रमेश का फोटू क्यों छपे?

यह इसी 19 जनवरी की बात है। बैंक ऑफ बड़ौदा पहुँचा तो प्रकाशजी अग्रवाल और (कल मना मेरा वास्तविक हिन्दी दिवस वाले) जयन्तीलालजी जैन को अतिरिक्त प्रसन्न पाया। मुझे देखा तो प्रकाशजी चहक कर बोले - ‘अरे! वाह!! आज तो आप हमारे लिए ही आए हैं। अब यह काम आपकी मौजूदगी में ही करेंगे।’ जयन्तीलालजी भी ‘हाँ! हाँ!! बिलकुल।’ कहते हुए प्रकाशजी की चहक में शामिल हो गए। मेरी समझ में कुछ भी नहीं आया।

पूछा तो प्रकाशजी ने कहा - ‘यह रमेश है। आज इसने अपना लोन पूरा चुका दिया है। हम इसे सम्मानित कर रहे हैं। अब आपकी उपस्थिति में यह काम करेंगे।’ मुझे ताज्जुब हुआ। अपना लोन चुकाना इतनी बड़ी और ऐसी बात हो गया कि बैंक अपने ऋणग्रहीता का सम्मान करे? कर्ज चुकाना अब असामान्य घटना हो गई? लेकिन प्रकाशजी ने जब पूरी बात बताई तो मानना पड़ा, यह अभूतपूर्व भले ही न हो किन्तु असामान्य और रेखांकित किए जाने योग्य तो है ही।

यहाँ चित्र में रमेश और उसकी पत्नी माँगीबाई को आप देख ही रहे हैं। रमेश ने, राज्य सरकार की एक योजना के अन्तर्गत, ठेला खरीदने के लिए 1700/- रुपयों का ऋण, 20 अप्रेल 2010 को लिया था। इसका भुगतान उसे 36 माह में करना था। याने मोटे तौर पर अधिकतम 48 रुपये प्रति माह। ब्याज की रकम अलग से जोड़ लें तो यह मासिक किश्त अधिकतम 55-60 रुपयों के आसपास ही बैठती। किन्तु रमेश ने कभी 150, कभी 300 तो कभी 500 रुपये जमा कर, अपना कर्जा 19 जनवरी को ही पूरा चुका दिया। याने कुल नौ महीनों में ही - निर्धारित अवधि से लगभग आधे समय में ही।

प्रकाशजी और जयन्तीलालजी, रमेश और माँगीबाई को शाखा प्रबन्धक के चेम्बर में ले गए। मुझे भी बुलाया। फोटोग्राफर लगन शर्मा को पहले ही बुला लिया गया था। शाखा प्रबन्धक कोठीवालजी ने रमेश को माला पहनाई। एक थर्मस भेंट किया। लगन के केमरे की फ्लश तीन-चार बार चमकी। हम सबने तालियाँ बजाईं। इस सबमें मुश्किल से पाँच मिनिट लगे होंगे।

हम सब बाहर आए। मैं रोमांचित था। लग रहा था, किसी अभूतपूर्व, ऐतिहासिक पल का साक्षी बना हूँ। मैंने रमेश से कहा - ‘तुम बहुत अच्छे आदमी हो। मुझसे अच्छे। हम सबसे अच्छे। ऐसे ही बने रहना।’ उसकी पत्नी माँगीबाई को मैंने विशेष रूप से अभिनन्दन किया। कहा - ‘तुम्हारे कारण ही रमेश इतना अच्छा काम कर पाया है। तुमने इन रुपयों को घर खर्च के लिए नहीं रोका और रमेश को कर्जा चुकाने दिया।’ रमेश और उसकी पत्नी ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया। पता नहीं, मेरी बातें दोनों तक पहुँची भी या नहीं।

वह दिन और आज का दिन। वे पाँच मिनिट मेरी यादों के बटुए में ऐसे रखे हुए हैं जैसे कोई पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व का अमूल्य सिक्का। पाँच मिनिटों का स्पर्श मुझे कुन्दन-चन्दन स्पर्श जैसा लग रहा है।

इस समय मुझे याद आ रहा है - गए दिनों मेरे प्रदेश में ख्यात व्यापारियों, उद्योगपतियों, रीयल इस्टेट के व्यवहारियों पर पड़े छापों में लगभग एक सौ करोड़ की कर चोरी पकड़ाई गई है। इनमें आईएएस जोशी दम्पति के 350 करोड़ शामिल नहीं हैं। मुझे यह भी याद आ रहा है कि अनिल अम्बानी के यहाँ भी कर चोरी पकड़ी गई थी और सरकार ने अम्बानी पर कुछ करोड़ रुपयों का जुर्माना किया था। इनमें से अधिकांश के सचित्र समाचार विस्तार से प्रकाशित हुए थे।

प्रकाशजी ने रमेश के सम्मान का सचित्र प्रेस नोट जारी करने की बात कही थी तो मैंने मना किया था। खूब अच्छी तरह जानता था, रमेश का चित्र कहीं नहीं छपेगा। प्रकाशजी नहीं माने और पछताए। केवल एक अखबार ने रमेश का समाचार छापा वह भी भर्ती के समाचारों के रूप में।

छपे भी तो क्यों और कैसे? हम पूँजी के पुजारी बन चुके हैं और अर्थशास्त्र के नियम को साकार कर रहे हैं - खोटी मुद्रा, खरी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है। रमेश नहीं जानता कि वह अपने खरेपन के कारण उपेक्षित हुआ है। यदि वह भी बैंक का कर्जा नहीं चुकाता तो शायद उसका भी फोटू कभी अखबार में छपता - फिर भले ही बैंक के, बकाया कर्जदारों के विज्ञापन में छपता।

हम आत्मा के मारे लोगों के नहीं, मरी आत्माओंवाले लोगों के हीफोटू छापेंगे। रमेश का फोटू किस काम का? हम बाजार बन गए हैं और बाजार की माँग तो अम्बानियों, कलमाड़ियों, राजाओं के फोटू ही पूरी करते हैं!

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3 comments:

  1. जय बोलो ईमान की! भारत में रमेश जैसे लोगों की कोई कमी नहीं है| हां समय के साथ, गणतंत्र के धन और अस्मिता पर डाका डालने वाले कुछ अधिक ही प्रभावी और बेशर्म हो चुके हैं!

    रमेश जी, माँगीबाई जी, प्रकाशजी अग्रवाल, जयन्तीलालजी जैन और आपका धन्यवाद!

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  2. रमेशजी की व्यक्तिगत निष्ठा देश के अर्थतन्त्र के प्रति एक उदाहरण है लघुकुबेरों के लिये।

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  3. यह रमेश इन अमीरो से ज्यादा अमीर हे, क्योकि इस के पास जमीर की दोलत हे, काश हर भारती आज रमेश जेसा होता...
    धन्यवाद

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