अण्णा! (केवल) तुम संघर्ष करो

देश के शेष भाग का तो पता नहीं किन्तु मध्य प्रदेश में अप्रेल का पहला पखवाड़ा (‘पहला पखवाड़ा’ को 17 अप्रेल तक के 17 दिन मानें) लगभग छुट्टियों में ही बीता। इन सत्रह दिनों में सरकारी कार्यालयों में अपवादस्वरूप ही काम काज हुआ।


तीन अप्रेल को रविवार था, चार को नवसम्वत्सर का और पाँच अप्रेल को चेती चाँद (इसका शुद्ध स्वरूप पता नहीं क्योंकि कुछ अखबारों में इसे ‘चेटी चण्ड’ लिखा गया) का अवकाश रहा। नौ अप्रेल को दूसरे शनिवार का, दस अप्रेल रविवार, बारह अप्रेल को रामनवमी का, 14 अप्रेल को अम्बेडकर जयन्ती का, सोलह अप्रेल को महावीर जयन्ती का अवकाश रहा। सत्रह को तो रविवार है ही। अगले तेरह दिनों में भी दो अवकाश (बाईस अप्रेल को गुड फ्रायडे, और चौबीस अप्रेल को रविवार) ऐसे आ रहे हैं कि यदि तेईस अप्रेल शनिवार की छुट्टी ले ली जाए तो तीन दिनों का अवकाश एक साथ हो जाए।


विभिन्न पर्वों और महापुरुषों से सम्बन्धित तिथियों पर घोषित अवकाशों में से एक भी ऐसा नहीं रहा जिसे सबने समान रूप से एक साथ मनाया हो। नव सम्वत्सर पर भले ही ‘हिन्दू नव वर्ष’ का लेबल चस्पा कर दिया गया हो किन्तु इसे न तो सारे हिन्दुओं ने मनाया और पूरे दिन भर तो किसी ने नहीं मनाया। एक भी व्यापारी/व्यवसायी ने अपना काम बन्द नहीं रखा। सारे निजी और औद्योगिक संस्थानों में पूरे दिन काम चला। और तो और, छोटी-छोटी दुकानों के कर्मचारियों को भी छुट्टी नहीं मिली। काम ठप्प रहा तो बस, केवल सरकारी दफ्तरों में।


चेती चाँद को केवल सिन्धी समुदाय ने मनाया। बाकी सब ‘दर्शक’ की भूमिका में रहे - तटस्थ, निस्पृह भाव से। लेकिन उल्लेखनीय बात यह कि सिन्धी भाइयों ने भी अपनी व्यापारिक/व्यावसायिक गतिविधियाँ रोजमर्रा की तरह सामान्य बनाए रखीं। कारखाने, निजी संस्थान्, वकीलों, इंजीनीयरों जैसे परामर्शदाताओं के दफ्तर बराबर चलते रहे। बन्द रहे तो केवल सरकारी दफ्तर।


बारह अप्रेल रामनवमी थी। यह त्यौहार भले ही तनिक अधिक व्यापकता से मनाया गया किन्तु सरकारी दफ्तरों के अलावा कहीं काम बन्द नहीं रहा। बाजार रोज की तरह खुले और दुकानों के कर्मचारियों को रोज की तरह ही समय पर काम पर आना पड़ा। काम बन्द रखने की निष्ठा और भक्ति केवल सरकारी कार्यालयों ने ही निभाई।


महावीर जयन्ती (सोलह अप्रेल) तो केवल जैन समुदाय तक सीमित रहनी ही थी। सुबह भव्य जुलूस निकले, कुछ धार्मिक आयोजन हुए किन्तु जैनेतर समुदाय ने अपनी-अपनी दुकानें समय पर खोलीं और और शाम को अपने समय पर ही मंगल कीं। जैसा कि होना था, सरकारी दफ्तर बन्द ही रहे और महावीर जयन्ती की छुट्टी का आनन्द जैनेतर समुदाय ने भी उठाया।


गुड फ्राइडे (तेईस अप्रेल) तो और भी कम लोगों तक ही सीमित रहना है। हाँ, मैंने यह अवश्य देखा है कि अपने त्यौहारों पर इस्लामी और इसाई समुदाय के लोग अपने संस्थान्/दुकानें सामान्यतः दिन भर बन्द रखते हैं। किन्तु शेष समाज को कोई अन्तर नहीं पड़ता। सो, गुड फ्राइडे पर भी केवल सरकारी कार्यालय ही बन्द रहेंगे।


कल्पना की जा सकती है कि अफसरशाही और बाबूराज से और इनके भ्रष्टाचार से पीड़ित हमारे समय और समाज को इन (और ऐसी ही) छुट्टियों की कितनी कीमत चुकानी पड़ती है। हमारी अधिसंख्य आबादी गाँवों में रहती है। खेती-किसानी बारहों महीनों और चौबीसों घण्टों का काम तो होता ही है, इसमें पूरे परिवार को खपना पड़ता है। ऐसे में, इन लोगों के कितने काम नकारात्मक रूप से प्रभावित होते होंगे? लेकिन स्थितियाँ और अधिक निराश तब करती हैं जब मैं देखता हूँ कि विभिन्न धर्मों/समुदायों के लोग अपने-अपने महापुरुषों के नाम पर और छुट्टियों की माँग करते हैं। मेरे कस्बे का ब्राह्मण समाज, परशुराम जयन्ती को ऐच्छिक अवकाश घोषित करने की माँग कर रहा है। ऐसी ही माँगें, समय-समय पर अखबारों में सामने आती रहती हैं।


अपने महापुरुषों/नायकों के नाम पर हम बहुत जल्दी अतिरेकी और अतिसम्वेदी हो जाते हैं। हम खुद भले ही अपने महापुरुषों/नायकों के प्रति अवज्ञा बरत लें, किसी दूसरे (और खासकर, सरकार) को ऐसा करने की छूट कभी नहीं देते। अपने प्रतीकों के सार्वजनिक सम्मान की चिन्ता तो हम प्राणान्तक (जान ले लेने और जान दे देने के) स्तर तक करते हैं किन्तु उनके बताए रास्त पर चलने को शायद ही तैयार हों। जबकि, अपने महापुरुषों/नायकों के आचरण को अपने जीवन में उतारना ही उनका वास्तविक सम्मान होता है। हमारी स्थिति इसके सर्वथा विपरीत है।


यदि कभी ऐसा हो जाए कि स्वाधीनता दिवस, गणतन्त्र दिवस और गाँधी जन्म दिवस को छोड़कर शेष सारे अवकाश समाप्त कर दिए जाएँ और ऐसा करने के मुआवजे के तौर पर आमस्मिक अवकाशों की संख्या बढ़ा दी जाए तो मुझे आकण्ठ विश्वास है कि हममें से कोई अपवादस्वरूप ही अपने महापुरुषों/नायकों की जयन्ती/पुण्य तिथि पर अवकाश लेगा। उस दिन भी हम सब काम पर जाएँगे और आकस्मिक अवकाशों का उपयोग अपनी निजी, घर-परिवार की समस्याएँ निपटाने में या व्यवहार निभाने में या फिर ‘कहीं घूम आते हैं’ जैसे सैर सपाटों में करेंगे। इससे भी आगे बढ़कर, यदि ऐसे अवकाशों वाले दिनों मे काम पर आनेवालों को दुगुना वेतन मिलने का प्रावधान हो जाए तो हम देखेंगे कि भाई लोग अपने महापुरुषों/नायकों को दूसरी वरीयता पर रखकर, अधिक चिन्ता तथा अधिक प्रसन्नता से दफ्तर पहुँचकर काम रहे हैं।


मुझे अच्छा तो नहीं लग रहा किन्तु रुका भी नहीं जा रहा यह कहने से कि राष्ट्र-सेवा, राष्ट्र-धर्म, अपने महापुरुषों/नायकों, धर्म, संस्कृति आदि को लेकर दी जानेवाली हमारी दुहाइयाँ केवल वाचिक स्तर तक ही सीमित हैं। आचरण के स्तर पर हम नितान्त व्यक्तिवादी, सर्वथा आत्म केन्द्रित और अत्यधिक स्वार्थी हैं।


देखते हैं, ऐसे में बेचारे अण्णा हजारे कैसे और कितने कामयाब हो पाते हैं?

6 comments:

  1. एक नया कमिशन की आवश्यकता है - सरकारी छुट्टी सुधार समिति? किसी पहुँच वाले रिटायर्ड जज को सुझाइये न!

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  2. एसएमएस और मिस कॉल के जरिए आभासी क्रांति का स्‍पर्श-सुख भी पाया लोगों ने.

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  3. काम करने की क्या जरुरत रोटी मिलती रहे...हम सब को सिर्फ़ खास दिनो पर ही छुट्टी होनी चाहिये, सभी छोटे छोटे त्योहारो पर छुट्टी गलत हे, ओर फ़िर जिस धर्म का त्योहार हे उसी धर्म के लोगो को छुट्टी हो शेष काम पर आये, वर्ना तो हम आगे नही बड पायेगे, ओर जो तरक्की अब हम कर रहे हे यह तो कछुये की चाल हे...
    इस सुंदर लेख के लिये आप का धन्यवाद

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  4. हमारा देश तो उत्सवों का देश है, काम भी हो जाता है।

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  5. मेरा खयाल है कि जिस देश का मध्यवर्ग भ्रष्ट हो, वह देश भारत हो जाता है। मेरी दिली इच्छा है कि मेरे घर पर आयकर वाले छापे मारें, मैं तौलिए से मुंह ढंककर मीडिया से बचूं, मेरा स्विस बैंक में खाता हो, और .. सीबीआई पीएम से पूछ पूछ कर मेरे सारे मुकद्दमे खारिज कर दे।

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  6. I agree.....On name of these leaves ,precious work days are lost and these result into lesser development of the country.....Perhaps the time has come to improve the sorry state of affair and to develop a better work culture.....Instead of work timing a clearer responsibility could be fixed for every govt. employee ....One will have to understand that every better work done would ultimate help in the making of a better India...Sir, keep up the good work....Thanks ...Regards ...Ajay Shankar

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