चार्वाक : अमरीकियों के आदर्श?


यहाँ चिपकाया गया समाचार पढ़कर मुझे अनायास ही महर्षि चार्वाक याद आ गए। अपनी विख्यात उक्ति ‘ऋणं कृत्वा, घृतं पीवेत्’ लिखते समय उनके मानस में अमेरीका था या अमरीका ने चार्वाक की उक्ति को अपनी आर्थिक नीतियों का आधार बना लिया?

सुनता हूँ कि दुनिया का सबसे कर्जदार देश अमरीका ही है। यह भी सुनता हूँ कि अमरीका अपने नागरिकों को बेरोजगारी भत्ता देता है। शायद इसी कारण समूचे अमरीकी समाज ने उपभोक्तावाद को अपना रखा है। इसीलिए वे आज को, ‘खाओ-पीयो-मौज करो’, को जीते हैं। ‘कल के लिए’ बचाने में विश्वास नहीं करते। उन्हें इसकी आवश्यकता अनुभव ही नहीं हुई होगी। हो भी क्यों? सरकार जो है! बचत क्यों की जाए? किसके लिए की जाए? बेरोजगारी के आलम में भी भूखों मरने की नौबत तो आने से रही! याने, जीवन-यापन के लिए किसी अमरीकी को न तो बचत करनी जरूरी और न ही कर्ज लेना। इसीके चलते यह मजेदार (और विचारणीय) स्थिति है कि एक भी अमरीकी कर्जदार नहीं है लेकिन उनका देश दुनिया का सर्वाधिक कर्जदार देश!

हम अलग हैं। सारी दुनिया से। अपने कल की बेहतरी सुनिश्चित करने के लिए अपना आज बिगाड़ देते हैं। हम आज भूखे रह लेते हैं ताकि कल हमारे बच्चे भूखे न रहें। हम ‘उड़ाने’ में नहीं, ‘बचाने’ में विश्वास करते हैं। ‘खाओ-पीयो-जीयो’ के स्थान पर ‘रूखी-सूखी खाय के ठण्डा पानी पीव’ पर अमल करते हैं। हम सरकार के भरोसे नहीं रहते। रह ही नहीं सकते। ‘भार वहन’ के मामले में सरकार हमारे लिए शायद ही हो किन्तु सरकारों का भार वहन करने के लिए तो हम ही हैं। हम व्यक्तिगत रूप से भी कर्जदार हैं और सरकार के स्तर पर भी। भारतीय भी कर्जदार और भारत भी! कोई साढ़े तीन-चार साल पहले आए वैश्विक मन्दी के दौर में भी हमारे पाँव टिक रहे तो इसका श्रेय हमारी सरकार और उसकी नीतियों को कम और ‘बचत’ करने की हमारी ‘मध्यमवर्गीय मानसिकता’ को ज्यादा है।

अमरीकी अपने लिए कुछ नहीं बचाते। कमाते हैं और खर्च कर देते हैं। लेकिन सुनता हूँ कि इस खर्च में सरकार को चुकाए गए कर भी शामिल होते हैं। कहीं पढ़ा था कि सुबह घर से निकला अमरीकी शाम को घर लौटता है तो कम से कम 53 टैक्स चुका कर आता है। हम ऐसा नहीं करते। हम अपनी सरकार को ‘चोट्टी सरकार’ मानते/कहते हैं (ऐसा मानने/कहने के लिए हमारे नेताओं ने हमे विवश जो कर दिया है!) इसलिए भला चोरों को, अपनी कड़ी मेहनत की कमाई कैसे दे दें? इसीलिए हम, कर देने में कम और देने से बचने में (यहाँ ‘बचने’ के स्थान पर मैं ‘चुराने’ प्रयुक्त करना चाह रहा हूँ किन्तु ‘लोक पिटाई’ के भय से ऐसा नहीं कर पा रहा हूँ) अधिक विश्वास करते हैं और तदनुसार ही अमल भी करते हैं।

हमारी सरकार सारी दुनिया से खुद भी कर्ज लेती है, हमसे भी लेती है फिर भी हमारी देखभाल नहीं करती। उधर अमरीकी सरकार है जो खुद कर्ज लेकर अपने नागरिकों को कर्ज-मुक्त रखती है।

कहीं इसीलिए तो अमीरीकियों ने अनजाने में ही चार्वाक को आत्मसात नहीं कर रखा है?

3 comments:

  1. सही कहा आपने, अमरीकियों की जीवन प्रणाली तो हूबहू चर्वाक-दर्शन से मिलती है।

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  2. ऐसा उदाहरण तो सर्वत्र सुलभ जान पड़ता है.

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  3. जीवन के यही सिद्धान्त हर ओर बराबर से फैले हैं..

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