आपका अधिकार है किश्त भुगतान विधि में परिवर्तन

एनानीमस के नाम से एक पाठिका ने तीन बातें पूछी हैं-

1. लैप्स हुई पॉलिसी के लिए क्या किया जा सकता है? शायद अलग अलग तरह की पॉलिसी के लिए अलग अलग नियम हैं।

आपने बिलकुल ठीक सोचा। कालातीत (लेप्स) पालिसी के पुनर्चलन (चालू कराने) के कुछ नियम सामान्य होते हैं जो सब पालिसियों पर समान रूप से लागू होते हैं। पालिसीधारक की श्रेणी (जो उसके व्यवसाय से निर्धारित होती है), उसकी आयु, पालिसी कितनी चल चुकी है, बीमा धन जैसी कुछ बातें ‘प्राथमिक नियम’ हैं किन्तु योजना (पालिसी) कौन सी ली है, इस पर भी काफी कुछ निर्भर करता है। ये सारी बातें शाखा कार्यालय से सम्पर्क करने पर आपको विस्तार से बता दी जाएँगी।

इस सम्बन्ध मे कृपया मेरी लेप्स पालिसियो के पुनर्चलन का विशेष अभियान शीर्षक पोस्ट देखें। कई बातें स्पष्ट हो जाएँगी।

2. आजकल बहुत से एजेन्ट पहले की तरह किश्त के भुगतान आदि का समय पहले की तरह याद नहीं दिलाते। इसका एक कारण शायद यह भी है कि वे बहुत से कामों में हाथ डाले होते हैं और समय नहीं दे पाते।

अपने पालिसीधारकों को किश्त के देय होने की सूचना देना (और निर्धारित समयावधि में किश्त जमा कराने के लिए ग्राहक को प्रेरित, प्रोत्साहित कर, किश्त का भुगतान सुनिश्चित कराने की कोशिश करना) एजेण्ट की आचरण संहिता का महत्वपूर्ण और अनिवार्य अंश है।

आपका यह अनुमान सही हो सकता है कि एक से अधिक काम हाथ में लेने के कारण एजेण्ट इस संहिता का उल्लंघन करता हो। लेकिन यह उसकी अपनी कठिनाई है। इस आधार पर उसे आचरण संहिता से छूट नहीं मिलती। आप चाहें तो इसकी लिखित शिकायत, सम्बन्धित शाखा प्रबन्धक से कर सकते हैं। यह आपका अधिकार है। किन्तु मेरा विनम्र आग्रह है कि शिकायत करने के बाद, एजेण्ट के अनुनय-विनय से पिघल कर यदि आप अपनी शिकायत वापस लेने की मनःस्थिति में हों तो कृपया शिकायत करें ही नहीं। शिकायतों की वापसी अन्ततः ऐसे एजेण्टों का मनोबल ही बढ़ाती हैं और ग्राहकों के प्रति प्रबन्धन के मन मे अगम्भीरता उपजाती है।

3. क्या पॉलिसी रिन्यू करवाते समय फिर से डॉक्टरी जाँच आदि होती है ? यदि इस दौरान कोई बड़ा रोग हुआ हो तो क्या वह रिन्यू नहीं होती ?

जैसा कि मैंने ऊपर बताया है, पालिसी पुनर्चलन के लिए आवश्यकताओं का निर्धारण शाखा कार्यालय ही करेगा। आवश्यक होने पर आपसे विशेष चिकित्सा परीक्षण कराने के लिए कहा जा सकता है।

‘बड़े रोग’ से आपका आशय स्पष्ट नहीं है। कृपया अपनी ओर से किसी रोग को बड़ा या छोटा न मानें। रोगों का सुनिश्चित वर्गीकरण किया हुआ है। मुमकिन है, जिसे आप ‘बड़ा रोग‘ माने बैठे हैं, वह मामूली रोगों की सूची में हो।

चिकित्सा परीक्षण के आधार पर तीन में से कोई एक ही स्थिति सामने आएगी - (1) आपकी पालिसी पुनर्चलित हो सकेगी। या (2) पुनर्चलित नहीं हो सकेगी। या (3) अतिरिक्त प्रीमीयम के साथ पुनर्चलित हो सकेगी।

चिकित्सा परीक्षण के निष्कर्ष ही निर्णय का आधार होंगे।

श्रीPt.डी.के.शर्मा"वत्स"ने एक शिकायत की है, एक जानकारी चाही है और एक जिज्ञासा प्रस्तुत की है।

पहले उनकी शिकायत-

1.लगभग चार पहले अपने एजेंट के कहे अनुसार मैने न्यू जनरक्षा नाम की एक 2 लाख रूपए की पालिसी ली थी.हमारी अज्ञानता का लाभ उठाकर वो हमे एक पालिसी के बजाय 25-25 हजार की आठ पालिसियां थमा गया.वो तो अब जाकर मालूम हुआ कि वो अपने लाभ के लिए हमारा नुक्सान कर गया.

यह पढ़कर मैं शर्मिन्दा हूँ। किसी भी एजेण्ट ने ऐसा नहीं करना चाहिए। मुझे लगता है कि (जब आपने पालिसी ली थी, उस समय) नव व्यवसाय के सन्दर्भ में, पालिसी संख्या के आधार पर कोई प्रतियोगिता चल रही होगी। उसी के लालच में एजेण्ट ने यह अनपेक्षित और अनुचित आचरण किया होगा। अच्छा होता कि इसके लिए वह आपको विश्वास में लेता। कभी-कभी मैं भी ऐसा करता हूँ किन्तु ऐसे समय दो बातें ध्यान में रखता हूँ - (1) ग्राहक से स्पष्ट स्वीकृती लूँ। और (2) ऐसा करने से ग्राहक को किसी भी स्तर पर, कोई हानि न हो।

मेरी जमात के उस अनाम सदस्य ने आपके साथ जो किया, उसके लिए मैं आपसे क्षमा-याचना करता हूँ। वह जो भी हो, है तो एजेण्ट ही।

2.मेरी कुछ पालिसियों की किस्त भुगतान त्रैमासिक है तथा कुछ की अर्धवार्षिक.मैं आपसे यह जानना चाहता हूं कि क्या अब इनका भुगतान वार्षिक हो सकता है.

आप अपनी पालिसी की किश्त भुगतान विधि, पूरी पालिसी अवधि में चाहे जितनी बार बदल सकते हैं। यह सुविधा आपका अधिकार है। इस हेतु आपको न तो किसी से पूर्वानुमति लेनी है और न कोई पूछताछ करनी है।

बस, एक बात याद रखनी है-

किश्त भुगतान विधि सदैव ही पालिसी प्रारम्भ होने वाले महीने से ही प्रभावी होगी और वह भी तब जबकि आपने उस महीने की देय किश्त का भुगतान न किया हो।

इसे एक काल्‍‍पनिक उदाहरण से समझें -

माना कि आपकी पालिसी की किश्त भुगतान विधि तिमाही है और आपकी पालिसी, मार्च महीने में शुरु हुई है। अर्थात्, आपको मार्च में किश्त चुकानी है।

यदि आप अपनी इस पालिसी की किश्त भुगतान विधि बदल कर वार्षिक या अर्ध्‍द वार्षिक कराना चाहते हैं तो-

(अ) मार्च वाली किश्त नहीं भरें।

(ब) सम्बन्धित शाखा कार्यालय में एक सामान्य आवेदन दे दें। आपकी इच्छानुसार, आपकी किश्त भुगतान विधि बदल दी जाएगी।

(स) यदि आप भूल गए और आपने मार्च वाल किश्त जमा करा दी, और आप किश्त भुगतान विधि वार्षिक ही कराना चाहते हैं तो अब आपको, शेष तीन तिमाही किश्तें जमा कराते हुए अगले मार्च तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। किन्तु

(द) यदि आप किश्त भुगतान विधि अर्ध्‍द वार्षिक कराना चाहते थे तो सितम्बर में ही आप यह परिवर्तन करा सकते हैं। उसके लिए आप जून वाली किश्त जमा कर, तत्काल ही किश्त भुगतान विधि अर्ध्‍द वार्षिक करने का आवेदन दे दीजिए। आपकी किश्त भुगतान विधि सितम्बर से अर्ध्‍द वार्षिक कर दी जाएगी।

किश्त भुगतान विधि वार्षिक कराने के लिए आपको मार्च तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी और तब भी याद रखिएगा-मार्च वाली किश्त जमा मत कराइएगा।

अब देख लीजिए कि आपकी पालिसी कौन से महीने में शुरु हुई है। उस महीने से 6 महीने का अन्तराल जोड़ कर भुगतान विधि अर्ध्‍द वार्षिक करने हेतु आवेदन दे दीजिए और यदि वार्षिक स्तर पर ही भुगतान करना चाहते हैं तो इस परिवर्तन के लिए, पालिसी प्रारम्भ होने वाले महीने की प्रतीक्षा कीजिए।

एक बात और - इस उदाहरण में तिमाही से वार्षिक अथवा अर्ध्‍द वार्षिक विधि में परिवर्तन की बात कही गई है। किन्तु यह सुविधा इसके विपरीत भी उपलब्ध है। अर्थात् यदि आपकी किश्त भुगतान विधि वार्षिक है और आप उसे तिमाही या अर्ध्‍द वार्षिक कराना चाहते हैं तो, यह सुविधा भी आपको अधिकार के रूप में प्राप्त है। चाहे जब, चाहे जितनी बार।

3.आपने जो लेख के माध्यम से भुगतान में मूल प्रीमियम दर पर 1.5% की छूट के बारे में बताया है. किन्तु हमें तो कभी इस प्रकार की कोई छूट प्राप्त नहीं हुई.

यदि आपने किश्त भुगतान विधि अर्ध्‍द वार्षिक ले रखी है तो विश्वास कीजिए, आपको मूल प्रीमीयम दर में 1.5 प्रतिशत की छूट मिली हुई है। आप जब किश्त भुगतान विधि वार्षिक अथवा तिमाही कराएँगे तब आपको नई किश्त की रकम से यह अन्तर तत्काल ही अनुभव हो जाएगा।

ऐसी ही कुछ और छोटी-छोटी बातें अगली बार।

सदैव की तरह ही कृपया ध्‍‍यान दीजिएगा-ये जानकारियां मेरे श्रेष्ठ ज्ञान और अनुभव के आधार पर हैं। भारतीय जीवन बीमा निगम की ओर से नहीं।

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इस ब्लाग पर, प्रत्येक गुरुवार को, जीवन बीमा से सम्बन्धित जानकारियाँ उपलब्ध कराई जा रही हैं। (इस स्थिति के अपवाद सम्भव हैं।) आपकी बीमा जिज्ञासाओं/समस्याओं का समाधान उपलब्ध कराने का यथा सम्भव प्रयास करूँगा। अपनी जिज्ञासा/समस्या को सार्वजनिक न करना चाहें तो मुझे bairagivishnu@gmail.com पर मेल कर दें। आप चाहेंगे तो आपकी पहचान पूर्णतः गुप्त रखी जाएगी। यदि पालिसी नम्बर देंगे तो अधिकाधिक सुनिश्चित समाधान प्रस्तुत करने में सहायता मिलेगी। यह सुविधा पूर्णतः निःशुल्क है।

यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें । यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें । मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर - 19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001.


कृपया मेरे ब्लाग ‘मित्र-धन’ http://mitradhan.blogspot.com पर भी एक नजर डालें ।

5 comments:

  1. Kaphi achchhi jankari di hai aapne,,,
    Regards

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  2. thanks for the information...want to share that when i was searching for the user friendly Indian Language typing tool...found 'quillpad'...do u use the same...try this one...

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  3. बहुत ही उपयोगी जानकारीयां मिली।धन्यवाद।

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  4. बहुत उपयोगी..

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  5. बैरागी जी, वैसे तो मैं एक बहुत ही साधारण सा इन्सान हूं , जो कि ना तो भारी भरकम शब्दों का प्रयोग करना जानता हूं ओर ना ही अभी तक इस प्रकार के शब्दों का अर्थ समझ पाने के योग्य बन पाया हूं.बस आप जैसे गुणीजनों के सानिध्य में रहकर यूं ही थोडा बहुत सीखने की कोशिश भर कर लेता हूं.
    विगत 5-6 माह के अपने चिट्ठाकारी के अनुभव में मैने यही पाया है कि जहां अधिकतर चिट्ठाकार झूठी वाहवाही,फालतू की बकवास,बहस एवं अपनी ढफली अपना राग अलापने में लगे हुए हैं,वहां आप सही मायनों में चिट्ठाकारी कर रहे हैं.आपकी विनम्रता के तो यहां लगभग सभी कायल हैं, साथ ही आपके लेखन की प्रभावशाली प्रस्तुति, पाठकों की जिज्ञासाओं/समस्याओं को, विभिन्न तरह से हल करने की व समझाने की शैली भी गहरी छाप छोडती है.
    आप जिस प्रकार का कार्य कर रहें हैं, उसके लिए आप सचमुच साधुवाद के पात्र हैं.
    आपके प्रयास को देखकर मैं कह सकता हूं कि चिट्ठाकारी करने में भी कुछ तो सार्थक है.

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