इस सब से आश्चर्यचकित हो मैं कस्बे में ‘समझदारी’ खोज रहा था। पग-पग पर अक्रिमण, गन्दगी का साम्राज्य, बैकों से लिए ऋण वापस न लौटाने के प्रकरण, नगर निगम की ‘बकाया कर राशि के आँकडों का पहाड़’, ‘जन’ से पीठ फेर कर बैठे जनप्रतिनिधि और इस पर ‘जन’ का चुप रहना जैसे कारक मुझे असहज कर रहे थे।
साक्षर होने, शिक्षित होने और समझदार होने में कोई अन्तर्सम्बन्ध मुझे न तब दृष्िटगोचर हो रहा था न, 28 वर्षों के बाद अब। मन्त्री पद की शपथ ले रही, शपथ पत्र पढ़ पाने में सर्वथा असमर्थ, निरक्षर गोलमा देवी की आवाज ‘मैं गोलमा देवी बोल री हूँ’ ने चेतना पर कब्जा कर रखा है।
ऐसे में, मध्य प्रदेश के एक जिला मुख्यालय स्थित, भारत शासन के एक प्रतिष्िठत उपक्रम के कार्यालय के ‘सुविधा स्थल’ पर प्रदर्शित इस निर्देश ने पता नहीं क्यों मुझे आत्मीय सुख दिया।निरक्षरों को साक्षर और साक्षरों को शिक्षित बनाने में भले ही हम कीर्तिमान स्थापित कर लें किन्तु निरक्षरों, साक्षरों और शिक्षितों को समझदार बनाने का भी कोई अभियान चलाया जाना चाहिए?
या, यह सब, मूक बन कर देखते रहने में ही समझदारी है?
‘सबसे भली चुप’ ही समझदारी का स्थायी भाव है?
-----
यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें । यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें । मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर - 19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001.
कृपया मेरे ब्लाग ‘मित्र-धन’ http://mitradhan.blogspot.com पर भी एक नजर डालें ।
निरक्षरों को साक्षर और साक्षरों को शिक्षित बनाने में भले ही हम कीर्तिमान स्थापित कर लें किन्तु निरक्षरों, साक्षरों और शिक्षितों को समझदार बनाने का भी कोई अभियान चलाया जाना चाहिए?
ReplyDeleteबहुत सही कहा है।
आपका सहयोग चाहूँगा कि मेरे नये ब्लाग के बारे में आपके मित्र भी जाने,
ReplyDeleteब्लागिंग या अंतरजाल तकनीक से सम्बंधित कोई प्रश्न है अवश्य अवगत करायें
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue
bahut hi sahi kaha hai aapne...
ReplyDelete"…‘सबसे भली चुप’ ही समझदारी का स्थायी भाव है?…" यही भाव तो देश की वाट लगाये दे रहा है… जिस दिन लोग "बोलने" लगेंगे, या बोलने के बाद जूते निकालने की क्रिया करने भी करने लगेंगे, उसी दिन से नौकरशाही और व्यवस्था में कुछ बदलाव होने की उम्मीद है, वरना "चुप भली" करके जैसे जनता 60 साल से बैठी है अगले 100 साल तक भी बैठी ही रहेगी…
ReplyDeleteया रब वो ना समझे हैं ना समझेंगे मेरी बात दे और दिल उनको जो ना दे ज़बां और । जिस संदर्भ में आपने ये बात कही है उसे शायद ही कोई समझ पाए ...। खैर पढे लिखे लोग अतिSSSSSSSSS.......समझदार होते है ं ये तो आप भी जानते हैं और मानते भी हैं । समझदार अपना और सिर्फ़ अपने परिवार का भला जानता है ।
ReplyDeleteबहुत रहे चुप
ReplyDeleteअब न रहेंगे।
अपना दुखड़ा
अपनी बात
पुरजोर कहेंगे।
दो नम्बर वाली जगहों में भी ऐसे बोर्ड लगाने पड़ेंगे.
ReplyDeleteवाह! बेबी को भी बाथ टब के साथ फैंक दिया है पेशाब में!
ReplyDeleteसाक्षर-अज्ञान की जै!
' करि पुलेल को आचमन ' -- वाली बस्ती मे क्यूँ ' शू 'क्रिया के लिए झिंझोड़ने मे अपनी ऊर्जा
ReplyDeleteका ..........श कर रहें हैं . हम नही सुधरेंगे , युग सुधारने का सपना गायत्री-परिवार वालों का
है . सुश्री गोलमा देवी इसी समाज का प्रतिनिध्त्व कर रही हैं !