लो जी! मैं उकस गया

कल वाली मेरी पोस्ट राष्‍‍ट्र बनाम ‘माँ’ और ‘वार वनीता’ पर मायोपिकजी की टिप्पणी नहीं आती तो सच मानिए मेरी दशा उस महिला जैसी हो जाती जिसने नई, मँहगी, भारी-भरकम बनारसी साड़ी पहनी हो और कोई उससे यह भी न पूछे-‘साड़ी नई है? कितने की है?’


सो, सबसे पहले मायोपिकजी को अन्तर्मन से धन्यवाद और आभार। यदि वे ‘अपनीवाली’ पर नहीं आते तो मुझे यह सब कहने का निमित्त कैसे मिलता?


मैं कांग्रेसी हूँ या नहीं इसकी सफाई व्यर्थ होगी (क्योंकि मायोपिकजी ने मेरी सारी पोस्टें थोड़े ही पढ़ी हैं?) किन्तु यह कहना जरूरी है कि मैं बरसों 'शाखा' में गया हूँ, खूब 'दक्ष-आराम' किया है और ‘धरम पर मरना सीखा है, धरम से कैसे हट जाएँ’ तथा ‘भारत के वीरों जागो, सोये सितारों जागो’ जैसे समवेत गीतों में अपना कण्ठ मिलाया है।


‘संघ’ की अनेक ‘परोक्ष विशेषताएँ’ मेरे लिए सदैव आकर्षण का विषय। रहीं उनमें से चार मुझे महत्वपूर्ण लगीं। पहली : जिस काम के लिए दूसरों को वर्जित करो वही काम दबंगता से खुद करो किन्तु हाँ, अकेले मत करो, सामूहिक रूप से करो और दबदबा बनाते हुए करो ताकि तत्काल प्रतिरोध, प्रतिवाद और प्रतिकार करने का साहस कोई नहीं जुटा पाए। दूसरी : स्‍ववर्जित काम करते हुए पकड़े जाओ तो जोर-जोर से कहो कि वह काम मैं ने किया ही नहीं, लोग झूठ बोल रहे हैं। तीसरी : फिर भी लोग न मानें और बात बनती न दिखाई दे तो अपने विरोधी की वैसी ही गलती बताओ और उसे दलील बना कर अपनी गलती का औचित्य साबित करो। चौथी : ऐसा करते समय यह विशेष ध्यान रखो कि वृत्ति का हवाला मत दो, व्यक्ति का हवाला दो क्योंकि लोग वृत्ति को नहीं जानते, व्यक्ति को जानते हैं। (संघ के विरोधी इस तरीके को ‘व्यक्तित्व हनन‘ अथवा ‘चरित्र हनन’ करना कहते हैं।)


मायोपिकजी की राजनीतिक प्रतिबध्दता मुझे नहीं पता किन्तु वे संघ के निष्ठावान स्वयंसेवक की तरह व्यवहार करते दिखाई दे रहे हैं और यही भूमिका निभाते हुए उन्होंने इन्हीं विशेषताओं का सहारा लिया। उनकी ट्रेनिंग सफल रही। बधाई।


मैंने अपनी पोस्ट में किसी का नाम नहीं लिया किन्तु मायोपिकजी को शायद समस्त सम्बन्धितों के नाम नजर आ गए। ऐसा ही होता है। आदमी सारी दुनिया से अपने पाप छुपा ले, अपने आपसे नहीं छुपा पाता और ऐसे में यदि कोई किसी और की बात करे तो भी उसे अपना ही उल्लेख अनुभव होता है।


मायोपिकजी ने किन्हीं कांग्रेसी मिनिस्टर किरण चौधरी द्वारा, राष्‍‍ट्रीय शोक काल में सूरजकुण्ड मेले का रंगारंग उद्घाटन का उल्लेख कर मुझे ‘उकसाते’ हुए पूछा है कि मैं चौधरीजी पर कब लिख रहा हूँ। नेक काम में देरी कैसी? लो जी! लिख दिया। फौरन। किरण चौधरी कोई ‘पवित्र गाय’ नहीं है जो राष्‍ट्रीय शोक काल में उत्सव मनाने के अपराध से मुक्त हो जाएँ। वे कांग्रेसी हों या कोई और, अपराध तो अपराध है। उनकी सजा भी वही जो मध्य प्रदेश के ‘संघियों’ की। अब मायोपिकजी की बारी है। वे बताएँ कि मध्यप्रदेश के संघियों को कब सजा दिलवा रहे हैं ताकि किरण चौधरी को सजा दिलवाने का उपक्रम शुरु किया जा सके?


लेकिन किरण चौधरी में और मायोपिकजी की जमात में एक मूलभूत अन्तर है। किरण चौधरी की जमात के लोग राष्ट्रवाद की ठेकेदारी नहीं करते। वे संस्कृति, नैतिकता, ईमानदारी, सदाचार और ऐसी ही तमाम बातों की दुहाइयाँ नहीं देते। वे अपनी गरेबान में भले ही न झाँकते हों किन्तु दूसरों की गरेबान पर भी नजर नहीं डालते। वे 'सोशल पुलिसिंग' भी नहीं करते। वे ‘भारतीय संस्‍कृति’ की दुहाई देकर महिलाओं को सड़कों पर नहीं पीटते। जो काम वे खुद करते हैं वे काम दूसरे करें तो आपत्ति नहीं उठाते।


इसके ठीक विपरीत संघ परिवारी वह सब करते हैं जिसके लिए वे दूसरों को मना करते हैं। वे ईमानदारी की दुहाई देते हैं और उनके आनुषांगिक संगठन भाजपा के राष्‍‍ट्रीय अध्यक्ष कैमरे के सामने 'मिठाई' के निमित्त प्रसन्नतापूर्वक रिश्‍वत लेते हैं। ‘हिन्दुओं की घर वापसी’ का अभियान चलाने वाले उनके जन-नायक, 'पैसा खुदा तो नहीं लेकिन खुदा कसम, खुदा से कम भी नहीं' कहते हुए नोटों की गड्डियाँ लेने में न तो देर करते हैं और न ही संकोच। वे ‘चरित्र’ की दुहाइयाँ देते हैं और उनके स्वयंसेवक, रंगरेलियाँ मनाते हुए 'मादरजात' अवस्‍‍था में पकड़े जाते हैं।


किसी गरीब हिन्दू की बेटी यदि किसी मुसलमान से प्रेम कर बैठे तो समूचे हिन्दुत्व पर संकट आ जाता है लेकिन खुद आडवाणी की सगी भतीजी एक मुसलमान के बच्चों की माँ बनी हुई है, इसका जिक्र नहीं करते। सुना तो यह भी है कि भाजपा के कम से कम दो मुसलमान नेताओं (उनमें से एक तो भूतपूर्व केन्द्रीय मन्त्री बताए जाते हैं) की वंश बेल बढ़ाने का पुण्य कार्य भी हिन्दू स्त्रियों के ही खाते में जमा है जिस पर एक भी ‘हिन्दू धर्म रक्षक संघी’ को आज तक आपत्ति नहीं हुई है।


वे इसाई मिशनरी संचालित स्कूलों को इसाईयत के प्रचार केन्द्र और धर्मान्तरण के कारखाने कहते हैं लेकिन मेरे शहर में आ जाइए, आपको ऐसे बीसियों ‘हिन्दू वीरों’ के दर्शन करा दूँगा जो सवेरे तो 'शाखा' में जाते हैं और दोपहर में अपने बच्चों या पोतों/पोतियो को लेने के लिए कान्वेण्ट स्कूल के सामने प्रतीक्षारत खड़े हैं। ‘संघ’ के कुछ 'निष्‍‍ठावान स्वयंसेवकों' ने, ‘धर्मान्तरण के ऐसे कारखानों’ में अपने बच्चों को प्रवेश दिलाने के लिए मुझसे सिफारिश कराई है।


‘संघ परिवारी’ आज भी 6 दिसम्बर को ‘हिन्दू शौर्य दिवस’ के रूप में मनाते हैं। इसी दिन बाबरी मस्जिद का ध्वंस, सुनियोजित तरीके से किया गया था। लेकिन मजे की बात यह है कि ‘छोटे सरदार’ से लेकर मेरे मोहल्ले के छुटभैया स्वयंसेवक तक, एक भी ‘हिन्दू नर पुंगव’ इस ‘शौर्य’ की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है। सब के सब एक स्वर में कहते हैं - ‘‘हिन्दू शौर्य दिवस का कारण बना ‘बाबरी मस्जिद ध्वंस’ मैं ने नहीं किया।’’ अपनी-अपनी जमानत का जुगाड़ सबकी जिन्दगी और मौत का सबब बन गया-हिन्दू धर्म और हिन्दुत्व गया भाड़ में। श्रेय लेने के लिए 'शूर वीर' हैं और जिम्मेदारी लेने के नाम पर 'शिखण्डी' को शर्मिन्दा कर दें। ये न तो बाप का नाम बताते हैं और न ही श्राध्द करते हैं। ये सबके सब मादा हैं, यह जानने के लिए इनकी पूँछे उठाकर देखने की भी जरूरत नहीं रखी भाई लोगों ने।


लेकिन मैं यह सब क्यो कह रहा हूँ? यह सब ही नहीं, इसका करोड़ गुना अधिक तो खुद मायोपिकजी को मालूम है-वह सब भी, जो दुनिया को नहीं मालूम। लेकिन यह सब नहीं कहता/लिखता तो मायोपिकजी निराश हो जाते, मुझे उकसाने का उनका उपक्रम अपूर्ण रह जाता।


सो, मायोपिकजी शायद अब अनुभव करें कि जिस जमात की सरपरस्ती वे उत्साह के अतिरेक की सीमा तक करते हैं उस जमात के बन्दे भी औसत मनुष्‍य ही हैं-देवता नहीं। उनमें भी वे तमाम कमजोरियाँ हैं जो बाकी सबमें हैं। उनकी जमात के लोग भी बाकी सब लोगों की तरह रिश्वत लेते-देते हैं, टैक्स चुराते हैं, नम्बर दो में खरीद-बिक्री करते हैं, यातायात के नियमों का उल्लंघन करते हैं, लोक भय के अधीन एक सामान्य व्यक्ति जितना चरित्रवान रह पाता है, उतने ही चरित्रवान वे भी रह पाते हैं, अपने स्वार्थ के लिए बिना सोचे, अपने सम्पूर्ण आत्म विश्‍‍वास से झूठ बोल लेते हैं, पाखण्ड करने में तो उनका कोई सानी है ही नहीं।


इसलिए, हे! राष्ट्रीयता के ठेकेदारों के सरपरस्त श्रीमान् मायोपिकजी! मुद्दे की बात यह है कि आप और आपकी जमात के लोग जिस सहजता से पैमानों का दोहरीकरण कर रहे हैं, उस पर पुनर्विचार कीजिए। राष्‍‍ट्रीयता की दुहाई आप बेशक दें किन्तु अपनी बारी आने पर उस दुहाई को याद रखें। आप लोगों की ऐसी ही हरकतों के कारण ‘संघ’ को लांछन और आरोप झेलने पड़ रहे हैं। राष्‍‍ट्रीय प्रतीक का अपमान कोई भी करे, अपराध है। कोई कांग्रेसी है या संघी, इस आधार पर वह अपराध मुक्त नहीं होता।


दूसरों के अपराध को बचाव की दलील की तरह प्रयुक्त करने से आप निर्दोष नहीं हो जाते। उनके उन तमाम अपराधों को गिनवा कर तथा लोगों को वैसे अपराधों से मुक्ति दिलाने का वादा कर आप सत्ता में आते हैं तो आपकी यह न्यूनतम जिम्मदारी (मेरी हिम्मत देखिए कि मैं आपसे ‘जिम्मेदारी’ की उम्मीद करने लगा!) होती है कि आप वैसी कोई गलती नहीं करें। यदि दूसरों के अपराध के आधार पर आप अपराध करने की सुविधा और छूट लेना चाहते हैं तो फिर पुराने वाले ही क्या बुरे थे? लोगों ने उन्हें हटाया ही क्यों? उस दशा में तो फिर उन्हें ही चुना जाना चाहिए था-वे आपसे अधिक ‘अनुभवी अपराधी’ जो थे!

इसीलिए अपनी कल वाली पोस्ट की अन्तिम बात फिर कह रहा हूँ। यदि आप चाहते हैं कि आपकी ‘माँ’ को सारी दुनिया ‘देवी’ माने और उसकी पूजा करे तो इसकी शुरुआत आपको ही करनी पड़ेगी। यह बिलकुल नहीं चलेगा कि आप तो अपनी माँ के साथ ‘वार वनीता’ जैसा व्यवहार करें और चाहें कि बाकी सब उसे देवी मानें और पूजा करें।


यह न तो सम्भव है और न ही उचित।
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9 comments:

  1. आपने संघ की सबसे प्रमुख विशेषता तो आपने छोड़ ही दी.
    जिसका विरोध करना हो उसके चरित्र पर सबसे पहले हमला करो प्रचार तंत्र का उपयोग करके उसके चरित्र के बारे में इतना फैलाओ कि लोगों को थोड़ा थोड़ा यकीन होने लगे.
    इतिहास गवाह है संघ की इस कार्यप्रणाली से

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  2. उकसना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता और ख़ास कर उम्र के इस मोड़ पर.

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  3. बात तो सही कही है आपने।लेकिन इस लेख को पढ़ कुछ सुधार करने कि कोशिश हो तो बेहतर होगा।पूरे दॆश के लिए हितकर होगा।

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  4. हर जगह फिट होती है यह सलाह. आभार.

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  5. अबकी न आये मायोपिक जी!

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  6. "मजे की बात यह है कि ‘छोटे सरदार’ से लेकर मेरे मोहल्ले के छुटभैया स्वयंसेवक तक, एक भी ‘हिन्दू नर पुंगव’ इस ‘शौर्य’ की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है।"

    यही है वीरों की वीरता. पाकिस्तान बनाने के आरोप के लिए ऐसे लोग गांधी की जान ले सकते हैं मगर "सेकुलर" जिन्ना को छू भी नहीं सकते.

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  7. bairaagi ji aap to bhigo bhigo kar j----- maarte ho bahut badiyaa kaha aapne is anupam sach ka aainaa dikhaane ke liye aap badhaai ke paatar hain

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  8. ज़ोरदार ,धमाकेदार । मायोपिकजी ने शिवजी के विप्लव्कारी रौद्र रुप से परिचय कराया । आभार । अब कोई चिंता नहीं । भरोसा हो गया कि देश पर जब भी संकट आएगा साधुमना भी हथियार उठाएंगे । धो डालेंगे सबको । आज मन का बेचैनी जाती रही । बढिया नींद आएगी रात को ।

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  9. देख रहा हूँ कि इस पोस्त के लिखे जाने के तीन साल बाद आज भी कुछ बदला नहीं। कॉंवेंट के पढाके आज भी भारतीय शिक्षा पर भाषण दिये जा रहे हैं और आज तक कोई "शूर" शौर्य दिवस की ज़िम्मेदारी अपने कन्धों पर लेने का साहस नहीं जुटा पाया है।

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आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.