यह किसका संकट है?

बाँये से: ‘हम लोग’ के अध्यक्ष श्री सुभाष जैन, ‘समिति’ के पुस्तकालय मन्त्री श्री राकेश शर्मा, श्री जयकुमार जलज, श्रीमती प्रीति जलज और ‘समिति’ के प्रधान मन्त्री श्री सूर्य प्रकाश चतुर्वेदी

इन्दौर की, श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति, एक सौ उन्नीस वर्षों से, विभिन्न उपक्रमों के जरिए हिन्दी की सेवा करती चली आ रही है। इस समिति को दो बार गाँधीजी की मेजबानी करने का अवसर मिला हुआ है। इन दिनों यह समिति, ‘हमारे रचनाकार’ शीर्षक श्रृंखला के अन्तर्गत, वीडियो रेकार्डिंग के जरिए, देश के रचनाकारों के कृतित्व और व्यक्तित्व का संक्षिप्त अभिलेखीकरण (डाक्यूमेण्टेशन) करने का अत्यन्त महत्वपूर्ण काम कर रही है। ‘समिति’ के प्रधान मन्त्री श्री सूर्य प्रकाश चतुर्वेदी और पुस्तकालय मन्त्री श्री राकेश शर्मा इसी काम में जुटे हुए हैं। चतुर्वेदीजी की आयु लगभग 78 वर्ष है किन्तु उनका समर्पण और उत्साह आयु पर भारी पड़ रहा है। इस काम के लिए ‘समिति’ सामान्यतः रचनाकार को इन्दौर आमन्त्रित करती है और यदि रचनाकार के लिए इन्दौर पहुँच पाना सम्भव नहीं होता है तो ‘समिति’ रचनाकार के पास पहुँचती है। इस क्रम में अब तक लगभग चालीस रचनाकारों की रेकार्डिंग की जा चुकी है।

इसी क्रम में रतलाम के जलजी की रेकार्डिंग होनी थी। जलजजी याने डॉक्टर जय कुमार जलज।  वे देश के ख्यात भाषाविद् और रचनाकार हैं। उनका जन्म तो ललितपुर (उ.प्र.) में हुआ किन्तु वे रतलाम के ही होकर रह गए। मुझ जैसे मोहग्रस्त लोग तो उन्हें रतलाम का पर्याय मानते, कहते हैं। डॉक्टर रामुकमार वर्मा और बच्चनजी के समकालीन जलजी अपनी आयु के बयासीवें वर्ष में चल रहे। हृदयाघात झेल चुके हैं। घुटनों और रीढ़ की हड्डी की कुछ बीमारियों से भी परेशान हैं। शारीरिक रूप से बहुत कमजोर हो गए हैं। घर से बाहर निकलना केवल अपरिहार्य स्थितियों में (अपवादस्वरूप या कहिए कि विवशता में) ही होता है। चलने-फिरने में ही नहीं, बोलने में भी थकान आ जाती है। इसलिए रेकार्डिंग हेतु ‘समिति’ ही रतलाम आई। चतुर्वेदीजी और राकेशजी खुद पहुँचे। ‘विचार से सामाजिक बदलाव’ का लक्ष्य लिए काम कर रही संस्था ‘हम लोग’ ने आयोजन की व्यवस्थाएँ जुटाई थीं।

आयोजन के समाचार अखबारों में ठीक-ठाक रूप से छपे थे। आयोजकों ने अपनी ओर से भी लोगों से सम्पर्क किया था। होटल अजन्ता पेलेस के, लगभग साठ श्रोताओं की क्षमतावाले सभागार में लगभग पचास श्रोता आ जुटे थे। साहित्यिक अयोजनों में श्रोताओं के अकालवाले इस समय में यह बहुत अच्छी और पर्याप्त सन्तोषकजनक से कहीं आगे बढ़कर अत्यन्त उत्साहजनक उपस्थिति थी।  किन्तु अधिकांश श्रोता जलजजी के प्रति आदर-भाव अथवा शिष्य-भाव के अधीन पहुँचे थे। आयोजकों के प्रति संकोच भाव से भी कुछ लोग पहुँचे थे। किन्तु ‘हिन्दी-भाव’ से पहुँचनेवाले श्रोता अंगुलियों पर गिने जा सकते थे। इस बात ने मुझे निराश किया।

मेरे कस्बे में कवियों, रचनाकारों की कम से कम आठ संस्थाएँ तो मेरी जानकारी में हैं। इनमें से कुछ तो नियमित रूप से मासिक गोष्ठियाँ करती हैं। इनमें से कुछ बैठकें सद्य प्रकाशित कहानी/कविता संग्रहों की समीक्षा-बैठकें होती हैं तो कुछ गोष्ठियाँ काव्य-पाठ की होती हैं। समीक्षा गोष्ठियाँ भी काव्य पाठ से ही समाप्त होती हैं। अखबारों में प्रकाशित खबरों को आधार बनाऊँ तो इन गोष्ठियों के भागीदारों की संख्या किसी भी दशा में एक सौ से कम नहीं होती। किन्तु जलजजी वाले इस आयोजन में इन एक सौ कलमकारोें में से पाँच भी नहीं पहुँचे थे।

मैंने इन कलमकारों की अनुपस्थिति का कारण टटोला तो हतप्रभ रह गया। हिन्दी के इन जितने साहित्यकारों से बात हुई तो लगभग एक ही कारण सामने आया-‘जलजजी के इस आयोजन में हम भला कैसे आते? वे तो हमारे किसी कार्यक्रम में, किसी भी गोष्ठी में नहीं आते।’ मैंने जलजजी की अस्वस्थता और शारीरिक दुर्बलता का हवाला दिया तो जवाब मिला-’सब बहाने हैं। अपनी रेकार्डिंग के लिए वे आए कि नहीं? घण्टा, डेड़ घण्टा बैठ कर सवालों के जवाब दिए कि नहीं?’ मैं चाह कर भी कोई तवाब नहीं दे पाया।  

हिन्दी अनेक संकटों से जूझ रही है। अधिकांश संकट हिन्दीवालों ने ही पैदा किए हैं। इस घटना से मैं तय नहीं कर पा रहा हूँ कि यह संकट हिन्दी का है या हिन्दीवालों का?
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4 comments:

  1. वे कवि नहीं तुक्कड़ हैं,तू मेरी झेल मैं तेरी झेलूंगा वाले।

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  2. यदि मैं यह रिकॉर्ड करता तो जलज जी के घर में करता
    उनकी पस्तको के नीचे ,उनके परिजनों के बीच,
    उनके गमलो के साथ
    ये भीड़ चाहिए ही क्यों
    प्रेमचंद,काका कालेलकर और अनेक साहित्य कर के बारे में पढ़ा,कभी नही लगा की पाठक और श्रोता के अलावा किसी की जरूरत है
    (कभी कभी ये भी नहीं चाहिए)
    मैं और मेरा संकल्प दो ही काफी है
    भवानी प्रसाद मिश्र ने लालकिले के राष्ट्रीय कवी सम्मलेन में मुख्य अतिथि के रूप में पूछा था
    कहाँ है कवि,
    कहाँ हैं कवी सम्मेलन
    इन भाँडो के बीच तीन घंटे
    बैठना एक त्रसदी है
    यहाँ बैठ लगता ही नहीं देश में समस्या ही नहीं
    भात हैं चारण हैं
    क्या हैं हम
    सत्ता के गलियारों में पूंछ हिलाने वाले आदि आदि
    (स्मृति के आधार पर थोड़ा बहुत अंतर हो सकता है)
    तो मूल बात यह की अकेले की साधना है
    भीड़ दुर्घटना वश हो भी जाए तो ,प्रभु का धन्यवाद

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  3. यदि मैं यह रिकॉर्ड करता तो जलज जी के घर में करता
    उनकी पस्तको के नीचे ,उनके परिजनों के बीच,
    उनके गमलो के साथ
    ये भीड़ चाहिए ही क्यों
    प्रेमचंद,काका कालेलकर और अनेक साहित्य कर के बारे में पढ़ा,कभी नही लगा की पाठक और श्रोता के अलावा किसी की जरूरत है
    (कभी कभी ये भी नहीं चाहिए)
    मैं और मेरा संकल्प दो ही काफी है
    भवानी प्रसाद मिश्र ने लालकिले के राष्ट्रीय कवी सम्मलेन में मुख्य अतिथि के रूप में पूछा था
    कहाँ है कवि,
    कहाँ हैं कवी सम्मेलन
    इन भाँडो के बीच तीन घंटे
    बैठना एक त्रसदी है
    यहाँ बैठ लगता ही नहीं देश में समस्या ही नहीं
    भात हैं चारण हैं
    क्या हैं हम
    सत्ता के गलियारों में पूंछ हिलाने वाले आदि आदि
    (स्मृति के आधार पर थोड़ा बहुत अंतर हो सकता है)
    तो मूल बात यह की अकेले की साधना है
    भीड़ दुर्घटना वश हो भी जाए तो ,प्रभु का धन्यवाद

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  4. जी। बिलकुल ठीक कहा आपने। साक्षात्कार को लेकर ‘समिति’ का मूल विचार और स्वरूप बिलकुल वही था जो आपने लिखा। किन्तु ‘हम लोग’ का आग्रह रहा कि साक्षात्कार की जानकारियों के बाद ‘कुछ अधिक’ तथा ‘कुछ और’ प्राप्त करने के लिए प्रश्नोत्तर का खुला सत्र रखा जाए। इसी कारण इसे ‘आयोजन’ का स्वरूप दिया गया।

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आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.