एसएमएस मुझे सदैव परेशान ही करते हैं। एसएमएस की अपेक्षा पत्र लिखना मुझे अधिक सरल अनुभव होता है। पत्र लेखन प्रिय तो है ही। स्थिति यह है कि एसएमसए का उत्तर भी मैं प्रायः ही पत्र से देता हूँ। पत्र पाने वाले मित्रों की प्रतिक्रया विचित्र होती है। एक ओर तो वे, एसएमएस न लिख पाने के लिए मेरा उपहास करते हैं तो दूसरी ओर, मेरा पत्र पाकर प्रसन्न भी होते हैं। सच में, मनुष्य मन की थाह पाना कठिन ही है।
किन्तु समय एसएमएस का है। मैं भले ही न लिखूँ, किसी को लिखने से तो रोक नहीं सकता। सो, इस वर्ष भी पहली जनवरी को एसएमएस की जोरदार बारिश हुई।
कभी एलआईसी में शाखा प्रबन्धक रहे अतुल प्रताप सिंह साहित्यिक अभिरुचिवाले हैं। मुझे सदैव लगता रहा (और अभी भी लग रहा है) कि वे नौकरी में ‘मिस फिट’ हैं। किन्तु नौकरी में सफलता के कीर्तिमान स्थापित कर वे मुझे और मेरी धारणा को ध्वस्त और निरस्त करते रहे हैं। इन दिनों वे वाराणसी में, बिरला सन लाइफ इंश्योरेंस कम्पनी में बहुत बड़े अधिकारी हैं। ‘क्या यह रचना उनकी है?’ वाला, मेरा प्रश्न पूरा होने से पहले ही वे (ऐसे छिटककर मानो ‘लिखने के दुष्कृत्य’ की जिम्मेदारी से पल्ला झाड रहे हों) बोले कि ‘यह सब’ उन्होंने नहीं लिखा है। उनके किसी मिलने वाले ने उन्हें यह एसएमस भेजा था जो उन्होंने मुझे ‘फारवर्ड’ कर दिया।
सो, ‘अतुल प्रताप सिंह का न लिखा’ यह एसमएस आप भी पढ़िए। मुझे पूरा विश्वास है कि ये पंक्तियाँ आपको भी अच्छी लगेंगी -
शिखर पर पहुँचने की स्पर्ध्दा में
शायद भूल गया था
मैं उस ऊँचाई पर
होने वाले अकेलेपन
के अहसास को।
विध्वंस के आतंक से आहत
पर डरा नहीं है
हक माँगने वाली
इस नई पीढ़ी का उतावलापन!
नव युग के सृजन का उत्साह लिए
यह नन्हा सा बच्चा
फिर से सिखा गया मुझे कि
हमारे ‘हम’ से परे भी
बहुत कुछ अभी
शेष है इस जीवन में।
दूसरा एसएमएस मुझे गए साल मिला था, 8 जनवरी 2008 को जो मैं ने अब तक सहेज रखा है। हमारे दैनन्दिन जीवन में आ रही कृत्रिमता और खोखलेपन पर करारी चोट करने वाला यह एसएमएस, एलआईसी रतलाम में कार्यरत मणीन्द्र तिवारी ने भेजा था -
‘हेप्पी न्यू ईयर, लोहड़ी, सक्रान्ती, होली, वैशाखी, दीवाली, दशहरा, शिवरात्रि, क्रिसमस, जन्माष्ठमी, राखी, सारे तीज त्यौहार की बधाइयाँ, हेप्पी गणतन्त्र तथा स्वाधीनता दिवस, हेप्पी वेलेण्टाइन्स डे, फ्रेण्डशिप, मदर्स, बुआ’स, फूफा’स, दादा’स, दादी’स, नाना’स, नानी’स, मौसा’स, मौसी’स, पति’स, पत्नी’स, मम्मी’स, चिल्ड्रन्स डे एण्ड हेप्पी बर्थ डे, गुड लक फार एक्जाम्स, 365 गुड मार्निंग, नून एण्ड नाइट । हाँ यार! अब पूरे साल मत कहना कि विश नहीं किया।’
आपको जो एसएमएस अच्छा लगे, वह किसी अपने वाले को फारवर्ड कर दीजिएगा।
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भागमभाग के इस युग में इतनी मेहनत कौन करे । यदि आप चाहते हैं कि इनका पर्याप्त प्रचार प्रसार हो तो हमें भेजिए मोबाइल पर ,ताकि टाइप करने की ज़हमत से बच सकें ।
ReplyDeleteवैसे हाल ही में दुष्यंत कुमार त्यागी संग्रहालय जाने पर जाना कि हाथ से लिखा कितना बेशकीमती होता है । आपकी लिखा हर शब्द भी किसी धरोहर से कम नहीं । मेरा मशविरा है कि आप तो कलम -कागज़ का उपयोग जारी रखें ।
पत्र लिखने की आदत मेरी भी छूट गई है। लेकिन पत्रों का अपना महत्व होता है। पहला एस एम एस एक अचछी कविता है और दूसरा बदलते जमाने का विद्रूप।
ReplyDeleteहमें तो मोबाइल से ही चिढ़ थी लेकिन आखिटकार वह भी गले पड़ ही गयी. एस.एम.एस से हमें भी परहेज है. मॅटर कंपोज़ करने में बहुत समय लग जाता है. आजकल इतने सारे व्यावसायिक संदेश आते हैं जिन्हे पढ्ने की जगह डिलीट करने में भी परिश्रम लगता है. आपको मिला पहला एस.एम.एस सुंदर था. एक बात और, हमारे ख्याल से एस.एम.एस भेजने के लिए अधिकतम शब्द संख्या निर्धारित है. अतः दूसरा वाला एस.एम.एस क्या उस सीमा का उल्लंघन नहीं करता. आभार.
ReplyDeleteपहले तो हम मोबाईल पर कंप्यूटर से भी तेज टाईप कर लेते थे.. मगर अब फिरसे कंप्यूटर तेज हो चला है.. मोबाईल कि पटल कुंजी बिना देखे, मोबाईल को उल्टा करके.. जैसे कहियेगा वैसे टाईप कर लेंगे.. आखिर एस.एम.एस. युग में हम भी अपनी जगह चाहते हैं.. :)
ReplyDeleteपहला वाला एस एम एस बढ़िया है.. दूसरा तो हमने पहले ही कर दिया
ReplyDeleteक्या पहले चिट्ठियाँ औरों से नहीं लिखवाई जाती थी? :)
ReplyDeleteदोनों SMS मस्त हैं......हम भी फॉरवर्ड कर रहे हैं...
ReplyDeleteमेरे पास तो मोबाईल है ही नहीं, अब क्या किया जाये?
ReplyDeleteबढ़िया होता आप साथ में एक मोबाइल भी फॉरवर्ड कर देते। :)
तब तक इन समसों को मेल में फॉरवर्ड करते हैं।