सोलह अगस्त का मेरा दिन बहुत खराब रहा। नींद तो जल्दी खुल गई थी किन्तु बुद्धू बक्सा खोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी। सरकारों के चाल-चलन को थोड़ा-बहुत जानता हूँ। आशंका लग रही थी सूर्योदय से पहले ही अण्णा और उनके साथियों को पकड़ न लिया हो। लेकिन अपने आप को कब तक धोखा देता? हिम्म्त करके, आठ बजे बुद्धू बक्सा खोला तो समाचार जाना कि सुबह 7.25 पर अण्णा को पुलिस घर से उठा ले गई। जी खट्टा हो गया। एकाएक ही माथा चढ़ने लगा, आँखें भारी होने लगी, कनपटियाँ चटखने लगीं और जी मिचलाने लगा। लगा, चक्कर खाकर गिर पड़ूँगा। देर तक बुद्धू बक्सा नहीं देख सका।
अत्यधिक कठिनाई से, मानो खुद से जबरदस्ती कर रहा होऊँ, नित्य-कर्म से निवृत्त हुआ। स्नानोपरान्त ठाकुरजी के सामने बैठा तो पूजा-पाठ में मन लगा ही नहीं। मंगलवार था। सुन्दरकाण्ड पाठ करना था। लेकिन नहीं किया। कर पाना सम्भव ही नहीं हुआ।दस बीस पर उत्तमार्द्ध को नौकरी पर छोड़ा। वहाँ से मुझे अण्णा के समर्थन में धरनास्थल पर जाना था। जलजजी (आदरणीय श्रीयुत डॉक्टर जय कुमार जलज) से तय हुआ था कि हम दोनों साथ जाएँगे। जलजजी मेरे कस्बे में खरेपन का प्रतीक हैं। उनकी उपस्थिति किसी भी जमावड़े का न केवल सम्मान बढ़ाती है अपितु उसकी पवित्रता और विश्वसनीयता भी प्रमाणित करती है। किन्तु जलजजी ने कहा था - ‘पहले देखिएगा कि आयोजन किसके नियन्त्रण में है, आयोजक कौन है। ठोक बजा कर देखकर फिर मुझे बताइएगा। उसके बाद ही धरने पर बैठने पर विचार करेंगे।
धरनास्थल जाकर देखा तो निराशा हुई। साधनों की शुचिता वहाँ थी ही नहीं। मैंने जलजजी को विसतार से बताया तो खिन्न हो गए। बोले - ‘ऐसे लोगों के साथ बैठना तो क्षण भर को भी उचित नहीं। भगवान अण्णा की रक्षा करे।’ मैंने पूछा - ‘तो बताएँ, क्या करना है?’ जलजजी ने अत्यधिक दुःखी मन से कहा - ‘अपने-अपने घर में ही बैठ कर प्रभु स्मरण करें और अण्णा के लिए प्रार्थना करें। वैसे, आप क्या कहते हैं?’ मैंने कहा - ‘विवेक कहता है कि आपकी बात मान लूँ और हृदय कहता है कि जाकर बैठ जाऊँ।’ जलजजी ने उसी खिन्न स्वर में कहा - ‘निर्णय तो आप ही करें किन्तु विवेकसंगत निर्णय बेहतर और श्रेयस्कर होते हैं।’ लिहाजा, मैं दूर से देखकर ही लौट आया। एक छोटी सी रकम लेकर गया था। एक परिचित के हाथों, आयोजकों तक पहुँचाई और हसरत भरी नजरों से देखता हुआ, ‘दुःखी-मन, खिन्न वदन’ लौट आया।
लौट तो आया किन्तु मन उचटा रहा। माथा जस का तस चढ़ा हुआ था, आँखों का भारीपन, कनपटियों का चटखना और जी मिचलाना यथावत् बन हुआ था। दो बजे से, हमारी शाखा के बीमा अभिकर्ताओं की एक बैठक थी। वहाँ पहुँचा तो सही किन्तु मन कहीं और था। ऐसी बैठकों में मैं सबसे आगे, पहली पंक्ति में बैठता हूँ। किन्तु आज सबसे पीछे बैठा। सब कुछ भारी-भारी था, अनमनपना बना हुआ था, मन की उदासी तनिक भी कम नहीं हो रही थी। साढ़े चार बजे के आसपास वहाँ से निकल भागा। उत्तमार्द्ध को लिया। उन्हें कुछ खरीदी करनी थी। उन्हें बाजार ले गया। वे खरीदी में व्यस्त हुईं और मैं लस्त-पस्त दशा में दुकान में पसर गया। जी का मिचलाना अब घबराहट में बदल गया था। मुझे अपनी धड़कन की गति और आवाज तेज होती लगने लगी। लगा, यहाँ से उठ नहीं पाऊँगा। मेरी दशा देख दुकानदार घबरा गया। उसने तबीयत की पूछताछ की, पानी की मनुहार की। मैंने संकेतों से ही मना किया। उसकी घबराहट और बढ़ गई। बोला - ‘बाबूजी! आपको घर पर छोड़ दूँ?’ मेरी आँखें खुलने से मना कर रही थीं। मैंने हाथ से इशारा किया - नहीं। तब तक मेरी उत्तमार्द्ध अपनी खरीदी पूरी कर चुकी थीं। मैं उठने लगा तो बोली - ‘कुछ देर और रुकिए। मैं सब्जी भी खरीद लूँ।’ मैंने तत्क्षण मना कर दिया और कहा - ‘फौरन घर चलिए। मुझे अच्छा नहीं लग रहा। आपको छोड़ कर डॉक्टर साहब के पास जाऊँगा।’ वे घबरा गईं। चलने से पहले मैंने कैलाश शर्मा को फोन किया। वह अभिकर्ताओं की बैठक में ही था। उससे कहा - ‘बैठक खत्म होते ही मेरे घर पहुँचो। मेरी तबीयत ठीक नहीं है। डॉक्टर के पास चलना है।’ उत्तमार्द्ध को लेकर घर पहुँचा और डॉक्टर सुभेदार साहब के सहायक डॉक्टर समीर को फोन लगाया। मेरी दशा सुनते ही बोले - ‘फौरन आ जाईए। मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ।’ तब तक कैलाश भी पहुँच गया।
मुझे बिलकुल ही अच्छा नहीं लग रहा था। डॉक्टर के पास अकेले जाने का आत्म विश्वास नहीं था। कैलाश के साथ अस्पताल पहुँचा। डॉक्टर सुभेदार साहब और डॉक्टर समीर को कुछ कहता, उससे पहले ही डॉक्टर समीर ने कहा - ‘हजारेजी की गिरफ्तारी का तनाव ले बैठे हैं?’ हाँ करने की हिम्मत नहीं हुई और इंकार कर पाना मुमकिन नहीं था। सुभेदार साहब ने मेरी जाँच-परख की। दो बार रक्त-चाप जाँचा और कहा - ‘आपको तो हाई बीपी है!’ पूछने पर बताया - 150/120. इस बारे में मुझे कोई ज्ञान नहीं है। अपनी ओर मुझे ताकता देख सुभेदार साहब बोले - ‘ऊपरवाला 150 दुखदायी नहीं है किन्तु नीचेवाला 120 तो चिन्ताजनक है। आप लापरवाही बिलकुल मत बरतिएगा।’ उन्होंने ईसीजी भी हाथों-हाथ करवाया। रिपोर्ट देखी तो बोले - ‘आपकी धड़कन भी बढ़ी हुई है।’ उन्होंने दवाइयाँ लिखीं, उन्हें लेने के निर्देश समझाए और सख्ती से किए जाने वाले परहेज विस्तार से बताए।मैं चलने को हुआ तो सुभेदार साहब ने रोका और कहा - ‘एक बात याद रखिएगा! इस भ्रम में मत रहिएगा कि बीपी ठीक हो जाएगा। बीपी और डाइबीटीज एक बार हो जाने पर इनसे मुक्ति पाना असम्भवप्रायः ही होता है। नियमित रूप से दवाइयाँ लेकर आप इन्हें नियन्त्रित कर सकते हैं, इनसे मुक्त नहीं हो सकते।’
मैं चेम्बर से बाहर निकला। पीछे-पीछे कैलाश भी। दो कदम भी नहीं चला होऊँगा कि कैलाश ने कहा - ‘अण्णा हजारे की गिरफ्तारी से आप इतने परेशान हो गए? आप तो हमें समझाते हैं! मैं आपको क्या समझाऊँ। ऐसा तो होता रहता है। दिल पर मत लीजिए। भूल जाईए।’
मैं हँस नहीं पाया। मैं अण्णा से कई बातों पर असहमत हूँ किन्तु उनके अभियान का समर्थक हूँ। मैं अपने आपको ‘अण्णा का असहमत समर्थक’ कहता हूँ। नहीं जानता कि आज मेरा रक्त चाप क्यों बढ़ा। किन्तु यदि इसका कारण सचमुच में अण्णा की गिरफ्तारी ही है तो यकीन मानिए, मुझे बहुत खुशी है।
अण्णा के इस ‘असहमत समर्थक’ को यह प्राप्ति किसी स्वर्ण पदक से कम नहीं लग रही है।
अन्ना के "असहमत समर्थक" बने रहिए पर "स्वास्थ्य" का भी ध्यान रखिए। अन्ना के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है कि व्यवस्था का कोढ लोकपाल बिल पास होते ही ठीक हो जाएगा।
ReplyDeleteस्वास्थ्य का ध्यान रखें, सब ठीक हो जायेगा।
ReplyDeleteहमारा भी यही अनुरोध है कि इतना स्ट्रैस मत लीजिये।
ReplyDeleteलाख टके की बात अगर ''बीपी और डाइबीटीज एक बार हो जाने पर इनसे मुक्ति पाना असम्भवप्रायः ही होता है।'' में प्रायः (नहीं प्राय) शब्द को हटा दें. आपकी पोस्ट हमें ऐसा बुजुर्ग न बना दे, जो स्वास्थ्य का ख्याल रखने की नसीहत देता रहता है.
ReplyDeleteस्वास्थ्य का ध्यान रखें,
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