सपनों का आनन्द लेने की कोशिश

सपनों को लेकर काफी कुछ कहा गया है। कोई उन्हें मनुष्य का जन्मना साथी कहता है तो कोई उन्हें मनुष्य जीवन को पूर्णता प्रदान करनेवाला अदृष्य कारक। सपनों पर आधारित कहावतें प्रचुरता से मिलती हैं। कोई नींद में सपने देखता है तो कोई जागती आँखों। कोई सपनों में डूबा रहता है तो ऐसे लोग भी मिल जाते हैं जिनकी नींद सपने उड़ा देते हैं। यूँ तो सपने नींद में आते हैं किन्तु, भारतीय जीवन बीमा निगम के, भोपाल स्थित क्षेत्रीय प्रशिक्षण केन्द्र के प्राध्यापक भालेरावजी के अनुसार सपने तो वे होते हैं जो हमें सोने नहीं देते।

सपनों को लेकर दो-एक किताबें मैंने पढ़ी थीं जिनमें सपनों के अर्थ बताए गए थे। कुछ बुजुर्गों को सपनों का भाष्य करते भी देखा-सुना है मैंने। कुछ लोग सपनों के आधार पर भविष्यवाणियाँ करने का साहस करते भी मिले। इन सबमें मुझे कभी रुचि नहीं रही। कभी भी गम्भीरता से नहीं लिया इन बातों को।

इन्हीं सपनों को लेकर कोई तीन महीने पहले तक मेरे परिचितों/मित्रों में से कुछ मुझसे ईर्ष्या करते थे, कुछ मुझे झूठा कहते थे और कुछ मुझे बीमार समझ कर मुझसे सहानुभूति रखते थे - मुझे सपने जो नहीं आते थे। लेकिन अब स्थिति एकदम बदल गई है। यह अलग बात है कि स्थिति के इस बदलाव की सूचना मैंने अब तक किसी को नहीं दी। जरूरत ही अनुभव नहीं हुई क्योंकि, जैसा मैंने कहा है, मैं इन बातों को गम्भीरता से नहीं लेता।। पहली बार यहाँ जग-जाहिर कर रहा हूँ-केवल कहने के लिए।गए तीन महीनों से दो सपने मुझे बार-बार आ रहे हैं।


पहले सपने में हर बार मेरी ट्रेन छूट जाती है। स्टेशन बदल जाते हैं, अंचल/इलाके बदल जाते हैं, कभी अकेला होता हूँ तो कभी कुछ लोगों के साथ। किन्तु समाप्ति वाला दृष्य हर बार एक ही होता है - मुझे ट्रेन का आखिरी डिब्बा ही नजर आता है। आखिरी याने सचमुच में आखिरी - गार्ड के डिब्बे के भी पीछे लगा हुआ। मैं ट्रेन पकड़ने के लिए दौड़ता हूँ लेकिन पकड़ नहीं पाता। डिब्बे का हेण्डिल भी पकड़ नहीं पाता। मैं कुछ दूर तक दौड़ता हूँ लेकिन ट्रेन की गति मेरे दौड़ने की गति से तेज रहती है और मैं प्लेटफार्म पर ही रह जाता हूँ - जाती हुई ट्रेन को देखते हुए।

दूसरे सपने में मेरा स्कूटर (एक्टिवा) या तो खो जाता है या कोई चुरा ले जाता है। मैं किसी से मिलने या किसी कार्यालय में काम से जाता हूँ और लौटता तो हूँ तो अपना स्कूटर मुझे नजर नहीं आता। जहाँ रख कर गया था, वहाँ खाली जगह मिलती है। मैं घबराकर इधर-उधर देखता हूँ, कोई आसपास दिखाई देता है तो उससे पूछता हूँ। कोई कुछ नहीं बताता। मैं भी अधिक कोशिश नहीं करता और चाबी जेब में रखकर चुपचाप चला आता हूँ। दो-तीन बार तो मेरे घर से ही मेरा स्कूटर चोरी हो गया। तब हर बार मेरी नींद टूट गई और मैंने दरवाजा खोलकर अपना स्कूटर देखकर तसल्ली की।

मेरे, पाश्चात्य शैली वाले शौचालय का फ्लेश टैंक लगभग 6 महीनों से खराब था। दसियों कारीगरों/मिस्त्रियों/दुकानदारों से निवेदन किया। आश्वस्त सबने किया किन्तु दुरुस्त करने कोई नहीं आया। अन्ततः बड़ी ही मुश्किल से एक कारीगर महरबान हुआ। उसने समस्या दूर की। सब कुछ ठीक चल रहा है। किन्तु कोई एक पखवाड़े से आ रहे सपने में फ्लेश टेंक बार-बार काम करना बन्द कर रहा है।

पहले दो सपनों से या तो घबराहट होती ही नहीं है और यदि होती है तो कुछ ही देर के लिए। जल्दी ही सामान्य हो जाता हूँ। किन्तु तीसरे सपने से हर बार घबराहट हुई। इतनी कि इस सपने से ही डर लगने लगा है।

मेरे लिए यह सर्वथा नया अनुभव है। मैं कोशिश कर रहा हूँ कि इसका आनन्द लूँ।

6 comments:

  1. सपने न सोने वाले को सोने देते हैं और न ही जागने वाले को।

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  2. सपने कब हुए अपने .....लेकिन आपने सपनों के बहाने एक जीवन दर्शन सामने रखा है हम भी उस जीवन दर्शन को सपनों के माध्यम से समझकर जीवन का आनंद लेने का प्रयत्न कर पायें ...!

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  3. :) मान्यताओं में विश्वास तो नहीं है मगर फिर भी - धनलाभ के लक्षण हैं। (लगता है किसी कारणवश आपकी नींद पूरी नही हो पा रही है - ध्यान दीजिये)

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  4. अब मुझे भी ट्रेन के छूट जाने का सपना आने वाला है. बड़ी मुश्किल से निजात पायी थी. आपने याद दिला दिया.

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  5. एक ही सपने का बार-बार आना आपके मन या जीवन में किसी हलचल को तो इंगित कर ही रहा है...

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  6. हां, आनन्द ही लीजिये। अन्यथा - सपने में सिर काटई कोई, बिनु जागे दुख दूर न होई!

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