पहला समाचार - अहमदाबाद (गुजरात) के गुडलक वेरल मार्केट में कामकाज करनेवाले इमरान शेखाणी का दस वर्षीय बेटा अमान शेखाणी ‘चिड़िया बचाओ’ अभियान में लगा हुआ है। नारोल इलाके में मीराणा डम्पिंग साइट है। कुछ बरसों पहले तक वहाँ चार-पाँच चिड़ियाएँ नजर आती थीं। अब वहाँ लगभग डेड़ सौ चिड़ियाएँ चहचहाती नजर आती हैं। यह अमन का ही करिश्मा है। तीन बरस की, नासमझी की उम्र से अमन इस अभियान में लग गया था। चिड़ियाओं को कुत्ते-बिल्लियों से बचाने से उसने शुरुआत की थी। कोई चिड़िया मर जाती है तो अमन उसका अन्तिम संस्कार करता है। चिड़ियाओं के प्रति उसका यह प्रेम देख लोगों ने उसे मुफ्त में घोंसले देने शुरु किए। अमन इन्हें लोगों तक पहुँचाता है। नारोल इलाके की सिटीजन मेमन कॉलोनी, सिटीजन नगर, मुबारक नगर सोसायटी में ऐसे घोंसले नजर आते हैं। अब लोग घोंसले लेने के लिए अमन के पास आते हैं।
दूसरा समाचार - महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के केलवाद गाँव के उद्धव गाडेकरे के हेयर सेलून पर यदि कोई फौजी जवान आता है तो उद्धव चाँदी के उस्तरे से, अत्यन्त आदरपूर्वक उसकी शेविंग करता है। वह भी मुफ्त। देश की रक्षा हेतु सीमाओं पर तैनात सैनिकोे के प्रति सम्मान जताने का, उद्धव का यह अपना तरीका है। ‘बेटी बचाओ अभियान’ को भी वह अपने तरीके से प्रोत्साहित करता है। सन्तान के रूप में इकलौती बेटी के पिता की शेविंग भी वह मुफ्त में करता है।
तीसरा समाचार - केन्द्रपाड़ा (उड़ीसा) निवासी सरोजकान्त बिस्वाल का विवाह था। बिस्वाल ने अनूठा दहेज माँगा। उसने फ्रीज-कूलर, वाहन जैसी चीजों के बजाय तुलसी के एक हजार एक पौधे माँगे। समूचा विवाह आयोजन धन्य हो गया।
चौथा समाचार - कानपुर निवासी डॉक्टर माही तलत सिद्दीकी ने हिन्दी में एम. एम. किया है। पण्डित बद्रीनारायण तिवारी ने उन्हें रामचरित मानस की एक प्रति भेंट की। ‘मानस’ पढ़ते-पढ़ते डॉक्टर माही ने अनुभव किया कि इस ग्रन्थ की अच्छी बातें अन्य सम्प्रदायों तक पहुँचाई जानी चाहिए। सद्विचारों को व्यापक करने की इसी भावना के अधीन उन्होंने लगभग डेड़ बरस के अथक परिश्रम से ‘मानस’ का उर्दू स्वरूप तैयार कर भाईचारे और साम्प्रदायिक सौहार्द्र का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया।
पाँचवाँ समाचार - पलवल (हरियाणा) के पास के कूलवाली गाँव के सित्यासी वर्षीय चन्द्रपाल और उनकी, छियासठ वर्षीया पत्नी रूपवती चार बेटों के माँ-बाप हैं। दोनों की बड़ी इच्छा थी - हरिद्वार तीर्थयात्रा करने की। बेटों (बंसीलाल, राजू, महेन्द्र और जगपाल) को मालूम हुआ तो वे कलियुग के श्रवण कुमार बन गए। चारों भाइयों ने अपने बूढ़े माता-पिता को काँवर में बैठाकर, कन्धों पर बैठाकर हरिद्वार यात्रा करवाई।
छठवाँ समाचार - पाकिस्तान के कराची के एक मन्दिर में स्कूल चलता है जिसमें हिन्दुओं के बच्चे पढ़ते हैं। इनकी शिक्षक है - अनम आगा। वह हिजाब पहनकर आती है। बच्चे ‘जय श्रीराम’ कह कर उसका अभिवादन करते हैं और वह ‘अस्सलाम वाल-ए-कुम’ कह कर। वह प्रतिदिन सारे बच्चों से हाथ मिलाती है। बच्चों की और शिक्षिका की गर्मजोशी और मुहब्बत रास्ते चलते लोगों का भाव विह्वल कर देती है।
सातवाँ समाचार - नहीं। यह समाचार नहीं है। अतीत का एक पन्ना है। इन्दिरा गाँधी प्रधान मन्त्री थीं। जवाहरलाल नेहरू पर वृत्त चित्र बनाने के लिए उन्होंने, किंवदन्ती फिल्म-पुरुष सत्यजीत राय से आग्रह किया। राय ने असमर्थता जताई। बात आई-गई हो गई। कुछ समय बाद, अपनी विदेश यात्रा के लिए विदेशी मुद्रा उपलब्ध कराने के लिए राय ने अर्जी लगाई। नेहरू पर फिल्म बनाने पर राय का इंकार अफसरों को याद था। इन्दिराजी को खुश करने की मनोदशा के अधीन अफसरों ने राय की अर्जी खारिज कर दी। यह बात इन्दिराजी तक पहुँची। वे नाराज हुईं और व्यक्तिगत रूप से हस्तक्षेप कर राय को विदेशी मुद्रा उपलब्ध कराई।
आठवाँ समाचार - यह भी समाचार नहीं है। यह, गाँधी के नाम नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का वह पत्र है जो उन्होंने 6 जुलाई 1944 को सिंगापुर से लिखा था। इस पत्र में नेताजी ने अपने ‘महात्माजी’ के प्रति आदर प्रकट करते हुए, जापान जाने के अपने निर्णय का औचित्य प्रतिपादित किया है।
ये सारे समाचार, सारी घटनाएँ मेरे यहाँ लिखने से पहले ही अखबारों में छप चुकी हैं। जगजाहिर हैं। लेकिन पहले दिए गए 6 समाचार मुझे, मेरे अंचल के अखबारों में छपने से कई-कई दिनों पहले मिल गए थे। मुझे उपलब्ध करानेवाले थे - अहमदाबाद निवासी श्री केशवचन्द्र एम. शर्मा।
मैं केशवजी को, उनके बारे में कुछ नहीं जानता। उनकी शकल भी नहीं देखी है अब तक। दादा ने अपने एक लेख में उनका, पते सहित उल्लेख किया था। अपनी कुछ जिज्ञासाओं का समाधान पाने के लिए, कोई चार महीना पहले मैंने केशवजी को पत्र लिखा था। तब से सम्पर्क बना हुआ है। अपने एक पत्र में उन्होंने अपनी आयु 69 वर्ष बताई है। एक पत्र में उन्होंने संकेत दिया है कि वे प्रिण्टिंग प्रेस के व्यवसाय से सम्बद्ध हैं। बस! इतना ही मुझे मालूम है।
मेरे पहले पत्र के बाद उनके पत्र और फोन आने लगे। वे बड़े प्रेम-भाव से बात करते। अपने पत्रों के साथ वे गुजराती, हिन्दी अखबारों में छपे, समाचारों की कतरनें भेजते हैं। यहाँ दिए समाचार मुझे इसी तरह केशवजी से मिले हैं। जब मैंने कहा कि मुझे गुजराती नहीं आती। तो वे गुजराती में छपी कतरनों के साथ उनके हिन्दी भावानुवाद लिख कर भेजने लगे। इस बीच दादा का निधन हो गया। वे अधिक प्रेमल हो गए।
इस तरह समाचार भेजने का प्रयोजन उनसे साफ-साफ पूछने की हिम्मत नहीं कर सका। ‘घुमा फिरा कर’ टटोला तो मैं अवाक् रह गया। केशवजी का स्वभाव है - अच्छी बातों को यथासम्भव, अधिकाधिक व्यापक, अधिकाधिक प्रसारित करना। बुरी बातों को फैलाना नहीं पड़ता। उन्हें तो अनगिनत पंख मिल जाते हैं। लेकिन अच्छी बातें उपेक्षा, अनदेखी की शिकार हो जाती हैं। इसलिए अच्छी बातों को व्यापक किया जाना चाहिए।
केशवजी का जब भी फोन आता है तो मैं साँस रोक कर उन्हें सुनने की कोशिश करता हूँ। मुझे उनकी बातों में एक अकुलाहट, विकलता अनुभव होती है। देश के मौजूदा वातावरण पर बात करते-करते उनकी आवाज रुँधती लगती है मुझे। एक बार भी ऐसा नहीं हुआ जब उन्होंने गाँधी को याद न किया हो। गए दिनों, अत्यधिक कारुणिक स्वरों मे उन्होंने कहा - ‘हमें गाँधी चाहिए। लेकिन हम अब गाँधी कहाँ से लाएँ? गाँधी तो एक ही हुआ जो अपना काम कर गया। बचे हैं हम। लेकिन हम गाँधी नहीं हो पा रहे। हो भी नहीं सकते।’
मैं उनसे कुछ नहीं पूछता। हिम्मत ही नहीं होती। लेकिन मुझे लगता है, ऐसा सम्पर्क वे और लोगों से भी बनाए हुए होंगे। अच्छी बातें आगे बढ़ाना उनका व्यसन लगता है मुझे। जैसा वे करते हैं, वैसा मैं एक बार भी नहीं कर पाया। रेल से रतलाम आए यात्री का सामान ऑटो में छूट गया। ऑटो चालक (‘जब्बार’ नाम याद आ रहा है मुझे उस ऑटो चालक का) को नजर आया तो लौटाने गया। ऐसे ही कुछ अच्छे समाचार मेरी आँखों से भी गुजरे हैं। लेकिन एक की भी कतरन केशवजी को नहीं भेज पाया। अपनी ही नजरों में शर्मिन्दा होता हूँ मैं। लगता है, मेरी सम्वेदनाएँ भोथरी हो गई हैं। मौजूदा हालात पर मुझे गुस्सा तो आता है लेकिन केशवजी से सम्पर्क में आने के बाद लगता है, मेरा यह गुस्सा एक अपराध है। गुस्सा अन्ततः हिंसा को ही जन्म देता है। और हिंसा तो पाप का मूल है। मौजूदा दौर के हालात को गुस्से, नफरत, हिंसा से नहीं बदला जा सकता। अहिंसा और प्रेम ही एकमात्र साधन हैं और सम्वेदनाएँ इनका मूल हैं।
अनदेखे, अनजान केशवजी से मैं पाठ पढ़ने का जतन कर रहा हूँ। हम यदि कुछ अच्छा नहीं कर सकते तो अच्छा करनेवालों की पालकियाँ तो ढो ही सकते हैं। हम खुद खुशबू नहीं बन सकते तो खुशबू के वाहक झोंके तो बन ही सकते हैं।
मुझे केशवजी ऐसा ही झोंका लगते हैं। खुशबू का एक आकुल-व्याकुल झोंका।
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(केशवजी का चित्र मुझे आसानी से, पहली ही बार में नहीं मिला। मुझे अतिरिक्त प्रयत्न करने पड़े। )