जड़ों में बैठे लोग

मालवा की एक कहावत है - ‘भूतों का डेरा इमली पर।’ आज के सारे के सारे भूत राजनीति की इमली पर एकत्र और एकजुट हो गए हैं।

केन्द्रीय स्वास्थ्य मन्त्री अम्बुमणी रामदास को लोगों के स्वास्थ्य की सचमुच में अत्यधिक चिन्ता है। वे इसी में दुबले हुए जा रहे हैं। तम्बाकू को देश का सबसे बड़ा शत्रु मानते हैं। चाहते हैं कि लोग तम्बाकू का सेवन या तो करें ही नहीं और करें तो कम से कम और वह भी अपने-अपने घर में। इसीलिए सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान को दण्डनीय अपराध घोषित कर दिया है। चाहते तो थे कि गरीब की बीड़ी को भी कब्जे में ले लेते किन्तु लोग ही उनके साथ नहीं आए। फिल्मों में उड़ते सिगरेट के छल्ले रामदास को अपने आसपास घेरा कसते लगने लगे थे। उन्हें प्रतिबन्धित किया तो सर्वोच्च न्यायालय ने खेल बिगाड़ दिया।

रामदास अब पब संस्कृति का विरोध कर रहे हैं। उनके लिए राहत की बात है कि येदुरप्पा उनके लिए पहले ही भूमिका बनाए बैठे हैं। भगवा और तिरंगा कहीं तो एक हुए! हालाँकि दोनों ही ‘कोतवाल’ हैं लेकिन अपना-अपना कोतवालपन भूल जाना चाहते हैं।

ये दोनों और इनके जैसे सारे लोग पानी में लट्ठ मारने और छाया पर तलवार चलाने का शानदार स्वांग कर रहे हैं। गजब के साहसी भी हैं! चाहते हैं कि सारा देश इनके इस स्वांग को सच माने! दोनों ही यदि गम्भीर और ईमानदार हैं तो एक झटके में अपने-अपने क्षेत्राधिकार में ‘पब’ समूल नष्‍ट कर सकते हैं। लेकिन करेंगे नहीं। इनसे अच्छी तो मध्यप्रदेश की सरकार है जो गाँव-गाँव में बिना मिलावट वाली 'शुध्द शराब' उपलब्ध कराने का वादा करती है। (यह अलग बात है कि अपने नागरिकों को पेय जल उपलब्ध कराने के नाम पर गूँगी बन जाती है।)

ये तमाम लोग खुद की सहित सारी असलियत खूब अच्छी तरह जानते हैं। रामदास भली प्रकार जानते हैं कि तम्बाकू की खेती पर रोक लगाने से उनकी सबसे बड़ी इच्छा पूरी हो सकती है और येदुरप्पा जानते हैं कि उनकी कलम की एक जुम्बिश, भारतीय संस्कृति को बचाने की उनकी दलील को हकीकत में बदल सकती है। लेकिन दोनों अनजान बने रहना चाहते हैं।

ये ऐसे लोग हैं जो चोर की माँ को जानते तो हैं लेकिन उसकी तरफ देखते भी नहीं और चाहते हैं कि न तो चोर रहे और न ही चोरी हो। ये लोग चोर की माँ की हिफाजत पूरी ईमानदारी से करते हैं क्योंकि वही तो इन्हें चुनाव लड़ने के लिए धन उपलब्ध कराती है। ऐसे लोग अनूठे मातृभक्त और इनकी माँ की दुनिया की सर्वाधिक ममतामयी माँ।

ये फुनगियों की छँटाई करते हैं और जड़ों की हिफाजत।

करें भी क्यों नहीं? जड़ों में ये ही तो बैठे हैं!
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8 comments:

  1. aap ne sahi kaha ye chor ki maa ko pakadna hi nahi chahte agar in me icchhashakti ho to sab kuchh dino me theek ho sakta hai magar ye log dharam ke naam par kabhi jati ke naam par koi na koi nara de kar logon ko bhramit rakhte hai ye nahin sudhrenge

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  2. जड़ों में तो बैठे ही हैं ड्रिप इर्रिगेशन सिस्टम भी लगा रखा है. आभार.

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  3. काश , आपका निकट सान्निध्य मिल पाता लिखना सीख जाते ।

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  4. चलिए कोई तो है ,जो फुनगियों की छँटाई करते हैं और जड़ों की हिफाजत। वरना "जडों में मट्ठा डालने और शाखों को गले लगाने" की बात सुनते - सुनते कान पक गये ।

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  5. न जाने कब छाया पर लट्ठ मारने का यह स्वांग चलेगा और जनता इस के जाल से बाहर आएगी।

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  6. ये फुनगियों की छँटाई करते हैं और जड़ों की हिफाजत।
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    क्या जबरदस्त पंच लाइन है!
    तुलसी: पेड़ काटि तैं पालऊ सींचा। मीन जियन निति बारि उलीचा॥

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  7. बैरागी जी मुझे भी लिखना सीखा ही दिजीए..कब आना है मुझे?

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