हाय! रे चुनाव, हाय! रे वोट


मेरा कस्बा यूँ तो जिला मुख्यालय है किन्तु लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के हिसाब से, झाबुआ संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है। नए परिसीमन के बाद अब इसका नाम ‘झाबुआ संसदीय क्षेत्र’ से बदल कर ‘रतलाम संसदीय क्षेत्र’ अवश्‍य हो गया है किन्तु इसकी संचरचना यथावत् है। अर्थात्, पूरा झाबुआ जिला और रतलाम जिले के तीन विधान सभा क्षेत्र (रतलाम नगर, रतलाम ग्रामीण और सैलाना)। अन्तर केवल यह हुआ है कि नामांकन प्रस्तुत करने, नामांकनों की जाँच जैसे जो काम पहले झाबुआ जिला मुख्यालय पर हुआ करते थे, वे सब अब रतलाम जिला मुख्यालय पर होंगे। स्पष्‍ट है कि इस सबमें केवल अधिकारियों की सुख-सुविधा की चिन्ता के अतिरिक्त और कोई कारण नहीं है।


कान्तिलाल भूरिया, लोकसभा में हमारे प्रतिनिधि हैं। वे केन्द्रीय मन्त्रि-मण्डल में कृषि राज्य मन्त्री भी हैं। लोकसभा के अगले चुनावों में उनकी उम्मीदवारी सौ टका पक्की है।


अभी-अभी हुए विधान सभा चुनावों में रतलाम नगर विधान सभा क्षेत्र में कांग्रेस की जमानत जप्त हो गई। हर कोई कहता मिल रहा है कि कान्तिलाल भूरिया ने अपने प्रिय पात्र को उम्मीदवारी दिलवाई थी किन्तु उसे जितवाना तो दूर रहा, उसकी जमानत बचाने में भी वे सफल नहीं रह पाए।


विधान सभा चुनावों में कांग्रेसियों द्वारा कांग्रेस को हराने की बात चैड़े-धाले जाहिर हुई। कांग्रेस को इस मुकाम पर लाने वालों को कान्तिलाल भूरिया और उनका प्रिय पात्र ही नहीं, सारा शहर भली प्रकार जानता है। एक ‘संगठन’ के नाते होना तो यह चाहिए था कि भीतरघात करनेवालों पर तत्काल कड़ी कार्रवाई होती। किन्तु लोकसभा चुनावों के मद्देनजर ऐसा करना अत्यन्त घातक होता।


सो, अभी-अभी (दो दिन पूर्व) कान्तिलाल भूरिया ने रतलाम में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की बैठक में और बाद में पत्रकार वार्ता में घोषणा की कि लोकसभा चुनावों में जिस वार्ड में कांग्रेस हारेगी वहाँ के वार्ड पार्षद को, नगर निगम के चुनावों में कांग्रेस का उम्मीदवार नहीं बनाया जाएगा। यह विचार करने की आवश्‍यकता बिलकुल ही नहीं है कि भूरिया की यह घोषणा, घोषणा नहीं, चेतावनी है या फिर राजनीतिक ब्लेक मेलिंग है। यदि इनमें से कुछ नहीं है तो फिर यह या तो लालच है या फिर याचना।


हमारे राजनेताओं का असली चेहरा यही है। यदि संगठन की चिन्ता होती तो भूरिया को चाहिए था कि विधान सभा चुनावों में कांग्रेस की दुर्गत करनेवालों को आज ही सबक सिखा देते। किन्तु ऐसा करने के लिए राजनीतिक साहस चाहिए जो आज हमारे राजनेताओं में विलुप्त होता जा रहा है।


मजे की बात यह है कि जब पत्रकारों ने, विधान सभा चुनावों में भीतरघात करनेवाले कांग्रेसियों पर की जाने वाली कार्रवाई की बाबत पूछा तो भूरिया ने कहा कि मामला हाईकमान के सामने लम्बित है। किन्तु यही भूरिया, अपनी जीत सुनिश्‍िचत करने के लिए अभी से चेतावनी (जिसे जैसा कि ऊपर कहा गया है, धमकी, लालच या फिर याचना) का सहारा ले रहे हैं। कार्रवाई न करने के लिए एक ओर हाईकमान के नाम का बहाना और दूसरी ओर सुनिश्‍िचत कार्रवाई करने की पूर्व घोषणा।


भूरिया अकेले नहीं जो ऐसा कर रहे हैं। वे तो ऐसा करने वालों की भीड़ के सामान्य प्रतिनिधि मात्र हैं।


हाय! रे चुनाव, हाय! रे वोट।
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6 comments:

  1. संगठन ही कहाँ हैं, जो नियम से चल रहे हों। सब धरमधक्के में चल रहे या चलाए जा रहे हैं।

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  2. हम इन राजनेताओं के बारे में चिंता करते ही नहीं हैं. वो हैं. इस बात को नकारा नहीं जा सकता. लेकिन उनके पीछे हम अपना सर क्यों फोड़े.

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  3. राजा कोई भी बने कैसे भी बने हमें क्या ? याचक बने,धमकाये,ललचाये ,बरगलाए ,चेताये या आखिर में बौराए , हमें क्या ...????? हम तो जनता हैं ,पांच साल में एक बार एक दिन के राजा उस एक दिन के राजपाट के लिए क्या क्या ख्वाब नहीं बुने हमने । मगर उन्हें क्या..? तो अब हमें क्या ..?

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  4. एक बड़े सर्कस मे कलाकारों के अनेक तंबू -- हर रंग और साइज़ के -- हर कलाकार दूसरे से बड़ा
    और महान........क्या यही संगठन है ? गिरते - पड़ते तिकिटारथीयो की भीड़ . और कितनी एवं कैसी
    वफ़ादारी --जो केवल टिकिट मिलने तक सीमित............अन्यथा ......समर्थकों की चाह के नाम..........
    पलायन.......गयाराम......या...भीतारघात............हर दल की यही तस्वीर..........यह सब अंतरात्मा की आवाज़ के नाम पर

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  5. चुनावी राजनीति मतलब हाथी के दांत, खाने के और, दिखाने के और...

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