बीमा एजेण्टों को तो सब कोई जानते हैं किन्तु बीमा एजेण्टों के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। और उनके काम-काज के बारे में? शायद और भी बहुत कम लोग जानते होंगे। इसका बड़ा कारण सम्भवतः यही है कि बीमा एजेण्ट जब भी मिलता है तो वह या तो अपनी बात कहता है या फिर आपसे, आपके बारे में पूछताछ करता है। बीमा एजेण्ट की सामान्य छवि ‘माथा खाऊ’ या फिर ‘चिपकू‘ की बनी हुई है।
आज आप जानिए कि आप भी बीमा एजेण्ट से काफी कुछ पूछ सकते हैं। इस ‘पूछ-ताछ’ का अधिकार आपको दिया है - बीमा विनियामक एवम् विकास प्राधिकरण ने जिसे 'आईआरडीए' के नाम से जाना-पहचाना जाने लगा है। किन्तु पूछताछ का यह अधिकार इस तरह दिया गया है कि जनसामान्य को इसकी जानकारी नहीं हो पाई है। यह अधिकार, एजेण्टों के लिए निर्धारित की गई, सत्रह सूत्री आचरण संहिता के अन्तर्गत दिया गया है। चूँकि यह आचरण संहिता केवल एजेण्टों के तक ही सीमित ही है, सो इसकी जानकारी जन सामान्य को न तो हुई है और न ही हो सकेगी।
आपकी जानकारी के लिए मैं इसे प्रस्तुत कर रहा हूँ।
1- सम्भावित ग्राहक को अपनी कम्पनी का परिचय देना।
2-सम्भावित ग्राहक के माँगने पर, अपना लायसेन्स दिखाना।
3-अपनी कम्पनी की बीमा योजनाओं की विस्तृत और पूरी जानकारी देना।
4-सम्भावित ग्राहक की आवश्यकताओं को जानकर, उन्हें अनुभव कर, तदनुरूप उचित बीमा योजना बताना। (अर्थात् अपने कमीशन की कम और ग्राहक की चिन्ता ज्यादा करना तथा सबसे पहले करना।)
5-सम्भावित ग्राहक के पूछने पर उसे (एजेण्ट को) मिलने वाले कमीशन की दरें बताना।
6-प्रस्ताव-पत्र में माँगी गई जानकारियों की प्रकृति एवम् महत्व बताना।
7-सम्भावित ग्राहक को समझाना कि वह (सम्भावित ग्राहक) कोई जानकारी छिपाए नहीं।
8-'सम्भावित ग्राहक' के 'बीमा ग्राहक' बन जाने की दशा में, बीमा ग्राहक के बारे में, सभी प्रकार की जाँच पड़ताल करना। अर्थात्-बीमा ग्राहक ने जो सूचनाएँ दी हैं, उनकी वास्तविकता जानने की कोशिश करना।
9- बीमा ग्राहक को उन महत्वपूर्ण तथ्यों (जिनमें बीमा ग्राहक की आदतें भी शामिल हैं) की जानकारी देना जिनका प्रतिकूल प्रभाव, बीमांकन सम्बन्धी निर्णय पर हो सकता है।
10-बीमा ग्राहक के बीमा प्रस्ताव के निपटान (स्वीकृत/अस्वीकृत होने) की सूचना बीमा ग्राहक को देना।
11-बीमा कम्पनी यदि अनुभव करे कि कुछ आवश्यकताओं का पालन करने के लिए, किसी एजेण्ट को पालिसीधारकों/दावाकर्ताओं की यथोचित सहायता करनी चाहिए तो बीमा कम्पनी के कहने पर ऐसी सहायता करना। अर्थात्, बीमा कम्पनी के कहने पर, उन पालिसीधारकों/दावाकर्ताओं की भी सहायता करना जिनका बीमा उसने नहीं किया है।
12-बीमा ग्राहक से आग्रह करना कि बीमा प्रस्ताव में नामांकन अवश्य कराए।
13-यथा सम्भव प्रयास करते हुए सुनिश्िचत करना कि (उसके द्वारा बेची गई पालिसियों के) पालिसीधारकों ने, देय प्रीमीयम, निर्धारित समयावधि में जमा करा दी है। इस हेतु अपने पालिसीधारकों को लिखित/मौखिक सूचना देना। {सामान्य अनुभव है कि पालिसी बेचने के बाद बीमा एजेण्ट पलट कर नहीं देखता। जबकि मेरा मानना है (और जैसा कि मैं अपने सम्भावित बीमा ग्राहकों को कहता भी हूँ) कि पालिसी बेचने के अगले ही क्षण से बीमा एजेण्ट का वास्तविक काम शुरू होता है। मेरा सुनिश्िचत मत है कि जिस समयावधि की पालिसी बेची गई है, उस समयावधि तक के लिए बीमा ऐजण्ट का सम्बन्ध, अपने बीमाधारक से शुरू होता है।}
14-गलत जानकारी देने के लिए सम्भावित बीमा ग्राहक को प्रोत्साहित नहीं करना।
15-दूसरे बीमा एजेण्टों द्वारा लाए गए बीमा प्रस्तावों में हस्तक्षेप नहीं करना।
16-पालिसीधारकों को बीमा कम्पनी से मिलने वाले भुगतान/लाभांश में न तो हिस्सा माँगना और न ही (पालिसीधारक द्वारा स्वैच्छिक रूप से दिए जाने पर भी) स्वीकार करना।
17-सम्भावित बीमा ग्राहक से नया बीमा प्राप्त करने के लिए (सम्भावित बीमा ग्राहक की) कोई चालू पालिसी बन्द/निरस्त नहीं कराना।
यहाँ मैं ने, आईआरडीए द्वारा प्रसारित आचरण संहिता को शब्दश: प्रस्तुत करने के स्थान पर उसे सामान्य भाषा में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। मूल भाषा/शब्दावली मुझे तनिक क्लिष्ट अनुभव हुई सो मैं ने अपने स्तर पर यह कोशश की है। अतः, यहाँ प्रस्तुत बातें, आईआरडीए द्वारा प्रसारित आचरण संहिता का सरलीकृत रूप है, आधिकारिक रूप नहीं।
अब जरा याद कीजिए कि आपसे किसी बीमा एजेण्ट ने जब मुलाकात की थी तब उसने, इस आचरण संहिता के किसी निर्देश का उल्लंघन तो नहीं किया था?
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एजेंट किसी भी क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। वह जितना पारदर्शी होगा व्यवसाय भी उतना ही अच्छा करेगा।
ReplyDeleteपहले मित्रधन ब्लॉग पर गया ,वहां आपका लेख नहीं था /आपने अच्छा किया जो सत्रह सूत्री जानकारी उपलब्ध कराई /नोट करली है /समय मिला और लम्बी यात्रा करना पडी तो रस्ते की बोरियत दूर करने में उपयोगी होगी ,एक सूत्र पढने और समझने में कम से कम दो स्टेशन तो क्रोस हो ही जाया करेंगे
ReplyDeletebahut achhi jaankari hai kai baar padhni padegi
ReplyDeleteजानकारी अहम है. आभार.
ReplyDeleteऐसा भी होता है क्या? मुझे तो पता ही नहीं था.. धन्यवाद
ReplyDeleteक्रमांक १३ पर मैं कहना चाहूंगा कि अधिकांश एजेण्ट इस पर ध्यान नहीं देते!
ReplyDeleteअभिकर्ता-आचरण-संहिता के ये सत्रह सूत्र वाक् य -- सात फेरों के सात वचन की तरह--- लेते तो सभी है
ReplyDeleteकिन्तु कितने अभिकरतागण कितने समय तक याद रख पाते है ? अनुपालन तो बहुत्त दूर की बात है . तथापि एक सामान्य बीमाधारक के हि त मे एक निष्ठावान-समर्पित अभिकर्ता के रूप मे अत्यंत
सराहनीय प्रयास न अनेकानेक साधुवाद !
भई वाह.. बैरागी जी, इस प्रस्तुति के विशेष आभार..
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर हमेशा ही कुछ नया सीखने को या जानने को मिलता है. हमें तो यह भी पता नहीं था की बीमा-एजेंट का लाइसेंस भी माँगा जा सकता है. उस स्थिति में अपनी पत्नी, या भाई आदि के लाइसेंस के नाम पर कार्यस्थान पर ख़ुद पालिसी बेचने का व्यवसाय कर रहे लोगों के बारे में क्या निर्देश हैं? साथ ही कुछ एजेंट पहली किस्त में से कुछ रकम पालिसी धारक को वापस दे देते हैं, क्या इसके बारे में भी कोई आधिकारिक नियम है? जो एजेंट ऐसा वादा करके पालिसी बेच-बेचकर फ़िर उसे कभी पूरा नहीं करते, क्या उनके ख़िलाफ़ कुछ कारवाई होनी चाहिए? धन्यवाद!
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