डाक्‍टरों का निठल्‍ला चिन्‍तन



एक निजी चिकित्सालय के प्रतीक्षालय में लगे सूचना फलक का यह चित्र लेकर मैं चिकित्सालय के संचालक डाक्टर से मिलने उनके कक्ष में पहुँचा। वहाँ दो डाक्टर और बैठे थे। डाक्टरों के बीच शीत ऋतु, ‘हेल्दी सीजन’ के नाम से ‘कुख्यात’ है। इस ऋतु में लोग, अपेक्षया कम बीमार होते हैं सो डाक्टरों को सैर-सपाटे करने का सैर सपाटे पर न जाने की दशा में घर पर रहकर गपियाने का भरपूर समय और अवसर मिल जाता है।


कक्ष में एकत्रित तीनों डाक्टर इसी ‘अवसर’ का लाभ ले रहे थे।


मैंने, अपने कैमरे के पर्दे पर डाक्टरों को चित्र दिखाया और कहा कि निर्देश अधूरा है जिसे मैं अपने ब्लाग पर पूरा करूँगा। वे बोल कि निर्देश तो अपने आप में पूरा है। इसमें अधूरापन कहाँ? मैंने कहा-‘‘मैंने तो वही पढ़ा है जो आप ‘कृपया साथ में बच्चे न लाएँ’ के बाद लिखना भूल गए।’’ वे चकराए। बोले-क्या मतलब? मैंने कहा-‘‘मुझे लगता है कि ‘कृपया साथ में बच्चे न लाएँ’ के बाद आप ‘यहीं से दिए जाएँगे’ लिखना भूल गए हैं।’’ सुन कर तीनों डाक्टर, मेरे ‘सेंस आफ ह्यूमर’ की प्रशंसा करते हुए, ठहाका लगा कर हँस पड़े।


लेकिन हँसी थमने के बाद उन्होंने इस पर ‘निठल्ला चिन्तन’ शुरु कर दिया।


उनके सम्वाद कुछ इस प्रकार रहे -

-‘यार! सच में ही अस्पताल से ही बच्चे देने की सुविधा मिल जाए तो मजा आ जाए।’

-‘क्या मजा आ जाएगा? क्या कर लेगा?’

-‘तब मनचाहे जीन्सवाले बच्चे दूँगा।’

-‘मनचाहे जीन्स से क्या मतलब?’

-‘मतलब ये कि हम हिन्दुस्तानी जेनेटिकली ही पोंगू हैं। देख नहीं रहा? पाकिस्तानी हमारे घर में घुस कर हमारी पुंगी बजा रहे हैं और हम दुनिया के सामने चिल्ला रहे हैं।’

-‘तो तू क्या करेगा?’

-‘मैं बच्चों में मरने-मारने के जीन्स डालूँगा।’

-‘लेकिन पोंगू जीन्स तो फिर भी रहेंगे ही रहेंगे!’

-‘कैसे रहेंगे? पहले मैं बच्चों को ‘पोंगू जीन्सलेस’ करूँगा और मरने-मारने के जीन्स डालूँगा।’

वे लोग अपने ‘नेक इरादे’ सार्वजनिक कर रहे थे। बीच-बीच में चिकित्सकीय शब्दावली प्रचुरता से प्रयुक्त कर रहे थे जो मुझे वहाँ ‘पोंगू’ बना रही थी।

मुझे ऊब होने लगी।

मेरी दशा पर उन तीन में से एक को दया आ गई। बोला-‘स्साले! मालूम है कि यह हो नहीं सकता फिर भी हवा में लट्ठ घुमाए जा रहे हो। अकल-वकल है कि नहीं? तुम्हारी ये हरकतें देख कर मैं एक ही काम करता।’

-‘कौन सा?’ सुनने वाले दोनों डाक्टरों ने एक साथ पूछा।

-‘यही कि ऐसी फालतू बातें न करने वाले जीन्स बच्चों में जरूर डाल देता।’

इसके बाद किसी के पास कहने-सुनने को कुछ भी नहीं बचा था।

मैं चला आया।



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10 comments:

  1. आपका सेंस ऑफ ह्यूमर तो वाकई गज़ब है :)

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  2. वाह, डाक्टरों में जीन ट्रांसप्लाण्ट की प्रतिभा आ जाये तो न जाने क्या-क्या हो! :)

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  3. मेरे ख्याल से डाक्टरों का इरादा नेक है । पोंगू भारतीयों के जीन्स में आमूल चूल परिवर्तन की सख्त ज़रुरत है । लिखने ,पढने और ललकारने से तो यहां की सोई जनता का मानस जागने से रहा । इन नेकदिल चिकित्सकों को रिसर्च वर्क के लिए जो भी सहयोग होगा दिया जाएगा ।

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  4. काश ऐसा हो पाता.

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  5. एक हसीन सपना मुंगेरीलाल के मानिन्द देखने में हर्ज ही क्या है? काश ऐसा वाकई हो पाता...!

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  6. लगता है वाकई में डाक्टर फुरसत में हैं!

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  7. bahut khoob, aapka sense of humor kamaal ka hai -

    Nithalla Chintan

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  8. क्या बात है आजकल हर तरफ़ फ़ुरसतिये दिख रहे हैं।

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  9. एक प्रकार से सही ही तो है भाई आंतकवाद से लड़ने के लिए शांतिप्रिया मानसिकता की नही उग्र मानसिकता चाहिए इसराइल की तरह आंतकवाद को उनके घर मे घुसकर मरने की काश ये डॉकटर ऐसा कर पाते

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