बेटी की विदा

श्री बालकवि बैरागी के, मालवी कविता संग्रह 
‘चटक म्हारा चम्पा’ की नौवीं कविता

यह संग्रह श्री नरेन्द्र सिंह तोमर को समर्पित किया गया है।






 बेटी की विदा

घुड़लो थोड़ो ढाबले ए घुड़ला असवार
ऊबो आँसू ढारतो म्हारा पीहर को परिवार
भाई-भावज की प्रीतड़ी , दाऊजी-माऊजी का लाड़
ई सखियाँ का झूमका, ई पनघट ई झाड़
गीताँ भर्‌या खेत ई, म्हारो व्हालो देस
पिवडा थारे कारणे, आज बण्‍यो परदेस
ओ दाऊजी
ओ माऊजी
ओ दाऊजी अवगुण म्हारा भुलाजो रे
राजल बेटी ने वेगी बुलाजो रे
राजल बनड़ी ने वेगी मँगाजो रे

ओ माऊजी अवगुण म्हारा भुलाजो रे

पीपल रेटली गौरजाँ अमर्‌या करे सुहाग
वणकी पूजा के बले म्हाँँ, वाड़े वायो  गुलाब
काँटा की एक डार में अन्न-पाणी गी भूल
छाने पाणी पावती के आज खिलेगा फूल
पण पोटा में आई कली, माली बिछड्यो जाय
देखजो कारो भँवरड़ो ऐंठी न्‍हीं कर पाय
ओ पहिलो फूल गौरी के चढ़ाजो रे
राजल बनड़ी ने वेगो बुलाजो रे
ओ सखियां अवगुण म्हारा भुलाजो रे

भावज आपणो सूवलो लेगा म्हारो नाम
तो राधा को घनश्याम ने केई दी जो परणाम
कजरी झूमर दादरी भूखी न्‍ही रेई जाय
चामल माँ की धार पर लाजो बीर चराय
नवा नारक्‍या हाल मती जोती दीजो बीर
खाँड-खोपरा न्हाकजो जो गाठो बणे शरीर
ओ गूँगा गोठीड़ा ने बीराजी निभाजो रे
राजल बेन्‍यॉं बई ने वेगी बुलाजो रे
ओ वीराजी अवगुण म्हारा भुलाजो रे

छोटी भाभी थीं अबे माथे लो मत बोझ
भुव का आँसू पोंछवा चढ़ी भतीजाँ की फौज
दुपेरी मत सोवजो ने रोज पीसजो धान
म्हारे बधाई लावजो है सूरज भगवान
नवा-नवा दोई गाल पर म्हारो पहिलो प्यार
कुल की बेल बढ़ावजों या भुआ की मनुहार
ओ म्हारो पहिलो सन्देसों सुणाजो रे
लाला भुवा बई ने वेगी बुलाजो रे
ओ भाभी अवगुण म्हारा भुलाजो रे

व्हाला वीरा बेन भाई थीं मती भिजोवो गाल
धूरा का घर के बले मत लड़जो रे लाल
बेन बिना कई वीरजी ने वीर बिना कई बेन
नैन बिना कई नीर जी ने नीर बिना कईं नैन
तू भक्ति भगवान को यो वण को वरदान
या भक्ति चाली सासरे तो रोईर्‌या है भगवान
ओ दाऊजी का आँसूड़ा सूखाजो रे
लाला जीजीबई ने बेगी बुलाजो रे
ओ वीरा अवगुण म्हारा भुलाजो रे

जामण कूऽऽड़े जावताँँ, गेला में देख
धूरा में दिख जावेगा थने म्हारा पगाँ की रेख
बैटी का पग पर झरे जो जामण की आँख
मनक जमारो धूर है (या) चाँद सूरज की साख
खेत कुआ खलिहान में थीं गाऽजो मंगल गीत
मन रोवे मुखड़ो हँसे तो मनक जनम की जीत
ओ कोई आँसुड़ा मती लाजो रे
राजल बेटी ने वेगी बुलाजो रे
ओ माऊजी अवगुण म्हारा भुलाजो रे

दाऊजी थी अबे तोड़ी दो या आँसू की बेल
(यो) आँगण छूटे आखरी, म्हारो धोक पगाँ में झेल
दुख देखो, मोटी करो ने देव मनावो बीस
एक घुड़ला असवार ने थी देई दो रे बख्शीश
ई नारी का जनम ने दिया विधाता श्राप
के बालपणाँ के बिछड़ताँई बिछड़ेगा माँ बाप
ओ म्हाने सपना में देखी ने भुलाजो रे
राजल बेटी ने वेगी बुलाजों रे
ओ दाऊजी अवगुण म्हारा भुलाजो रे

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संग्रह के ब्यौरे 
चटक म्हारा चम्पा (मालवी कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - निकुंज प्रकाशन, 4 हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन
मूल्य - 20 रुपये
चित्रांकन - डॉ. विष्णु भटनागर
प्रकाशन वर्ष - 1983
कॉपी राइट - बालकवि बैरागी
मुद्रक - विद्या ट्रेडर्स, उज्जैन




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।

1 comment:

  1. इस गीत की एक एक पंक्ति पर आँखों से आँसू बहते हैं।
    समर्पित हैं कुछ पंक्तियाँ -
    अँखियों से आँसू झरें
    कर बाबुल को याद
    भैया से है बहन की
    इतनी सी फरियाद
    सावन के बहाने, बुला भेजो भैया
    बचपन को कर लूँगी याद रे !

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