅम '' क्या होता है. और ''आकाश " वाली बात मे और जोडना चाहुंगा कि " हमारी शाखा के एक ' CM’s Club ' सदस्य ( I am unable to write adhyaksh in hindi ) एवं मुख्य जीवन वीमा सलाहकार है श्री अवधेशजी गुप्ता, अभी मेरे यहा आने के कूछ समय पश्चात ही ( इसमे मैरा कोई योगदान नही है, मात्र सयोग है ) उन्होने आपने कार्यालय को 'ओन लाइन ' कर दिया है. वे कहीं भी रहे , उनके कार्यालय मे क्या हो रहा है या कौन ग्राहक आया हुआ है आदि उनके मोबाइल मे लाइव दिखता रहता है, है ना नागदा जैसी छोटी जगह पर भी विकास ! और खर्च भी बहुत ज्यादा नही हुआ है.

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  8. वल्‍कल की टिप्‍पणी मैंने ई-मेल से श्री रवि रतलामी को भेजी थी। उत्‍तर में, वल्‍कल के नाम उनकी टिप्‍पणी -


    प्रिय वल्कल,
    आपका कहना सही है. दरअसल मैंने जो लिखा है, वो मेरे भीतर का बैठा साहित्यिक व्यंग्यकार ही है, जो सिक्के के खोटे स्वरूप को ही देखना पसंद करता है. क्या करें!

    और, आपके लिखे आलेखों का बेसब्री से इंतजार रहेगा.

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