एडीएम की पिटाई में लोकतन्‍त्र


पाली (राजस्‍थान) स्थित हेमावास बांध के टूटने से जल संकटग्रस्‍त हुए ग्रामीणों के हाथों वहां के एडीएम साहब को पिटते देखना अनूठा और रोमांचक अनुभव था । इन लोगों ने 'दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना' को मानने से इंकार कर दिया । कुपित ग्रामीणों को तो पता ही नहीं होगा कि उन्‍होंने अनजाने में ही लोकतन्‍त्र की 'पधरावणी' का पुनीत काम किया । हमारे 'लोकतन्‍त्र' को, पता नहीं क्‍यों, हम सब 'प्रजातन्‍त्र' ही बोलते-लिखते हैं । अब, जब हम 'प्रजातन्‍त्र' प्रयुक्‍त करते हैं तो अनजाने में ही 'राजतन्‍त्र' का वजूद कबूल करते होते हैं । हमारे मन्‍त्री, संसद सदस्‍य, विधायक और अफसर शायद हमारी इसी मानसिकता के चलते अपने आप को 'राजा' मानते हैं और वैसा ही व्‍यवहार भी करते हैं । जब हम खुद, अपने आप को 'लोक' के बजाय 'प्रजा' मानते हों तो 'वे' राजा की तरह बरताव भला क्‍यों न करें ? कहते हैं कि जब गुस्‍सा आता है तो सबसे पहले विवेक साथ छोडता है और अविवेक कब्‍जा कर लेता है । लेकिन पाली के गुस्‍साए लोगों ने इस धारणा को झुठला दिया । उन्‍होंने तो उल्‍टे साबित कर दिया कि गुस्‍से में सही काम हो जाता है । भ्रष्‍ट नेताओं, पदान्‍ध-मदान्‍ध अफसरों और धनपतियों की तिकडी ने सारे देश को बंधक बना रखा है । इस तिकडी से मुक्ति का उपाय दूर-दूर तक नजर नहीं आता । लेकिन पाली के गुस्‍साए लोगों ने एकदम अनजाने में यह उपाय उजागर कर दिया है । अधिकारियों और निर्वाचित जन प्रतिनिधियों को हमारे यहां 'लोक सेवक' कहा गया है लेकिन इन लोगों ने बडी चतुराई से इस शब्‍द को 'लोक इनका सेवक' बना दिया । इसका प्रतिवाद किसी ने किया भी नहीं । सो, जो इन्‍होंने सोचा, वही व्‍यावहारिक सच हो भी गया । फलस्‍वरूप हमारा 'लोकतन्‍त्र' बदल कर 'तन्‍त्रलोक' हो गया । 'लोकतन्‍त्र' में तो 'लोक' आगे होता है और 'तन्‍त्र' उसके अनुचर के रूप में उसके पीछे-पीछे चलता है । लेकिन आज तो 'तन्‍त्र' ने 'लोक' पर सवारी कर रखी है । लोक कराह रहा है और तन्‍त्र मजे मार रहा है, मलाई चाट रहा है । हमारे बुध्दिजीवियों से उम्‍मीद की जाती थी कि वे मूक, निरीह, बेबस 'लोक' की रक्षा करते और उसके अधिकार उसे दिलाते । लेकन वे तो 'बादशाहों के हरम के रखवाले' बन गए ।
ऐसे में पाली के लोगों ने एडीएम की पिटाई कर, 'लोकतन्‍त्र' को पुनर्स्‍थापित ही किया है । 'लोक' ने 'तन्‍त्र' को उसकी औकात बता दी । खबरिया चैनलों ने बताया कि बरसात ने पाली का 50 साल का रेकार्ड तोड दिया । लेकिन पाली वालों ने तो भारतीय लोकतन्‍त्र के 60 बरसों का रेकार्ड तोड दिया । और रेकार्ड ही नहीं तोडा, 'तन्‍त्र' से त्रस्‍त समूचे भारतीय समाज को एक रास्‍ता भी दिखाया, एक दिशा दी ।
पाली में हेमावास बांध के टूटने से बेशक कई लोग बेघर हुए होंगे लेकिन इन बेघर हुए लोगों ने 'लोकतन्‍त्र' का उजडा घर बसा दिया । पाली में बाढ से काफी कुछ बहा होगा लेकिन उस बाढ से लोकतन्‍त्र की पुनर्स्‍थापना की किरण ने क्षितिज पर डेरा जमाया है ।
पाली के गुस्‍साए लोगों को सलाम ।
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4 comments:

  1. एक और रतलामी. स्वागत है.
    लेकिन शिकायत यह है कि आप हिन्दी चिट्ठा से दूर-दूर का रिश्ता रख रहे हैं. थोड़ी सक्रियता बढ़ायेंगे तो हम उससे ज्यादा सक्रिय हो जाएंगे. हमारी सक्रियता की खातिर महीने में 10-12 पोस्ट तो करिए ही. हम हैं न पढ़ने-पढ़ाने के लिए.

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  2. भारत के लिये लोकतंत्र अभिशाप है। लोकतंत्र के नाम पर सिर्फ दोहन होता है।

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  3. जब महाशक्ति ही ऐसी बात करे तो दूसरों से क्‍या उम्‍मीद ?

    थक कर बैठने से काम नहीं चलेगा । अंधेरे से लडाई आपको-हमें ही लडनी है । सूरज की प्रतीक्षा कम से कम महाशक्ति की सूची में तो नहीं है । गुस्‍सा कायम रखिए और जहां भी लडा जा सके, लडिए ।

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  4. आपको सुनते रहते हैं इसलिए आपको पढते हुए भी ऐसा ही लगा मानो आप कह रहे हैं और हम सुन रहे हैं । एडीएम की पिटाई में यह कोण अनूठा है । आपका बस चले तो आप सारे लोकतन्‍त्र की स्‍थापना के लिए सारे अधिकारियों की चौराहों पर पिटाई करा दें ।

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आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.