कौव्वा तो कल ही उड़ गया

कहने को भले ही आत्मा अनश्वर है किन्तु लगता है, इस मामले में भ्रष्टाचार ने आत्मा को मात दे दी है। भ्रष्टाचार का लालच मनुष्य की आत्मा को मार देता है। फिर भले ही यह मारना निमिष भर के लिए हो या खुद से झूठ बोल कर किया गया हो। मुझे तो लगने लगा है कि आत्मा भले ही एक बार मर जाए, भ्रष्टाचार कभी नहीं मरता।

भ्रष्टाचार को लेकर मुझे लगभग प्रतिदिन ही कोई न कोई, एक से एक रोचक किस्सा सुना देता है। सेवा निवृत्त प्राचार्य और मेरे कक्षापाठी के अग्रज श्रीयुत सुरेशचन्द्रजी करमरकर ने मुझे ऐसा ही एक रोचक किस्सा लिख भेजा है।

करमरकरजी इन्दौर से रतलाम आ रहे थे। एक तो रेल यात्रा का पूरा समय फुरसत का और करमरकरजी की आदत बतियाने की। सो, इन्दौर से रतलाम आ रहे एक सज्जन से बतरस होने लगी। बात जल्दी ही भ्रष्टाचार से होती हुई पुलिस के भ्रष्टाचार पर आ गई। उन्होंने इन्दौर यातायात पुलिस का एक किस्सा सुनाया।

इन्दौर में हेलमेट पहनने पर सख्ती बरती जा रही है। एक दिन वे सज्जन बिना हेलमेट पहने निकल गए। बंगाली चौराहे पर यातायात पुलिस के जवान ने धर लिया। जुर्माने से शुरु हुई बात न्यायिक प्रकरण से होती हुई पचास रुपयों पर आकर ठहर गई। पचास रुपये देकर सज्जन ने कहा कि आगे और किसी जवान ने पकड़ लिया तो? जवान ने लापरवाही से कहा - ‘कह देना, कि कौव्वा उड़ गया।’ सज्जन को विश्वास तो नहीं हुआ किन्तु कोई चारा भी नहीं था।

योग की बात कि अगले ही चौराहे पर फिर यातायात जवान ने धर लिया। सज्जन ने कहा - ‘कौव्वा उड़ गया।’ जवान ने तुरन्त ही सज्जन को छोड़ दिया। भ्रष्टाचार में बरती गई ईमानदारी ने सज्जन को प्रभावित किया।

योग-संयोग की बात कि ये सज्जन अगले दिन फिर बिना हेलमेट के निकल पड़े और एक चौराहे पर धरा गए। सज्जन ने कलवाला मन्त्र दुहरा दिया - ‘कौव्वा उड़ गया।’ जवान जोर से हँसा और बोला - ‘वो तो कल ही उड़ गया भैयाजी!’ और एक बार फिर बात चालान, मुकदमे से होती हुई पचास रुपयों पर निपट गई। इस दिन का मन्त्र दिया गया - ‘जंगली इमली।’ सज्जन खुश और निश्चिन्त होकर बढ़ लिए।

कामकाज के सिलसिले में इन सज्जन को बिजलपुर इलाके में जाना पड़ा। वहाँ भी चेकिंग चल रही थी। पकड़ाने पर सज्जन बोले - ‘जंगली इमली।’ यातायात पुलिस का जवान हँस कर बोला - ‘वो तो नवलखा थाने के इलाके में ही पाई और खाई जाती है बाबूजी! यह बिजलपुर थाने का इलाका है। बोलो, चालान बनवाओगे या यहाँ का कोड वर्ड लोगे?’

आगे क्या लिखना, क्या कहना, क्या सुनना? आप खुद ही तय कर लीजिए कि अनश्वर कौन है - आत्मा या भ्रष्टाचार?

9 comments:

  1. संभवतः बिनोवा जी ने कहा था- ''भ्रष्‍टाचार, शिष्‍टाचार बन गया है और ईमानदारी, विशिष्‍टाचार.

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    1. यह मैंने 1964 के आसपास (तब विनोबाजी के आश्रम से एक लघु पत्रिका निकलती थी 'भूमि यज्ञ' नाम था शायद उसका, उसीमें) पढा था। किसी ने विनोबाजी से भ्रष्‍टाचार पर टिप्‍पणी चाही थी। विनाबाजी ने लिखा था - 'एक करे तो भ्रष्‍टाचार। सब करे तो शिष्‍टाचार।'

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  2. हा हा हा... ज़बरदस्त...
    बेईमानी का धन्धा बड़ी ईमानदारी से किया जाता है :)

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  3. वाह, लगता है कोडवर्ड ट्रेनिंग स्कूल के विकास पर महकमा काफ़ी नामा लुटा रहा है।

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  4. ... और अगर देश के विकास के लिये पैसा कम पड़ रहा हो तो इस वाले (काले) धन को स्विट्ज़रलैंड से मंगाने की ज़रूरत भी नहीं ...

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  5. ई-मेल से प्राप्‍त, श्री कैलाश शर्मा, रतलाम की टिप्‍पणी -

    उन सज्‍जन की जगह मैं होता तो, चाहे जितना पेट्रोल जल जाता, पूरे दिन भर खूब कौव्‍वा उडाता।

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  6. एक परिपक्व तन्त्र बन चुका है, दुगुने टैक्स से बचने के लिये..

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  7. आपकी ये रचना कल चर्चामंच पे चर्चा के लिए रहेगी ,

    सादर

    कमल

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आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.