खेड़ा में खड़े हैं ब्रह्माजी

देश में मन्दिरों की संख्या दिन-प्रति-दिन बढ़ती ही जा रही है। मन्दिरों की ही क्यों? प्रत्येक समुदाय अपने-अपने धार्मिक आस्था स्थलों की संख्या बढ़ाने में लगा हुआ है। इसके पीछे ‘आस्था’ तो नाम मात्र की ही दिखाई देती है। दिखाई देती है तो केवल, ‘अपने धर्म का दबदबा बढ़ाने’ की संकुचित, अधार्मिक प्रवृत्ति। इस मामले में सड़कों के आसपास की जमीनें सर्वाधिक आसान और उपयुक्त होती हैं। वहाँ न तो किसी से पूछना पड़ता है और न ही कोई आपत्ति जताता है। आते-जाते किसी दिन अचानक ही, सड़क किनारे कुछ पत्थरों की ढेरी और उस पर जैसे-तैसे अटकाई हुई, छोटी सी हरे/भगवा रंग की झण्डी नजर आती है। यह छोटी सी शुरुआत कालान्तर में कब मन्दिर या मजार में बदल जाती है, पता ही नहीं चलता। ऐसे धार्मिक स्थल जब यातायात में या सड़क के विस्तार में बाधक अनुभव होने लगते हैं तब तक स्थिति ऐसी बन जाती है कि कोई भी सरकार या प्रशासन उसकी ओर आँख उठाने की हिम्मत भी नहीं कर सकता - पता नहीं, कब धार्मिक भावनाएँ भड़क जाएँ।

सड़क किनारे बनने वाले ऐसे मन्दिरों में हनुमानजी सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। मजार किसी भी पीर/बाबा की हो सकती है। कुछ मामलों में स्थानीय ग्राम-देवी/देवता स्थापित कर दिए जाते हैं।

लेकिन, मन्दिरों/मजारों के मामले में ‘सरप्लस’ होते जा रहे इस देश में ब्रह्माजी का कोई मन्दिर बनने की बात मैंने कहीं नहीं देखी/सुनी। ब्रह्माजी के मन्दिर के मामले में ले-दे कर एक ही मन्दिर देखा मैंने - पुष्कर में।

ऐसे में, अपनी बदनावर यात्रा में मैंने जब ब्रह्माजी की मूर्ति के बारे में सुना तो पहले ही क्षण मूर्ति देखने की इच्छा उत्कट हो गई। मेरी बदनावर यात्रा करानेवाले माँगीलालजी यादव ने जब पूछा - ‘चलें क्या ब्रह्माजी की मूर्ति देखने?’ तो मैंने उनका सवाल पूरा होने से पहले ही जवाब दिया - ‘फौरन चलिए।’

बदनावर से लगा हुआ ही छोटा सा गाँव है - खेड़ा। (बदनावर की मामूली जानकारी यहाँ उपलब्ध है।) इसे बदनवार का मोहल्ला भी कह सकते हैं। ग्राम पंचायत बनी हुई है। बदनावर से, मुश्किल से एक किलोमीटर दूर है। इसी खेड़ा के एक खेत में खड़े हैं ब्रह्माजी।

इस मूर्ति के बारे में भी बतानेवाला कोई नहीं मिला। केवल यही बताया जाता है कि कुछ बरस पहले यह जमीन में से निकली थी।

मूर्ति पहली नजर में पूर्ण अनुभव होती है - खण्डित नहीं। धर्म के नाम पर अपनी पहचान बनानेवालों ने इस पर आईल पेण्ट पोत कर इसका पुरातात्विक महत्व कम कर दिया है। पुष्कर में ब्रह्माजी बैठे हैं जबकि ये खड़े हैं। खेड़ा के सुनसान खेत में खड़े ब्रह्माजी, अपनी देखभाल करनेवालों की प्रतीक्षा करते लगते हैं।

मूर्ति के कुछ चित्र देख कर बाकी अनुमान आप खुद ही लगाएँ क्यों कि जैसा मैं कह ही चुका हूँ - पुरातत्व मेरा विषय नहीं है और मूर्ति के बार में बतानेवाला वहाँ कोई नहीं मिला।

पूरी मूर्ति


मूर्ति के तीन मुँहों वाले अंश का क्लोज-अप


मूर्ति के पाँवों के दोनों ओर एक-एक युगल की मूर्तियाँ बनी हुई हैं।


मूर्ति के सामने खड़े होकर देखने की दिशा के मान से, पैरों की दाहिनी ओर बनी युगल मूर्तियों का क्लोज-अप।


मूर्ति के सामने खड़े होकर देखने की दिशा के मान से, पैरों की बाँयर ओर बनी युगल मूर्तियों का क्लोज-अप। महिला मूर्ति ने बाँये हाथ में कलश उठा रखा है।


मूर्ति और मूर्ति के सामने रखे  पत्थर के बीच ‘सुरक्षित’ रखी हुई ताश की गड्डी। ‘वक्त-कटी’ के लिए चरवाहों और खेतीहर मजदूरों ने यह व्यवस्था कर रखी होगी।

7 comments:

  1. जिक्र आया था, तस्‍वीर पहली बार देखा.

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  2. मूर्ति है तो मंदिर भी बनना चाहिए| वैसे एक प्राचीन मूर्ति मिली है तो वहाँ और पुरातात्विक सम्पदा भी छिपी हो सकती है|

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  3. "...धर्म के नाम पर अपनी पहचान बनानेवालों ने इस पर आईल पेण्ट पोत कर इसका पुरातात्विक महत्व कम कर दिया है। ..."

    मूर्खों की कमी नहीं है. भोरमदेव जैसे ऐतिहासिक मंदिर का पूरा प्रांगण प्राचीन पत्थर का था, उस पर टाइल्स लगा दिए गए हैं. वो टाइल्स भी बाथरूम में उपयोग में लिए जाने वाले निम्न कोटि के!

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  4. फेस बुक पर श्री सुनील ताम्रकार, इन्‍दौर की टिप्‍पणी -

    इस अति पुरातत्वीय महत्त्व के मन्दिर की तरफ सरकार को तुरन्‍त ध्यान देकर आगे इस मन्दिर पर समुचित ध्यान देना ही चाहिए।

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  5. पता नहीं पर जानने की उत्सुकता मेरी भी है।

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  6. अतिक्रमण करने और आम तौर पर उससे चिपके रहने का हिंदुस्तान मे सबसे आसान तरीका मूर्ति स्थापित कर मंदिर बनाने का है । जगह पर कब्जे के साथ आमदनी का भी जरिया निकाल आता है,लेकिन पुरातत्वीय महत्व की ब्रह्मा जी की मूर्ति का उपेक्षित रहना आश्चर्य जनक बात है ।

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  7. शिल्पांकन से तो अधिक पुरानी नहीं लगती।

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