रतलाम से इन्दौर रेल-यात्रा के दौरान मुझे यह चित्र मिला था, कोई तीन माह पहले। तबसे लेकर अब तक इस चित्र को कई बार देखा। बार-बार देखा और हर बार यह चित्र मुझे अनूठा तथा और अधिक सुन्दर लगा।
नहीं, इसमें न तो फोटोग्राफिक-ब्यूटी है और न ही पिक्टोरियल ब्यूटी। और जहाँ तक मेरा सवाल है, मुझमें तो फोटो लेने का ढंग भी नहीं है। माँ की गोद में निश्िचन्तता से सो रहा बच्चा-यही इस चित्र की सुन्दरता मुझे लगी।
रतलाम-इन्दौर रेल खण्ड के एक भाग में रेल खूब उछलती है। यात्री ऊँचे-नीचे होने लगते हैं, दचके लगते हैं। बैठे यात्री असहज हो जाते हैं और साये हुओं की निन्द्रा भंग हो जाती है। तब भी ये बच्चे गहरी नींद में ही थे।
दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह, माँ की गोद ही तो होती है! मनुष्य किलकारी मारे या क्रन्दन करे-उसके स्वरों में 'माँ' ही होती है। मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक की यात्रा अन्ततः 'माँ से माँ तक की यात्रा' ही होती है।
माँ : कहने, देखने, सुनने को मात्र एक शब्द। वह भी मात्र एक अक्षर का। किन्तु जिसमें सारी दुनिया समा जाए और जगह फिर भी बची रहे। इतनी कि कई-कई सृष्िटयाँ समा जाए।
माँ : कितना कुछ लिखा गया माँ पर? किन्तु सबका सब अधूरा और अपर्याप्त!
माँ : जिसके लिए कहा गया कि ईश्वर तो सबके साथ हो नहीं सकता इसलिए ईश्वर ने माँ बना दी।
माँ : जो कभी नहीं मरती। हमारी धमनियों में अनवरत बहती रहती है। रक्त में बनकर।
माँ : जिसे भले ही ईश्वर ने बनाया किन्तु जिसकी आवश्यकता खुद ईश्वर को रहती है।
बस! इस ‘माँ’ और ‘माँ की गोद’ के कारण ही मुझे यह चित्र सुन्दर लगा।
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पालने को खूब झुलायें फिर भी बच्चे नीद में ही रहते हैं -फिर करोड़ों के पालने की तो बात ही निराली है !
ReplyDeleteआपकी दृष्टि इतनी संकीर्ण तो नहीं है - बाजू में पिता का गोद भी तो दिखाई दे रहा है! :)
ReplyDeleteजो माँ की गोद में है वह कहीं नहीं।
ReplyDeleteमाँ की गोद से अधिक सुख और पिता की गोद से अधिक सुरक्षा कहीं नही है ...यही यह चित्र बता रहे हैं ..
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ReplyDeleteबहुत ही सुंदर पोस्ट ।
ReplyDeleteमाँ की गोद ही तो होती है!
ReplyDeleteबिलकुल सही...
वैसे बाप की भी. :)
माँ और पिता की गोद सच में बच्चे को सबसे सुरक्षित लगती है। बहुत अच्छा लगा चित्र देखना व पोस्ट पढ़ना।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
मां की गोद मे पूरा प्यार है तो पिता की गोद में सुरक्षा।इस चित्र में तो वह सब है जो जल्दी से कहीं नही मिलता।बधाई
ReplyDeleteतुझको नहीं देखा हमने कभी ,पर उसकी ज़रुरत क्या होगी ऎ मां तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी ।
ReplyDeleteवैसे पोस्ट अधूरी और पक्षपाती नज़र आती है । पिता ने क्या गुनाह किया है ? मां के वात्सल्य के साथ पिता की सरपरस्ती भी ज़रुरी होती है । मौझे लगता है शायद एक दो दिन में जल्दी ही आपको इस पोस्ट का अगला अंक भी प्रकाशित ज़रुर करना चाहिए ।
मां-पिता सुरक्षा कवच हैं। बचपन में यह कवच बहुत शक्तिशाली होता है। जब बड़े होने लगते हैं तो यह न होने पर ही सारी व्यग्रता आती है।
ReplyDeleteशायद इसी लिये यह ट्रेनिंग अपने को देते रहना चाहिये कि हम सर्वदा ईश्वर (मां-पिता) की गोद में हैं।
सुंदर चित्र ,उत्तम रचना
ReplyDeleteसु्न्दर चित्र!! उत्तम प्रस्तुति
ReplyDeleteसुंदर पोस्ट ! :)
ReplyDeleteय भाई !
ReplyDeleteइस चित्र को देख कहना चाहूँगा ---
माँ का साथ , हर बात का बीमा है ,
शायद इसीलिए बीमा मे भी " मा " है !
मां - बाप - येही इस जीवन का आलम्ब है । गणेश जी ने मां बाप की परिकर्मा कर इस सत्य का बोध करवा दिया था की पूर्ण ब्रह्म की परिकर्मा और मां बाप की परिकर्मा एक बात है । एह चित्र देख कर बोध होता इस पोरारिंक कहानी का। की क्यों na माँ बाप की परिकर्मा करें
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