श्वेत, लाल, पीले, नीलाभ
गुलाब ही गुलाब ही गुलाब!
घुँघराली, दल पर दल पंखुरियाँ!
काँटों की सीढ़ियाँ, हरी-हरी पत्तियाँ!
एक-एक पौधे से एक-एक डाली
कटी-छँटी सज-धज नखराली!
श्रंगों की रति का मनचीता त्यौहार
नयनाभिराम मोहक अलौकी संसार!
मैंने प्रदर्शनी के गुलाबों से पूछा:
कैसा लग रहा है?
कोई टिप्पणी?
बोले-यहाँ क्या निहारते हो
बन्द-बन्द हॉल में, पण्डाल में,
वहाँ आओ, जहाँ हम चहकते हैं
महकते हैं, क्यारियों के थाल में!
पर आप वहाँ क्यों आएँगे
हमको ही टहनियों से काट-छाँट लाएँगे,
सुन्दर होने की सजा देंगे,
फिर सजाएँगे!
अब हम हैं भी क्या?
आपके सौन्दर्यबोध की सेवा में
आपके अवलोकनार्थ
अपने ताजा शव हैं!
आप हमें निहारकर अपने घर जाएँगे
पर हम तो अब
अपने घर नहीं लौट पाएँगे!
अपनी जड़ों से कटने के बाद
कोई कहीं का नहीं रहता!
देखना दिखाना कुछ घण्टों का
फिर आप ही हमें
घूरे पर पटक आएँगे!
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गुलाब ही गुलाब ही गुलाब!
घुँघराली, दल पर दल पंखुरियाँ!
काँटों की सीढ़ियाँ, हरी-हरी पत्तियाँ!
एक-एक पौधे से एक-एक डाली
कटी-छँटी सज-धज नखराली!
श्रंगों की रति का मनचीता त्यौहार
नयनाभिराम मोहक अलौकी संसार!
मैंने प्रदर्शनी के गुलाबों से पूछा:
कैसा लग रहा है?
कोई टिप्पणी?
बोले-यहाँ क्या निहारते हो
बन्द-बन्द हॉल में, पण्डाल में,
वहाँ आओ, जहाँ हम चहकते हैं
महकते हैं, क्यारियों के थाल में!
पर आप वहाँ क्यों आएँगे
हमको ही टहनियों से काट-छाँट लाएँगे,
सुन्दर होने की सजा देंगे,
फिर सजाएँगे!
अब हम हैं भी क्या?
आपके सौन्दर्यबोध की सेवा में
आपके अवलोकनार्थ
अपने ताजा शव हैं!
आप हमें निहारकर अपने घर जाएँगे
पर हम तो अब
अपने घर नहीं लौट पाएँगे!
अपनी जड़ों से कटने के बाद
कोई कहीं का नहीं रहता!
देखना दिखाना कुछ घण्टों का
फिर आप ही हमें
घूरे पर पटक आएँगे!
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‘शब्द तो कुली हैं’ कविता संग्रह की इस कविता को अन्यत्र छापने/प्रसारित करने से पहले सरोज भाई से अवश्य पूछ लें।
सरोजकुमार : इन्दौर (1938) में जन्म। एम.ए., एल.एल.बी., पी-एच.डी. की पढ़ाई-लिखाई। इसी कालखण्ड में जागरण (इन्दौर) में साहित्य सम्पादक। लम्बे समय तक महाविद्यालय एवम् विश्व विद्यालय में प्राध्यापन। म. प्र. उच्च शिक्षा अनुदान आयोग (भोपाल), एन. सी. ई. आर. टी. (नई दिल्ली), भारतीय भाषा संस्थान (हैदराबाद), म. प्र. लोक सेवा आयोग (इन्दौर) से सम्बन्धित अनेक सक्रियताएँ। काव्यरचना के साथ-साथ काव्यपाठ में प्रारम्भ से रुचि। देश, विदेश (आस्ट्रेलिया एवम् अमेरीका) में अनेक नगरों में काव्यपाठ।
पहले कविता-संग्रह ‘लौटती है नदी’ में प्रारम्भिक दौर की कविताएँ संकलित। ‘नई दुनिया’ (इन्दौर) में प्रति शुक्रवार, दस वर्षों तक (आठवें दशक में) चर्चित कविता स्तम्भ ‘स्वान्तः दुखाय’। ‘सरोजकुमार की कुछ कविताएँ’ एवम् ‘नमोस्तु’ दो बड़े कविता ब्रोशर प्रकाशित। लम्बी कविता ‘शहर’ इन्दौर विश्व विद्यालय के बी. ए. (द्वितीय वर्ष) के पाठ्यक्रम में एवम् ‘जड़ें’ सीबीएसई की कक्षा आठवीं की पुस्तक ‘नवतारा’ में सम्मिलित। कविताओं के नाट्य-मंचन। रंगकर्म से गहरा जुड़ाव। ‘नई दुनिया’ में वर्षों से साहित्य सम्पादन।
अनेक सम्मानों में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ट्रस्ट का ‘मैथिलीशरण गुप्त सम्मान’ (’93), ‘अखिल भारतीय काका हाथरसी व्यंग्य सम्मान’ (’96), हिन्दी समाज, सिडनी (आस्ट्रेलिया) द्वारा अभिनन्दन (’96), ‘मधुवन’ भोपाल का ‘श्रेष्ठ कलागुरु सम्मान’ (2001), ‘दिनकर सोनवलकर स्मृति सम्मान’ (2002), जागृति जनता मंच, इन्दौर द्वारा सार्वजनिक सम्मान (2003), म. प्र. लेखक संघ, भोपाल द्वारा ‘माणिक वर्मा व्यंग्य सम्मान’ (2009), ‘पं. रामानन्द तिवारी प्रतिष्ठा सम्मान’ (2010) आदि।
पता - ‘मनोरम’, 37 पत्रकार कॉलोनी, इन्दौर - 452018. फोन - (0731) 2561919.
हर जगह प्रस्तुतीकरण में झटकती सहजता..
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