सच में यह इतनी बड़ी बात है?

मुझे आश्चर्य हो रहा है। यह वास्तव में इतनी बड़ी बात है? मुझे तो पल भर भी नहीं लगा! अभी भी नहीं लग रहा।

मुझे भरपूर एसएमएस मिलते हैं। व्यापारिक और एलआईसी से मिलनेवाले (अधिकाधिक पॉलिसियॉं बेचने के लिए) प्रेरणादायी एमएमएस की परवाह मैंने कभी नहीं की। किन्तु पर्व प्रसंगों पर मिलनवाले ढेरों एसएमएस मुझे परेशान किए रहते हैं। परेशानी तो अपनी जगह किन्तु एक बात से एसएमएस मुझे अत्यधिक झुंझलाते हैं - एक ही सन्देश, एक ही दिन, पाँच-पाँच, सात-सात लोगों द्वारा भेज दिया जाता है। लेकिन इस झुंझलाहट से परे हटकर, मेरी आदत है कि मुझे मिलनेवाले प्रत्येक पत्र/सन्देश का उत्तर अवश्य दूँ, यदि प्रेषक ने अपना पूरा पता लिखा हो तो। अनजाने, अचेतन में ही, दादा की नकल करते हुए यह मेरी आदत (और अब पहचान भी) बन गई है। किन्तु एसएमएस लिखना मुझे अब तक नहीं आया। कभी प्रयास किया भी तो जल्दी ही धैर्य छूट गया। परिणामस्वरूप, कई दिनों तक मैं एसएमएस का जवाब पत्रों से देता रहा। किन्तु यह क्रम नहीं निभ पाया। सो, एसएमएस का जवाब देना ही बन्द कर दिया। लेकिन इससे क्या? एसएमएस के उत्तर न देने के लिए मेरी आत्मा तो मुझे धिक्कारती ही रही! इससे उपजे अपराध-बोध ने मानो मन में स्थायी डेरा ही डाल दिया। मेरा संकट यह कि एसएमएस न लिख पाने की अपनी विवशता जताने की सूचना भी एसएमएस पर दे पाना मेरे लिए सम्भव नहीं था। यदि यही कर पाता तो उत्तर ही क्यों न दे देता?

समझ नहीं पा रहा था कि आत्म-दुर्बलता-जनित अपनी इस विवशता की सूचना सबको कैसे दूँ। क्योंकि दिन में एक-दो उलाहने तो मिल ही जाते - ‘आपको एसएमएस किया था। आपने तो पलट कर जवाब ही नहीं दिया?’ अपराध-बोध अब अकेला नहीं रह गया था। शर्मिन्दगी भी उससे आ मिली थी।

लेकिन इस दीपावली पर मुझे इसका उपाय मिल गया। अपने समस्त ‘अन्नदाताओं’ (पॉलिसीधारकों) तथा मित्रों/कृपालुओं को भेजे जानेवाले दीपावली अभिनन्दन-पत्र का उपयोग मैंने इस काम के लिए कर लिया। यहाँ प्रस्तुत, इस अभिनन्दन-पत्र के चित्र में आप देखेंगे कि सबसे अन्त में मैंने लिखा है - ‘मुझे क्षमा कर दें - मुझे एसएमएस लिखने का अभ्यास अब तक नहीं हो पाया है। इसलिए, मुझे मिलने वालेएसएमएस के उत्तर नहीं दे पाता हूँ। कृपया मेरी विवशता को अनुभव करें और एसएमएस के उत्तर न देने की अशिष्टता के लिए मुझे क्षमा कर दें।’

इस वर्ष भेजे गए अभिनन्दन पत्रों की संख्या 836 रही। सन्देश लिख कर मेरे मन से बड़ा बोझ उतर गया। जानता हूँ कि, इसके बाद भी कई कृपालु ऐसे निकल आएँगे जिन्हें मैंने अभिनन्दन पत्र नहीं भेजा होगा। ऐसे कृपालुओं से फोन पर क्षमा-याचना कर लूँगा क्योंकि वे आसानी से चिह्नित किए जा सकेंगे।

अभिनन्दन पत्र परसों, 2 नवम्बर को, डाक घर खुलते ही वहाँ सौंप दिए जिन्हें मेरे सामने ही (वितरण हेतु) छँटाई विभाग को दे दिए गए। मैं प्रसन्न भी था और निश्चिन्त भी। किन्तु अपराह्न तीन बजे के बाद से एक के बाद एक फोन आने शुरु हो गए। सबसे पहला फोन आया चन्दू भैया की गैस एजेन्सी पर-वाले चन्दू भैया का। उसके बाद थोड़े-थोड़े अन्तराल से फोन आते रहे। पहले दिन, 2 नवम्बर को सारे फोन रतलाम से ही आए किन्तु कल, 3 नवम्बर से तो बाहर से भी फोन आने लगे। दोनों दिन मिला कर कुल 37 फोन आए। सबने न्यूनाधिक एक ही बात कही - ‘हमारे साथ भी यही दिक्कत है किन्तु कहने की हिम्मत नहीं कर पाए। अपनी कमजोरी कबूल करने में आपने बड़ी हिम्मत दिखाई।’ (चन्दू भैया का) पहला फोन आने पर मुझे गुदगुदी तो हुई किन्तु मैंने इसे सहजता से लिया। यही माना कि चन्दू भैया चूँकि मेरे प्रति मोहग्रस्त हैं, इसलिए उदारता और सौजन्यवश यह सब कह रहे हैं। किन्तु उसके बाद जो ताँता लगा तो मुझे विचार करना पड़ा।

मैंने सचमुच मे कोई अनूठा या बड़ा काम कर लिया? अपनी एक कमजोरी और उससे उपजी विवशता ही तो जताई है? अपने अपराध की क्षमा ही तो माँगी है? और यह सब यदि किया भी है तो खुद से खुद की मुक्ति के लिए ही तो? अपनी नजरों में गिरे रहने से बचने के लिए ही तो? यह स्वीकारोक्ति इतनी बड़ी, इतनी महत्वपूर्ण, इतनी उल्लेखनीय बात है? मुझे तो क्षण भर को भी नहीं लगा? तब भी नहीं, जब इसे मैंने, अभिनन्दन-पत्र छपने के लिए देते समय लिखा था!

किन्तु एक-दो नहीं, दो दिनों में पूरे 37 फोन आना भी तो इसका समानान्तर सच है?

मुझे तो बिलकुल ही नहीं लगता किन्तु अपनी कोई कमजोरी कबूल करना, वह भी अपराध-बोध से मुक्त होने के लिए, सचमुच में इतनी बड़ी बात है?
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7 comments:

  1. SMS लिखना तो मुझे भी नही आया आजतक । पर हमारी पोतियों को देखो फटाफट टेक्ट मैसेजेस करती रहती हैं सहेलियों को ।

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  2. यहाँ तो ईमेल साफ करते ही टंगे हैं उल्टा...शुभकामनाओं के संदेश ...



    सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
    दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
    खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
    दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

    -समीर लाल 'समीर'

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  3. अब किसी को इतना धैर्य नहीं कि कार्ड भेजे, एस एम एस ही शीघ्रतम दिखता है।

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  4. अपनी कमजोरी को स्वीकार करना सबसे बरी महानता है ...मनमोहन सिंह और प्रतिभा पाटिल इस देश में बढ़ते भ्रष्टाचार को रोकने में पूरी तरह अक्षम हैं लेकिन मानने को तैयार नहीं हैं और ना ही पदों से उतरने को तैयार हैं..आम जनता के पास इतना साधन और संसाधन नहीं है की वह इसके लिए देश व्यापी जनमत और हस्ताक्षर अभियान चलाकर इन लोगों के खिलाप कर्तव्य निभाने में गंभीर लापरवाही तथा पदों का दुरूपयोग के लिए इनके खिलाप महाभियोग लाये ...

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  5. दीपावली की शुभकामनाएं॥ उत्तर की प्रतीक्षा नहीं :)

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  6. आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामाएं

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  7. आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।

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आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.