अण्‍णा का अधूरा आह्वान

कोई सप्ताह भर की, हाड़-तोड़, शरीर को निचोड़ देनेवाली भागदौड़भरी व्यस्तता से मुक्त हो आज शाम बुद्धू बक्सा खोला तो पहला ही समाचार देखकर हतप्रभ रह गया। विभिन्न समाचार चैनलों में, नीचे पट्टी में बताया जा रहा था कि अण्णा ने, मतदाताओं से, हिसार लोकसभा उपचुनाव में फौरन ही और पाँच प्रदेशों के विधान सभा चुनावों में, संसद के शीतकालीन सत्र के बाद, स्थिति अनुसार, काँग्रेस को वोट न देने का आह्वान किया है। लगा कि समाचार को संक्षिप्त रूप में देने की विवशता के अधीन समाचार आधा ही दिया गया है। अत्यधिक अधीरता से एक के बाद एक, मेरे बुद्धू बक्से पर उपलब्ध, हिन्दी-अंग्रेजी के तमाम समाचार चैनल देख मारे किन्तु समाचार इतना ही था। थोड़ी देर में दो-तीन चैनलों पर अण्णा को यही आह्वान करते देख भी लिया। वहाँ भी बात काँग्रेस को वोट न देने तक ही सीमित रही।

अण्णा का यह आह्वान मुझे न केवल अधूरा और नकारात्मक अपितु उनके आन्दोलन के लिए सांघातिक लग रहा है। काँग्रेस को वोट न देने की अपील तो अपनी जगह ठीक है किन्तु यह नहीं बताया गया कि काँग्रेस को वोट न दें तो फिर किसे दें। यदि विकल्प नहीं सुझाया जा रहा है तो यह आह्वान सवालों के घेरे में आ जाएगा। होना तो यह चाहिए था कि अण्णा-समूह, मतदाताओं को बताता कि फलाँ-फलाँ उम्मीदवार अथवा पार्टी ने, अण्णा-समूह के जनलोकपाल को शब्दशः समर्थन दिया है, इसलिए उसे ही वोट दें। किन्तु विकल्प नहीं बताया जा रहा है और केवल काँग्रेस को वोट न देने का आह्वान किया जा रहा है। इस ‘अनकही’ का सन्देश तो यही जाएगा कि काँग्रेस को धूल चटा कर, उसके निकटतम प्रतिद्वन्द्वी दल को विजयी बनाया जाए।


उधर, किरण बेदी को यह कहते हुए प्रस्तुत किया गया कि भाजपा और लोक दल ने,

अण्णा-समूह के जनलोकपाल के पक्ष में पत्र दे दिए हैं। किन्तु ये दोनों पत्र सार्वजनकि नहीं किए जा रहे हैं। यह बात इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि लोकसभा में सुषमा स्वराज घोषित कर चुकी हैं कि अण्णा के जनलोकपाल के अनेक बिन्दुओं से भाजपा सहमत नहीं है।

अण्णा, काँग्रेस को वोट न देने का आह्वान अवश्य करें किन्तु अपनी निष्पक्षता और सदाशयता जताने के लिए उन्हें किसी विकल्प (यह विकल्प कोई पार्टी भी हो सकती है और/या अलग-अलग दलों के अलग-अलग उम्मीदवार भी) का सुझाव भी अवश्य देना चाहिए। ऐसा न होने पर एकमेव निष्कर्ष यही निकलेगा कि अण्णा-समूह निश्चय ही किन्हीं निहित राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति में सीधे-सीधे सहायक हो रहा है।


यदि यह आह्वान यूँ ही अधूरा बने रहने दिया गया तो आज भले ही काँग्रेस को पराजित करवा कर अण्णा-समूह आत्म-सन्तुष्ट होकर उत्सव मना ले। किन्तु इसके साथ ही अण्णा के आन्दोलन की निष्पक्षता और सदायता संदिग्ध ही नहीं अविश्वसनीय हो जाएगी। उस दशा में यह,एक मजबूत जन आन्दोलन के निराशाजनक अन्त का कारुणिक आरम्भ होगा।


मैं इस कल्पना मात्र से ही भयभीत हूँ। मैं अण्णा को असफल होते नहीं देखना चाहता।

7 comments:

  1. आज के अखबार के मुखपृष्‍ठ पर है यह समाचार, देखें कहानी में क्‍या मोड़ आता है.

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  2. हम भी चाहते हैं कि अण्णा अपने आंदोलन में सफ़ल हों ।

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  3. भारत के सुखद भविष्य के प्रति आशान्वित हूँ।

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  4. हम भी चाहते हैं कि अण्णा अपने आंदोलन में सफ़ल हों|

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  5. इसलि‍ये हमें उस सच को पकड़ना चाहि‍ये जि‍ससे अन्‍ना सफल हो सकें ....कि‍सी व्‍यक्‍ि‍तत्‍व को नहीं।
    बड़ी तेज है जि‍न्‍दगी, जब मौका मि‍ले

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  6. सरकार में बैठे लोगों ने जनता को निराश किया है तो जनता को उनका विरोध करने का पूरा अधिकार है। वैसे कॉंग्रेस का सत्यानाश करने के लिये तो दिग्विजय सिंह और मनीष तिवारी ही काफ़ी हैं, अन्ना को कुछ कहने की ज़रूरत ही क्या है

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  7. प्रचार के इस युग में ... अन्नाजी का भी सदुपयोग हुआ हैं ... वे जानते हैं गांधीजी की हर तरफ कितनी मान्यता हैं ... अतः आज का गाँधी कहकर अन्नाजी को आगे किया हैं पर मकसद तो वही का वही हैं / अन्यथा कथनी और करनी की असमानता , वैचारिक ही सही हिंसा , अशिष्टता तथा नफ़रत की हद तक कोसने की प्रवृत्ति इस आन्दोलन की पहचान न बनती / नफरत भरे बोल सुन कर भीड़ तो आ जाती हैं ... पर सीने में नफ़रत रखकर उसे फिर नफरत की जलावन देते रहना बड़ा कठिन कार्य हैं ... सोंचे जरा !!

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