अवर्णनीय सुखों में एक सुख और जोड़ लिया जाना चाहिए। नहीं, यह मेरी कोई नई खोज नहीं है। यह मेरी नवीनतम अनुभूति है जो सरिता के कण्ठ से चल कर मुझ तक पहुँची है। यह अवर्णनीय सुख है - ‘लज्जा से उपजा सुख।’
कोई पन्द्रह-बीस दिनों से मैं कुछ भी नहीं लिख पा रहा हूँ। ‘मन का प्रभाव शरीर पर होता है’ यह बताते हुए डाक्टरों ने बताया कि शारीरिक रूप से मैं ‘पूर्ण स्वस्थ’ हूँ किन्तु ‘मन की बीमारी’ तन में परिलक्षित हो रही है। मैं ने पूछा - ‘क्या मैं विक्षिप्त हो गया हूँ?’ डाक्टरों ने कहा - ‘अभी तो नहीं किन्तु यदि स्वयम् को नहीं सम्हाला तो जल्दी ही (विक्षिप्त) हो जाएँगे।’ मैं ने पूछा - ‘मतलब ?’ डाक्टर बोले - ‘मतलब यही कि इस समय आपका काम मनोचिकित्सक से चल जाएगा। बाद में पागलखाने जाना पड़ सकता है।’ मैं आतंकित हो, जड़वत् हो गया।
इसी बीच सरिता (नुक्ताचीनी वाली सरिताजी) का फोन आया। वह 29 दिसम्बर 2008 सोमवार की रात, आठ-साढ़े आठ बजे के बीच की बात है। मुझे ‘बालिका वधू’ देखना पड़ रहा था। तभी मोबाइल घनघनाया। उधर से सरिता बोल रहीं थीं। एक दिन पहले की मेरी पोस्ट संगी की प्रतीक्षा में बाबू पढ़कर मेरा ‘कुशल क्षेम’ पूछ रही थीं। कुछ कृपालुओं ने मेरे स्वास्थ्य को लेकर उस पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए और कुछ ने पृथक से ई-मेल कर, चिन्ता प्रकट की थी और शीघ्र स्वस्थ हो जाने के लिए मुझ पर शुभ-कामनाओं की कृपा-वर्षा की थी। लेकिन सरिता ने सीधे ही फोन कर मेरे स्वास्थ्य को लेकर लम्बी पूछताछ की और किसी अपरिचित को पहली बार टेलीफोन करते समय जितना और जिस प्रकार से परामर्श दिया जा सकता है (या कि दिया जाना चाहिए), उतना और वैसा ही परामर्श दिया। लेकिन स्वरों में घुली चिन्ता बिना किसी प्रयास के अनुभव हो रही थी। मैं स्वीकार करता हूँ कि सरिता के इस फोन ने मुझे ठेठ भीतर तक भीगो दिया और मैं रजाई में दुबके रहकर तनिक परिश्रमपूर्वक ही अपने आँसू रोक पाया।
कल रात वही सरिता फिर फोन पर बोल रही थीं। इस बार स्वरों में चिन्ता, अधिकार भाव पीछे रह गए थे और अपेक्षाएँ, ‘उलाहना’ बन कर बरस रही थीं। कह रहीं थीं कि वे रोज सवेरे मेरा ब्लाग खोल-खोल कर पहले तो हैरान होती रहीं, फिर परेशान और अब क्षुब्ध हो गई हैं। परहेजों की उपेक्षा कर रहे अपने घर के वृध्दों को बच्चे जिस तरह से, चिन्तातुर होकर ‘प्रेमल झिड़कियाँ’ देते हैं, सरिता लगभग वैसा ही कर रही थीं।
मेरे न लिखने से सरिता को क्या अन्तर पड़ता है? उनका कौन सा स्वार्थ अधूरा रहता है? मैं लिखूँ, न लिखूँ, इससे सरिता का क्या लेना-देना? ये और ऐसे ही कुछ प्रश्न मेरे मन में सर उठाए जा रहे थे, सरिता की बातें सुनते हुए। मेरे पास उनकी बातों का कोई जवाब नहीं था। निस्वार्थ भाव से दी जा रही ‘प्रेमल झिड़कियों’ के सामने कोई भी बहाना, मेरी मूर्खता ही प्रमाणित करता। सच का उत्तर सच ही हो सकता है - और कुछ भी नहीं।
मैं ने स्वीकार किया कि मैं ‘आलस्याधीन’ हो गया हूँ - अलाल, और न लिखने के लिए बहाने जुगाड़ रहा हूँ। सरिता ने पूछा - ‘तो फिर कब शुरु कर रहे हैं?’ मैं ने कहा कि ‘अजगर दशा’ में रहते इन दिनों इतना कुछ देखा, पढ़ा कि मैं लगातार छत्तीस घण्टे लिखूँ तो भी काफी कुछ शेष रह जाएगा। लेकिन वह सब नहीं लिखूँगा। शुरुआत करूँगा सरिता की इन ‘प्रेमल झिड़कियों’ से उपजे ‘लज्जा जनित सुख’ से। सरिता ने तनिक विस्मय से पूछा - ‘याने?’ मैं ने कहा कि अपने बच्चों से परास्त होने में यद्यपि व्यक्ति का अहम् तो आहत होता है तदपि उससे उपजा सुख अवर्णनीय होता है। ऐसा ही सुख मैं इस समय, सरिता से फोन पर बातें करते हुए अनुभव कर रहा हूँ - लज्जित होते हुए उपज रहे सुख का अनुभव।
मैं सरिता तो व्यक्तिश: नहीं जानता। अनुमान कर रहा हूँ कि वे मेरी छोटी बहन से भी छोटी होंगी। आश्चर्य नहीं कि मेरे बेटे की उम्र की हों। जिस चिन्ता और अधिकार भाव से उन्होंने मेरी ‘खबर ली’, उस सबने मुझे समृध्द और निहाल कर दिया। पल-पल ‘सिंथेटिक’ होते जा रहे हमारे इस समय में कोई, बिना बात के, कोई किसी की इतनी चिन्ता कर ले, यह यदि ‘किसी’ का सौभाग्य-सूचक है तो पूछने वाले की संस्कारशीलता भी।
मेरी पोस्ट मुझ पर मँडरा गई ‘उड़न तश्तरी’ पर द्विवेदीजी (दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi )ने टिप्पणी की थी 'हिन्दी ब्लागिंग ने एक नयी ब्लागिंग बिरादरी को जन्म दिया है। यह प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा है।' उनकी बात मुझ पर शब्दश: चरितार्थ हो रही है। सारी बात सामने है। मेरी दुनिया बड़ी हो रही है और मुझे नए-नए सुख मिल रहे हैं।
लज्जा से उपजा सुख मेरे लिए नवीनतम सुख है।
धन्यवाद सरिताजी। धन्यवाद ब्लाग जगत्।
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मुझे भी सरिता जी से उनके लेखों के माध्यम से ही परिचय हुआ है . वे अच्छी इंसान हैं .
ReplyDeleteआपकी वापसी का स्वागत है वैरागी जी. प्रेमळ झिड़कियों की लज्जा से उपजे सुख का आनंद ले लिया बहुत. अच्छा है जो अब ब्लॉग-लेखन का आनंद भी फ़िर से अनवरत चलता रहे. सरिता जी को भी धन्यवाद.
ReplyDeleteचलिए. आप तकदीर वाले हैं. जल्द ही तंद्रा टूट गयी. हम सब सरिता जी के अभारी हैं.
ReplyDeleteसरिता जी का आभार। लिखने से मन हल्का ही होता है। यह मन के लिए एक अचूक इलाज है। अब अजगर दशा से उभरिए और लिखिए।
ReplyDeleteशीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए शुभकामनाएँ।
घुघूती बासूती
जल्द पूर्णतया स्वास्थय लाभ करें यही कामना है।
ReplyDeleteचार-पांच दिन पहले भी कोशिश की थी पर सफल नहीं हो पाया था।
उत्तिष्ठ जागृत !
ReplyDeleteसरिता जी का आभार!!!
ReplyDeleteलिखने से ही मन हल्का होता है। यह मान कर अब अजगर दशा से उभरिए और लिखिए।
हम इन्तजार कर रहे है/
आप स्वस्थ होँ ये हमारी भी, सरिता जी के साथ साथ कामना है
ReplyDelete- लावण्या
आप स्वस्थ थे और स्वस्थ हैं, चलिए ब्लागरी करते हैं।
ReplyDeleteआपके पूर्ण स्वास्थ्य की कामना करता हूं।
ReplyDeleteहिन्दी ब्लॉगरी से उपजा अपनापा बहुत सुखद लगता है मुझे भी।