यह चित्र, मेरे सामने रहने वाले बाबू का है ।
मुझे बिस्तर पर पड़े आज नौंवाँ दिन है । दो-तीन दिनों से 'कामचलाऊ काम-काज' शुरु किया है । मेल बाक्स खोलना, आवश्यक सन्देशों के उत्तर देना, जी हो गया तो (ई-मेल से मिले) चिट्ठों पर टिप्पणी कर देना । चिकित्सक कहते हैं - ‘आपको कुछ नहीं हुआ है ।’ उन पर अवि”वास करने का कोई कारण नहीं किन्तु मैं ठीक नहीं हूँ ।
करने के नाम पर इन दिनों दो ही काम किए । अखबार इस तरह पढ़े मानो प्रूफ रीडर का काम कर रहा होऊँ और टेलीविजन इस तरह देखा मानो यह अजूबा पहली ही बार सामने आया हो । (एक विज्ञापन में मुझे अपने काम की बात दिखाई दी । वह मेरी एक पोस्ट का विषय बनेगा ।) लेकिन इन दोनों कामों ने भी खूब थका दिया । लगा कि और कामों की अपेक्षा इन दोनों कामों में, जल्दी और ज्यादा थकान आती है । सो, बीच-बीच में, बिस्तर से उठकर दरवाजे तक चक्कर लगाता रहा, बार-बार ।
इस 'बार-बार' के चक्कर में ही बाबू पर ध्यान गया ।
इस 'बार-बार' के चक्कर में ही बाबू पर ध्यान गया ।
अभी सवा दो साल का भी नहीं है बाबू । पिता बैंक कर्मचारी हैं और माँ गृहिणी । पिता के बैक जाने के बाद बाबू अधिकांश समय, इसी तरह, बन्द 'गेट'‘ के पीछे खड़ा रहता है - लोगों को आते-जाते देखते हुए । इस अवस्था वाले बच्चे तो बिच्छू की तरह चंचल और सक्रिय रहते हैं । फिर बाबू ऐसे चुपचाप क्यों खड़ा रहता है ? कारण जानने में न तो प्रतीक्षा करनी पड़ी और न ही कोई कठिनाई झेलनी पड़ी ।
मेरी गली में कोई तीस मकान हैं जिनमें किरायेदारों सहित कोई पैंतीस परिवार रहते हैं । लेकिन किसी भी परिवार में ऐसे बच्चे नहीं हैं जिनके साथ बाबू खेल सके । इससे छोटा बच्चा तो खैर कोई है ही नहीं । जो भी हैं, स्कूल जाने वाले - बाबू से भरपूर बड़े । वे जब शाम को खेल रहे होते हैं तो बाबू उन्हें देखता रहता है, उनके साथ खेलने की जिद नहीं करता । शायद इतना सयाना हो गया है कि जानता है कि वे इसे अपने साथ नहीं खेलाएँगे ।
बच्चों को खेलते हुए देखते रहने वाला, इतना छोटा बच्चा इस तरह, बन्द ‘गेट’ के पीछे चुपचाप खड़ा, मुझे अच्छा नहीं लगता । दोपहर में, जब गली सुनसान हो जाती है, तब दो-एक बार मैं ने बाबू के साथ खेलने की कोशिश की तो बाबू ने मुझे हैरत से देखा और भाग कर, माँ के पास चला गया ।
बाबू के माता-पिता, यथेष्ठ समृध्द हैं । घर में कोई कमी नहीं है । बाबू के लिए पर्याप्त खिलौने घर में हैं । लेकिन बाबू उनसे नहीं खेलता । माँ, बाबू के सामने खिलौने रखती है तो वह एक बार उनकी तरफ देख कर मुँह फेर लेता है ।
बाबू अकेला है । घर में भी और गली-मोहल्ले में भी । उसे कोई संगी चाहिए । संगी अर्थात् भाई या बहन । मेरी पत्नी से मालूम हुआ कि बाबू के माता-पिता अभी इस बारे में सोच भी नहीं रहे हैं । उनका कहना है कि अभी वे बाबू की पढ़ाई की व्यवस्थाओं को लेकर चिन्तित हैं । इस कस्बे में उन्हें ऐसा कोई स्कूल नजर नहीं आता जो बाबू का ‘कैरीयर’ बनाने में मदद कर सके । सो, वे बड़े शहर में, बाबू के लिए स्कूल तलाश रहे हैं । बड़े शहर के, ‘कैरीयर बनाने वाले, बड़े स्कूल’ का खर्चा कम नहीं होता - यह बाबू के माता-पिता ने तलाश कर लिया है । सो, वे बाबू के किसी भाई-बहन को ‘अफोर्ड’ नहीं कर सकते । इसीलिए वे इस बारे में नहीं सोच रहे । मैं ने बाबू के पिता से बात की । वे बोले - ‘बस ! बाबू ही बहुत है ।’
सो, बाबू को अब ‘कैरीयर’ की प्रतीक्षा करनी है । वही उसका संगी बनेगा ।
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'बाबू' वर्तमान समाज की त्रासदी है.
ReplyDeleteबाबु पर तरस आता है.. ओफ्फ
ReplyDeleteबाबू के संगी शीघ्र सेहत लाभ करें - अपने हिसाब से।
ReplyDeleteविष्णु जी आप शीघ्र स्वस्थ हों और जम कर लिखें - यही कामना है।
ReplyDeleteबाबू के बारे में पढ़ कर लगा कि सब बचाने की मुहिम में बचपन बचाने की भी कवायद करनी होगी समाज को।
बाबू के बारे में पढ़कर दुख हुआ। आप शीघ्र स्वस्थ हों।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
हो सकता है बाबू के माता पिता उसे प्रोडिजी-किड बनाने में सफल भी हो जाएँ. यह भी हो सकता है की बाबू कुछ सालों में अपना ब्लॉग लिखना शुरू कर दे या पाँच वर्ष की उम्र में कोई कम्प्युटर परिक्षा पास कर के एक नया भारतीय कीर्तिमान स्थापित करे. मगर आपके वर्णन से इतना तो लग ही रहा है कि वह बचपन के उस अहसास से तो वंचित ही है जिस पर हर बच्चे का अधिकार है.
ReplyDeleteयह बातें तो खैर चलती ही रहेंगी. आप अपना ख्याल रखिये!
बच्चोँ का बचपन किसी भी त्रास या अवसाद से मुक्त हो और हमारी ऊम्र स्वास्थ्य लाभ सहित उर्जावान बनी रहे यही कामना आपके लिखे से पहुँचा रही हूँ -
ReplyDelete- लावण्या
शायद मां-बाप नहीं जानते कि यह बचपन का अकेलापन पूरी उमर सालेगा बालक को। हो सकता है साल भर बाद किसी प्ले स्कूल में उसे अपनी उमर के साथी मिलें।
ReplyDeleteआप के स्वास्थ्य को क्या हुआ? या केवल चैक करवाने ही आया था। शीघ्र स्वस्थ होइए। अब ब्लाग जगत को आप की कमी सालती है।
अजी आप को क्या हो गया ? जल्द से जल्द ठीक हो जाये, भगवान से आप के स्वस्थ लाभ की कामनये करते है.
ReplyDeleteबाबू पर बहुत तरस आता है, उस के मां बाप बहुत बडी गलती कर रहे है, यह उम्र दोवारा नही आने वाली ओर यही नींव है उस की जिन्दगी की.
धन्यवाद
संयुक्त परिवार के विखण्ड़्न के यही सब दुष्परिणाम हैं।पहले माँ बाप कैरियर बनानें की धुन में बच्चों मे एकाकीपन भर देते है,बाद में बच्चे अपना कैरियर बनानें में संलग्न हो जाते हैं तो माँ बाप इसी भांति बन्द गेट के पीछे से निहारा करते हैं।जीवन की विचित्र विसंगति है। वैसे आप अस्वस्थ्य हैं पोस्ट की वैचारिक सघनता से तो नहीं लगता,चलिये शीघ्र स्वस्थ्यमन गात हो हम सबका मार्ग दर्शन करिये।
ReplyDeleteआपको एवं आपके समस्त मित्र/अमित्र इत्यादी सबको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाऎं.
ReplyDeleteईश्वर से कामना करता हूं कि इस नूतन वर्ष में आप सबके जीवन में खुशियों का संचार हो ओर सब लोग एक सुदृड राष्ट्र एवं समाज के निर्माण मे अपनी महती भूमिका का भली भांती निर्वहण कर सकें.
नववर्ष की आपको बहुत-बहुत बधाई। ये पंक्तियां मेरी नहीं हैं लेकिन मुझे काफी अच्छी लगती हैं।
ReplyDeleteनया वर्ष जीवन, संघर्ष और सृजन के नाम
नया वर्ष नयी यात्रा के लिए उठे पहले कदम के नाम, सृजन की नयी परियोजनाओं के नाम, बीजों और अंकुरों के नाम, कोंपलों और फुनगियों के नाम
उड़ने को आतुर शिशु पंखों के नाम
नया वर्ष तूफानों का आह्वान करते नौजवान दिलों के नाम जो भूले नहीं हैं प्यार करना उनके नाम जो भूले नहीं हैं सपने देखना,
संकल्पों के नाम जीवन, संघर्ष और सृजन के नाम!!!
बाबू पर लिखी पोस्ट ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया, बाबू के पिता वाली स्थिती से गुजर रहा हूँ।
ReplyDeleteविष्णु जी आप शीघ्र स्वस्थ हों यही प्रार्थना!
नववर्ष में ईश्वर आपको, आपके परिजनों और मित्रों को स्वस्थ, समृद्ध और सुखी रखे यही मंगलकामना!