1000 दफ्तर बन्द कर दिए निजी जीवन बीमा कम्पनियों ने

जीवन बीमा उद्योग के निजीकरण की कलई धीरे-धीरे खुलने लगी है।


इस उद्योग में निजी कम्पनियों के लिए लाल कालीन बिछाने के लिए दिए गए तर्कों में एक तर्क यह भी था कि बीमा करने योग्य लोगों का बीमा करने के मामले में भारत सरकार का उपक्रम ‘भारतीय जीवन बीमा निगम’ अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरा है इसलिए निजी बीमा कम्पनियों के जरिए ऐसे लोगों को बीमा सुरक्षा उपलब्ध कराने का मौका दिया जाना चाहिए। तब, इस उद्योग के जरिए रोजगार के नये आयाम खुलने के दावे भी किए गए थे। किन्तु ज्यों-ज्यों समय बीतता जा रहा है, इन दावों की हवा निकलने लगी है और यह बात तेजी से सामने आने लगी है कि बीमा योग्य लोगों का बीमा करने और लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने में निजी बीमा कम्पनियों की कोई दिलचस्पी नहीं है। इनकी दिलचस्पी केवल मुनाफा कमाने में है।


देश की, अग्रणी 6 निजी बीमा कम्पनियों के, दो वर्षों के तुलनात्मक आँकड़े साबित करते हैं कि मुनाफा कमाने के अपने एकमात्र लक्ष्य को हासिल करने के लिए इन कम्पनियों ने छोटे कस्बों/शहरों के अपने लगभग 1,000 से अधिक शाखा कार्यालय बन्द कर दिए, कर्मचारियों की संख्या में 27 प्रतिशत की कमी कर दी और लगभग 1,74,000 अभिकर्ताओं को विदा कर दिया।


किन्तु इन दो वर्षों में इन बीमा कम्पनियों का मुनाफा खूब बढ़ा। आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ और बजाज अलियांज बीमा कम्पनियों ने वित्तीय वर्ष 2010-11 में 650 शाखा कार्यालय बन्द किए, लगभग 12,000 कर्मचारी निकाले और क्रमशः 810 करोड़ और 160 करोड़ रुपयांे का शुद्ध मुनाफा कूटा। मैक्स न्यूयार्क और टाटा एआईजी बीमा कम्पनियों ने इस वित्तीय वर्ष में पहली बार मुनाफा कमाया जबकि एचडीएफसी लाइफ तथा रिलायंस लाइफ ने अपने नुकसान में बड़ी हद तक कमी की। किन्तु शाखाएँ बन्द करने और कर्मचारियों को निकालने के मामले में ये भी पीछे नहीं रहीं। हाँ, रिलायंस लाइफ ने अपना कोई शाखा कार्यालय बन्द नहीं किया। इसके विपरीत इस कम्पनी ने इस संख्या में एक की बढ़ोतरी की।


कार्यालय बन्द करने, कर्मचारियों को निकालने और अभिकर्ताओं को रास्ता दिखाने के पीछे इन कम्पनियों का एक ही तर्क था कि अपना कारोबार बचाए रखने के लिए इनके पास इसके सिवाय और कोई रास्ता नहीं बचा था।


निजी बीमा कम्पनियों के इस चलन को मात देने का करिश्मा केवल एक बीमा कम्पनी ने किया लेकिन वह कोई निजी बीमा कम्पनी नहीं थी। वह सार्वजनिक क्षेत्र की, एसबीआई लाइफ बीमा कम्पनी थी जिसने 135 नई शाखाएँ खोलीं और कर्मचारियों की संख्या में 1,313 की वृद्धि की।


निजी बीमा कम्पनियों के ‘चाल-चलन’ की संक्षिप्त हकीकत इस प्रकार है -


शाखाओं की संख्या (क्रमशः 2009-10 और 2010-11) -


आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ - 1,923 थी, 519 बन्द कर दी गईं। 1,404 रह गईं।

बजाज अलियांज - 1,151 थी, 151 बन्द कर दी गईं, 1,050 रह गईं।

मैक्स न्यूयार्क लाइफ - 705 थी, 200 बन्द कर दी गईं, 505 रह गईं।

टाटा एआईजी लाइफ - 433 थी, 75 बन्द कर दी गई, 358 रह गईं।

एचडीएफसी लाइफ - 568 थी, 70 बन्द कर दी गईं, 498 रह गईं।

रिलायंस लाइफ - 1,247 थी, एक नई खोली, 1,248 कार्यरत हैं।

एसबीआई लाइफ - 494 थी, 135 नई खोलीं, 629 कार्यरत हैं।
बन्द किए गए शाखा कार्यालयों की कुल संख्या - 1,015


मुनाफा कूटने के लिए इन बीमा कम्पनियों ने, बन्द किए गए कार्यालयोंवाले कस्बों/शहरों के ग्राहकों को भगवान भरोसे छोड़ दिया जबकि इन ग्राहकों को यह कह कर बीमे बेचे गए थे कि इन सबको, इनके अपने गृहनगर में ही विक्रयोपरान्त ग्राहक सेवाएँ उपलब्ध कराई जाएँगी। अब इन ‘अनाथ ग्राहकों’ को, अपनी बीमा पॉलिसियों पर सेवाएँ प्राप्त करने के लिए, उन शहरों के चक्कर लगाने पड़ेंगे जहाँ इन कम्पनियों के शाखा कार्यालय काम कर रहे हैं।


यहाँ यह सवाल स्वाभाविक रूप् से उठता है कि छोटे कस्बों/शहरों के अपने दफ्तर बन्द कर ये बीमा कम्पनियाँ, बीमा योग्य अधिकाधिक लोगों का बीमा कैसे कर पाएँगी? इस काम के लिए दिन-ब-दिन नए शाखा कार्यालय खोलने पड़ते हैं!


कर्मचारियों की संख्या - (क्रमशः 2009-10 और 2010-11) -
आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ - 20,000 थे, 7,000 निकाले, 13,000 कार्यरत हैं।

बजाज अलियांज - 20,000 थे, 5,062 निकाले, 14,938 कार्यरत हैं।

मैक्स न्यूयार्क लाइफ - 10,454 थे, 3,454 निकाले, 7,000 कार्यरत हैं।

टाटा एआईजी लाइफ - 8,100 थे, 2,700 निकाले, 5,400 कार्यरत हैं।

एचडीएफसी लाइफ - 14,397 थे, 2,303 निकाले, 12,994 कार्यरत हैं।

रिलायंस लाइफ - 16,656 थे, 2,473 निकाले, 13,183 कार्यरत हैं।

एसबीआई लाइफ - 5,985 थे, 1,313 नए भर्ती किए, 7,298 कार्यरत हैं।
निकाले गए कर्मचारियों की कुल संख्या - 22,992


शुद्ध मुनाफा/घाटा (करोड़ रुपयों में) (क्रमशः 2009-10 और 2010-11) -
आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ - मुनाफा 260 करोड़ से बढ़कर 810 करोड़ हो गया, 550 करोड़ की वृद्धि हुई।

बजाज अलियांज - मुनाफा 540 करोड़ से बढ़कर 1,060 करोड़ हो गया, 520 करोड़ की वृद्धि हुई।

मैक्स न्यूयार्क लाइफ - 20 करोड़ का घाटा था जो 190 करोड़ के मुनाफे में बदल गया। याने, 210 करोड़ की वृद्धि।

टाटा एआईजी लाइफ - 400 करोड़ का घाटा, 52 करोड़ के मुनाफे में बदला। याने, 452 करोड़ की वृद्धि।

एचडीएफसी लाइफ - 280 करोड़ का घाटा कम होकर 100 करोड़ रह गया। याने, 180 करोड़ का मुनाफा।

रिलायंस लाइफ - 280 करोड़ का घाटा कम होकर 130 करोड़ रह गया। याने, 150 करोड़ का मुनाफा।

एसबीआई लाइफ - 276 करोड़ का मुनाफा बढ़ कर 366 करोड़ हो गया। याने 90 करोड़ की वृद्धि।


आँकड़े सारी हकीकत बयान कर रहे हैं। किसी टिप्पणी की आवश्यकता नहीं रह जाती।

(ऑंकडों का स्रोत : बिजनेस स्‍टैण्‍डर्ड दिनांक 06 जुलाई 2011)

8 comments:

  1. इन दो वर्गों की कोई तुलना ही नहीं हो सकती है, वे अलग-अलग ग्रह के प्राणी हैं। निजीकरण की कलई का खुला रहस्य सबको पता है, उन्हें भी जो इसकी झूठी तारीफ़ करते नहीं अघाते। मुनाफ़े के लिये व्यवसाय में आयी अधिकांश संस्थायें मुनाफ़े के अलावा कुछ और देख ही नहीं पाती हैं। राष्ट्रीयकृत संस्थाओं का मुनाफ़ा कम होना ही चाहिये क्योंकि वे अपने संसाधनों का बडा भाग कर्मचारिओं के समुचित भुगतान, सटीक शिक्षा/प्रशिक्षण और सामाजिक जिम्मेदारी आदि पर लगाती हैं।

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  2. बजाज और मैक्‍स के कटु अनुभव मेरे पास भी हैं, लेकिन निजी दुखड़ों से आगे बढ़ कर ठोस हकीकत आपने सामने रख दी है. इन कंपनियों के टारगेट पीडि़त कर्मचारियों, अभिकर्ताओं का भी अलग अध्‍याय है, जिससे कमोबेश हम सब वाकिफ हैं.

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  3. अन्ततः मुनाफा कमाना है, विस्तार करके नहीं, सैलेरी मार के।

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  4. पता नहीं..... मेरे मन में ये भाव सदा रहा कि ये प्राइवेट कंपनी मात्र पैसा कमाने आयी है ..... हमारे दुःख सुख से इनको क्या मतलब .. और मैंने आज तक किसी भी तरह की कोई पोलिसी नहीं खरीदी....

    आपकी पोस्ट ने मेरी सोच को और पुख्ता कर दिया.

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  5. vishanuji,it would be better if we compele THE GOVT.TO VERIFY THESE FIGURES.Because now the govt is allowing the retailers here. Which will create atrocities on the poor retailers,SABZIWALAS/KHOMCHAWALAS AND REHDIWALAS.

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  6. सरकारी कंपनी काम नहीं करती और निजी कंपनी खून चूसती है। यह तो पर्वत और खाई की स्थिति है:(

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  7. आपने बहुत तुलनात्मक विवरण दिया है. सच यह है कि निजी क्षेत्र इस फ़ील्ड में सेवा करने नही आया बल्कि चांदी कूटने आया था, अब चांदी की जगह तांबे पर संतोष करने के लिये शाखाएं तो बंद करनी ही पडेगीं. सरकारी उपक्रमों पर अपनी ही चाल से चलने का जूनूज है फ़िर भी यह कहना पडेगा कि वो अपने सामाजिक सरोकार को साथ लेकर चलते हैं.

    यही हिसाब किताब आप एयर इंडिया और अन्य निजी हवाई कंपनियों की सेवाओं में देख सकते हैं, आज तो बेचारी एयर इंडिया को ATF कोई नही दे रहा, क्या पता मंत्रीजी के हस्तक्षेप के बाद मिल सके.

    रामराम

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  8. @चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said..

    माननीय चन्‍द्रजी,

    सविनय सादर नमस्‍कार,

    मैं सरकारी बीमा कम्‍पनी, 'भारतीय जीवन बीमा निगम' का अभिकर्ता हूँ। मैं आपके अप्रिय अनुभवों से समृध्‍द और लाभान्वित होना चाहता हूँ। यदि सम्‍भव हो तो आपके लिए सहायक और उपयोगी भी बनना चाहूँगा।

    कृपया अपना फोन/मोबाइल नम्‍बर दें और यह भी सूचित करें कि आपसे बात करना किस समय आपको सुविधाजनक होगा।

    मेरी बात में यदि कोई अविनय हुआ हो तो मैं क्षमा याचना करता हूँ।

    कृपाकांक्षी,

    विष्‍णु बैरागी

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