
सूचना प्रौद्योगिकी ज्ञान की मेरी दुनिया बहुत ही छोटी और सीमित है। रवि रतलामीजी यदि मेरे ब्लॉग-जनक हैं तो वल्कल मेरे ब्लॉग का रखरखाव करनेवाला। वह मेरी, अकस्मात उपजीं, वल्कल की भाषा में, ‘छोटी-मोटी’ समस्याएँ (जिनके उपजते ही मेरे हाथ-पाँव फूल जाते हैं) हल करता रहता है।
वल्कल के इस मेल की विषय वस्तु मेरे लिए ‘अजूबा’ ही है। किन्तु इसकी जिस बात ने मुझे आकर्षित, सुखद रूप से विस्मित और आश्वस्त किया वह है - भ्रष्टाचार, स्वास्थ्य-शिक्षा जैसी, जन सामान्य से जुड़ी राष्ट्रीय समस्याओं तथा देश की आधी आबादी की स्थिति का उल्लेख और इनके प्रति व्यक्त उसकी चिन्ता। इसके साथ ही साथ, ‘सूचना के अधिकार’ को लेकर उसका आशावादी भरोसा।
आशावादी और नौजवानों को देश का भविष्य माननेवाला होते हुए भी मुझे लगता रहता है कि हमारे नौजवान ‘पेकेज केन्द्रित’ हो कर रह गए हैं। वातानुकूलित कमरों में (लकड़ी के खाँचों में) बन्द ये नौजवान केवल कम्प्यूटर के पर्दे पर जिस तरह से खुद को व्यक्त करते हैं, वह सब मुझे प्रायः ही ‘फैशन’ से अधिक नहीं लगता। (यह लिखते समय मैं, अण्णा हजारे के आन्दोलन में सड़कों पर उतरे नौजवानों को भीली-भाँति देख रहा हूँ।) ऐसे में, मेरी इस ‘खूसट धारणा’ को भंग करने वाले, वल्कल के इस मेल ने मेरे भरोसे और आशावाद को बढ़ाया ही है।
चूँकि ‘आकाश’ और इसकी उपयोगिता के बारे में मेरी जानकारी ‘शून्य’ है, इसलिए वल्कल का यह मेल यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। इसमें केवल वैयाकरणिक त्रुटियाँ और वाक्य रचना सुधारी गई हैं। बाकी सब ‘जस का तस’ है।
मेरी उत्सुकता केवल यही है कि वल्कल की बातें ‘अति आशावाद’ हैं या वास्तविकता?
(मेल में उल्लेखित ‘बबली’, मेरे साले की बिटिया ‘नवनी’ का घरेलू नाम है जिसका विवाह 17 फरवरी को हो रहा है।)
आशावादी और नौजवानों को देश का भविष्य माननेवाला होते हुए भी मुझे लगता रहता है कि हमारे नौजवान ‘पेकेज केन्द्रित’ हो कर रह गए हैं। वातानुकूलित कमरों में (लकड़ी के खाँचों में) बन्द ये नौजवान केवल कम्प्यूटर के पर्दे पर जिस तरह से खुद को व्यक्त करते हैं, वह सब मुझे प्रायः ही ‘फैशन’ से अधिक नहीं लगता। (यह लिखते समय मैं, अण्णा हजारे के आन्दोलन में सड़कों पर उतरे नौजवानों को भीली-भाँति देख रहा हूँ।) ऐसे में, मेरी इस ‘खूसट धारणा’ को भंग करने वाले, वल्कल के इस मेल ने मेरे भरोसे और आशावाद को बढ़ाया ही है।
चूँकि ‘आकाश’ और इसकी उपयोगिता के बारे में मेरी जानकारी ‘शून्य’ है, इसलिए वल्कल का यह मेल यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। इसमें केवल वैयाकरणिक त्रुटियाँ और वाक्य रचना सुधारी गई हैं। बाकी सब ‘जस का तस’ है।
मेरी उत्सुकता केवल यही है कि वल्कल की बातें ‘अति आशावाद’ हैं या वास्तविकता?
(मेल में उल्लेखित ‘बबली’, मेरे साले की बिटिया ‘नवनी’ का घरेलू नाम है जिसका विवाह 17 फरवरी को हो रहा है।)
यह टट्टू है बड़े काम का
पापा,
प्रणाम,
आज यह समाचार पढ़ कर तबीयत खुश हो गई। ऐसा इसलिए नहीं कि मैं भी इन 14 लाख लोगो में शामिल हूँ, बल्कि इसलिए कि अब digital divide के दिन गिनती के रह गए हैं। यह आँकड़ा 14 करोड़ भी हो सकता था यदि बुकिंग केवल ऑनलाइन नहीं होती। मात्र ढाई-तीन हजार रुपये दे कर लोग इन्टरनेट से न केवल जुड़ जायेंगे बल्कि कहीं से भी जुड़ने की आजादी पा लेंगे। यह वो ‘जादू का पटिया’ है जो आने वाले समय में व्यवस्था की खड़ी हुई खटिया को बैठने लायक बना देगा।
इसके बारे में आपने अभी तक जो भी पढ़ा, शायद कुछ भी समझ नहीं आया हो, तो पहले यह बता दूँ कि आज की तारीख मे ‘आकाश’ सब से सस्ता टेबलेट है। टेबलेट, लैपटॉप और मोबाइल के बीच का ‘टट्टू’ है जिसे खरीदने वालों और बनाने वालों, दोनों की होड़ लगी हुई है।
इस ‘टट्टू’ को बनाने वाली कम्पनी को भी आशा नहीं थी की लोग इसको इस तरह, ‘हाथों हाथ’ नहीं, ‘सर माथे पर’ ले लेंगे। इसके चलते स्कूली शिक्षा इतनी सस्ती हो सकती है जिसकी आप और हम कल्पना भी नहीं कर सकते। शानदार बात यह है कि सस्ती होने के बावजूद शिक्षा का स्तर अधिक व्यापक और उन्नत हो जाएगा। गांवो में शिक्षा का प्रचार और स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारियों का प्रसार भी काफी आसान हो जायेगा, खास कर जीवन रक्षा सम्बन्धी परामर्श जो अभी गाँवों मे या तो है ही नहीं, और यदि है तो गिनती के लोगो की पहुँच में ही।
‘टट्टू’ के सस्ता होने के एक बड़ा फायदा देश की उस आधी आबादी को भी मिलेगा जिसके सपने, ललक और जिज्ञासा को ‘फालतू’ कह कर चूल्हे तक ही सीमित कर दिया जाता है। इस ‘टट्टू’ में वह क्षमता है जो बिनी किसी और की सहायता से इस आधी आबादी के लिए ज्ञान खोज लाएगा।
ITR के लिए तो यह ‘टट्टू’, ‘राम का हनुमान’ साबित होगा। इसकी मदद से ‘ITR का राम’ अब गरीब को भी सहजता से मिलेगा। कम्प्यूटर न होने की लाचारी और बिजली कम होने की बीमारी से यह ‘टट्टू’ निजात दिलाएगा। ‘टट्टू’ बड़े काम है। इसकी और खूबियाँ कभी फुर्सत से।
अभी हाल ही में मेरी एक मान्यता टूटी। अभी तक मैं ये समझता था कि मँहगे मोबाइल लोग बस दिखाने के लिए रखते हैं, यह जाने बिना कि वे इस से क्या कर सकते हैं।
बबली के विवाह की खरीददारी के सिलसिले में एक दूकान पर मैंने दूकान वाले के पास iPhoe4 देखा। इसकी कीमत कुछ 30-35 हजार के बीच है। दूकान से निकलते वक्त, जूते की लेस बाँधते हुए मैंने ऐसे ही कहा - ‘मोबाइल तो बड़ा एडवांस्ड है आपका! आपका है या आपके बालक का?’ कहने भर की देर थी, दुकानदार छूटते ही बोला ‘साब! यह तो मेरी आँखें है।’ पहले क्षण तो कुछ समझ में नहीं आया कि वे क्या कर रहे हैं। किन्तु इतनी देर मे उन्होंने अपना मोबाइल मेरी तरफ किया और बोले ‘ये देखो साब! मैं अपनी पाँचों दूकानों पर इस से निगरानी करता हूँ कि काम हो रहा है या नहीं।’ मैंने पूछा - ‘फोन करके?’ वो बोले - ‘नहीं, देख कर।’ दूसरे जूते की लेस बाँधने का उपक्रम छोड़ कर मैं उनके थोडा नजदीक गया। तब तक वे अपने मोबाइल की एक एप्लीकेशन शुरु कर चुके थे। उन्होंने बताया कि उनकी दो दुकानें उज्जैन में और तीन इन्दौर में हैं। इतनी ही देर में मोबाइल की स्क्रीन पर पाँच कैमरों से आई हुई तस्वीरें दिखने लग गई। ये सभी तस्वीरें लाइव टेलीकास्ट थीं, उनकी पाँच दुकानों की, जिनमें दुकान पर खड़े उनके कर्मचारी और आए ग्राहक दिख रहे थे। मैं भी खुद को देख पा रहा था।
मैंने बहुत ही खुश मन से उनकी प्रशंसा की और बोला कि मैं उनसे सीखने आता रहूँगा। मन ही मन यह भी सोचा कि काश! यह दुकानदार किसी जिले का कलेक्टर या एसपी होता तो, या तो भ्रष्टाचार होने नहीं देता और अगर होने देता तो आटे और नमक का अनुपात तो बनाये रखता!
आपका बेटा,
वल्कल
वल्कल