शुध्‍द बधाइयाँ, क्यों कि ये मेरी नहीं हैं

अभी सवेरे के आठ ही बजे होंगे। माघ अमावस्या की यह सुबह पर्याप्त ठण्डी है। लेकिन मैं अव्यक्त ऊष्‍मा की गुनगुनी शाल से लिपटा अनुभव कर रहा हूँ अपने आप को।
श्रीमतीजी को छोड़ कर अभी ही लौटा हूँ। वे शासकीय विद्यालय में अध्यापक हैं। उन्हें स्कूल छोड़ना मेरी दिनचर्या का अंग है। उन्हें आज जल्दी पहुँचना था। स्कूल में ध्वजारोहण समय पर हो जाना चाहिए।

आज सूरज भी अधिक खुश लगा। बादलों की कैद से मुक्त जो था। स्कूल की धुली ड्रेस पहन कर उल्लास से उछलते हुए, स्कूल जा रहे, किसी गरीब माँ के बेटे की तरह खुश लग रहा था। उसके बस्ते में आज ढेर सारी किरणें थीं : नरम-नरम और ठण्ड को हड़काती हुई।

सड़कों पर आवाजाही रोज सवेरे के मुकाबले तनिक अधिक थी लेकिन अधिकांश स्कूली बच्चे ही थे। सबके सब खुश। लगा, आज वे सब एक साथ स्कूल पहुँचना चाह रहे थे और इसीलिए एक-के-पीछे-एक पंक्तिबध्द होने के बजाय, हाथ में हाथ डाले चल रहे थे, पूरी सड़क पर फैलकर। मानो, न तो कोई आगे रहना चाह रहा हो और न ही किसी को पीछे रहने देना चाह रहा हो। सबके सब, सरपट भागते, एक-दूसरे का नाम जोर-जोर से लेकर पुकारते और साइकिलों पर पीछे से आकर उन्हें पीछे छोड़ते बच्चों की परवाह किए बगैर।

ऐसा नहीं कि सड़कों पर बच्चों के सिवाय और कोई नहीं था। सयाने लोग भी थे लेकिन असहज और शायद तनावग्रस्त। सरकारी कर्मचारी होंगे। समय पर मुकाम पर पहुँचने का तनाव उनक चेहरों पर चिपका हुआ था। वे बच्चों की तरह न तो उल्लसित थे और न ही तरोताजा। दिन शुरु होने से पहले ही थकने की तैयारी में हों मानो।

लौटते में सड़कों पर आवाजाही तो उतनी ही थी किन्तु गति सबकी तनिक तेज थी। दो बार टकराते-टकराते बचा। दोनों ही बार सामने से सायकलों पर आ रहे बच्चे थे। मुझे कोई जल्दी नहीं थी लेकिन बच्चों को तो थी। पहले वाला बच्चा तो मुझे देखकर, मुस्कुरा कर अपनी सायकल पर सवार हो गया किन्तु दूसरा वाले ने ऐसा नहीं किया। ‘सारी अंकल! हेप्पी रिपब्लिक डे अंकल!’ कह कर तेजी से पैडल मारते हुए तेजी से बढ़ चला।

उसने जिस प्रसन्नता, उल्लास, उत्साह और निश्‍छल आत्मीयता से मुझे ‘विश’ (मुझे नहीं पता कि यहाँ 'विश' लिख्ना चाहिए या ‘ग्रीट’) किया उसके सामने दुनिया के सारे गुलाब शर्मा गए, चिडियाएं चहकना भूल गईं, सूरज की चमक कम हो गई, हवाएँ ठिठक गईं मानो, इस प्रतीक्षा में कि वह बच्चा उन्हें भी ‘हेप्पी रिपब्लिक डे’ कहे।

उस बच्चे ने मुझे निहाल कर दिया। लौटकर दरवाजे का ताला खोलकर घर में प्रवेश किया तो लगा कि उस अपरिचित बच्चे का निष्‍कुलश मन और खिलखिलाता, झरने की तरह कल-कल करता लाड़-प्यार भी मेरे साथ चला आया है।

मैं सिस्टम खोल कर यह पोस्ट लिख रहा हूँ। अंगुलियाँ बार-बार अटक रही हैं, मन भटक रहा है। स्क्रीन धुंधला रहा है। टाइपिंग की गति बाधित हो रही है।

बरसों बाद ऐसा उल्लास भरा, जगर-मगर करता, उजला-उजला गणतन्त्र दिवस अनुभव हुआ है मुझे। उस अबोध बच्चे ने मुझे जिस अयाचित अकूत सम्पत्ति से मालामाल कर दिया है, वह सबकी सब मैं आप सबको अर्पित करता हूँ।

अपनी भावनाएँ मिला दूँगा तो बधाई दूषित हो जाएंगी। सो, इस गणतन्त्र दिवस पर आप सबको, मेरे जरिए उस अपरिचित, अबोध बच्चे की, बिना मिलावटवाली, शुध्द बधाइयाँ।

बहुत-बहुत बधाइयाँ।

हार्दिक अभिनन्दन।

जैसा त्यौहार मेरा हुआ, वैसा आप सबका भी हो।

अमर रहे गणतन्त्र हमारा।

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18 comments:

  1. निष्कलुष बालक मन से गणतंत्र दिवस की यह बधाई हमें भविष्य के लिए आश्वस्त करती है। आज के दिन इस से अच्छा और शुभ क्या हो सकता है?

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  2. कसा हुआ व्यंग धारदार तीखा ... वाह वाह श्रीमान
    गणतंत्र दिवस पर आपको शुभकामनाएं .. इस देश का लोकतंत्र लोभ तंत्र से उबर कर वास्तविक लोकतंत्र हो जाएऐसी प्रभु से कामना है
    जी साहब

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  3. गणतंत्र दिवस की शुभकामनाऐं!!

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  4. बच्चो में यह उत्साह देखते हुए कुछ खुशी महसूस होती है ..पर बड़े होने पर यह वही मुरझाये चेहरे न बनने पाये यही दुआ करे ...गणतन्त्र दिवस की बधाई

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  5. उसने जिस प्रसन्नता, उल्लास, उत्साह और निश्‍छल आत्मीयता से मुझे ‘विश’ किया उसके सामने दुनिया के सारे गुलाब शर्मा गए, चिडियाएं चहकना भूल गईं, सूरज की चमक कम हो गई, हवाएँ ठिठक गईं मानो, इस प्रतीक्षा में कि वह बच्चा उन्हें भी ‘हेप्पी रिपब्लिक डे’ कहे।
    इस निष्कपट उल्लास के बारे में पढ़कर बहुत अच्छा लगा. हमारी तरफ़ से भी गणतंत्र दिवस पर आपको शुभकामनाएं!

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  6. भाई साहिब , प्रणाम.
    गणतंत्र दिवस की आपको ढेर सारी शुभकामनाएं.

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  7. बरसों बाद ऐसा उल्लास भरा, जगर-मगर करता, उजला-उजला गणतन्त्र दिवस आया है । उस अबोध बच्चे ने जिस अयाचित अकूत सम्पत्ति से आपको मालामाल कर दिया , ईशवर से प्रार्थना है कि ऎसा उल्लास ऎसी ऊर्जा हम सब में भर दे , ताकि भारत मां का हर बच्चा आन बान और शान से गणतंत्र दिवस का जश्न मना सके ।

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  8. बहुत बहुत बधाई ! आपका लेख पढ़कर मुझे भी लग रहा है कि उस बच्चे की बधाई और कुछ उत्साह इस तरफ भी आ गया। लेख के लिए धन्यवाद।
    घुघूती बासूती

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  9. हमारे अपार्टमेन्ट में एक बुजुर्ग रहते हैं.. कम से कम ७५-८० के होंगे.. हमेशा लिफ्ट में मिलते हैं और इतने प्यार से Have a good day कह कर जाते हैं कि दिल खुश हो जाता है.. एक मुस्कराहट हमेशा उनके चेहरे पर होता है, किसी को पहचानते हो या ना पहचानते हों पर हर किसे को यह विश जरूर करते हैं..

    आपका यह पोस्ट पढ़कर उनकी याद आ गयी.. :)

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  10. अच्छी पोस्ट और गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई

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  11. प्रिय भाई !
    " हिरदा में उपजे प्रेम का भाव , मानता करजो ,
    न्हाना बालक सो रेवे निर्मल सुभाव , मानता करजो !"
    नन्हे बाल-मन की यही निश्छलता , निर्मलता , निष्कलुष ता ही वर्तमान समाज मे व्याप्त विकृतियों ,
    विषमताओं , बुराइओं मे भी संतुलन बनाए हुए है . यह अक्षय - निर्झरी निरंतर प्रवाहमान रहे ,
    इसीए अपेक्षा के साथ गणतंत्र की अनंत शुभकामनाएँ !

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  12. सटीक!

    आपको एवं आपके परिवार को गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

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  13. गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं।

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  14. बहुत सही लिखा आपने, आपको गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं

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  15. हम भारतीय इसीलिए तो सबसे ज्‍यादा देशप्रेमी माने जाते हैं। एक बार पुन: , आपको तथा आपके परिवार को गणतंत्र दिवस की ढेरों शुभकामनाएं।

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  16. बहुत-बहुत बधाइयाँ।

    हार्दिक अभिनन्दन।

    जैसा त्यौहार मेरा हुआ, वैसा आप सबका भी हो।

    अमर रहे गणतन्त्र हमारा।

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  17. आदरणीय बैरागी जी,
    आज ही आपका ईमेल पढ़ा और आज ही आपका ब्लाग भी देखा। आपको धन्यवाद और सभी को गणतंत्र दिवस की ढेर सारी शुभकामनाऐं।
    ऐक बात और मैं देहली कभी कभी जरूरत होने पर ही जाता हूँ। मैने अभी हाल ही में हिन्दी टाइपिंग सिखी है जो आपके ब्लाग पर पहली बार हिन्दी में टाइप कर सार्थक हो गया है।

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  18. आज दो दिन बाद चन्डीगढ से लौटी हूँ आते ही पहले मेल देखी STROKE केबारे मे जानकारी के लिये धन्यवाद मुझे जरुरी काम से जन पडा इस लिये समय पर गणतन्त्र दिवस की शुभ कामनायें नही भेज सकी देर से ही सही मेरी शुभ कामनायें स्वीकार करं.आपका आलेख मन को छू गया और अपने बचपन की भी याद दिला गया जब हम भी इतने उत्साह से ये दिन मनाते थे आज इस राष्ट्रिये पर्व पर भी हम अपने जरूरी कामों को प्रथमिकता देते हैंकई बार तो राष्ट्रगान पर खडे होना भी भूल जाते हैं. शायद बडा होने पर इन्सान कुछ तो संवेदन्हीन हो जाता है जब उसे अपनी प्राथमिकतायें देश से बडी लगने लगती हैं

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