नाव के छोटे-छोटे छेद

पिघलता हिमालय है किन्तु बाढ़ मैदानों में आती है। बचाव के उपाय मैदानों में रहनेवालों को ही करने पड़ेंगे। उन्हीं भवनों के शिखर अविचल रहते हैं जिनकी नींव मजबूत होती है। यदि शिखर दरक रहे हैं तो मतलब है कि नींव कमजोर हो गई है। तब, शिखर की मरम्मत से काम नहीं चलेगा। नींव ही मजबूत करनी पड़ेगी। लेकिन हम ऐसा नहीं कर रहे हैं। चाह रहे हैं कि हिमालय न पिघले और कमजोर नींव के रहते हुए भी शिखर यथावत बने रहें।

यह सब कुछ दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार की नृशंस घटना को लेकर कह रहा हूँ। मित्र लोग मुझ पर चिढ़ते हैं,  झुंझलाते हैं। कहते हैं, मैं छोटी-छोटी बातों को लेकर बैठ जाता हूँ। बात का बतंगड़ बना देता हूँ। मेरी खिल्ली उड़ाते हुए कहते हैं - ‘चिन्दी का थान बनाना कोई तुमसे सीखे।’ मुझे अपनी खिल्ली उड़ाने का बुरा नहीं लगता। बुरा इस बात का लगता है कि जिसे वे छोटी बात कह/मान कर उसकी अनदेखी कर रहे हैं, वह दूरगामी, बड़े और गम्भीर प्रभाव छोड़ती है। नाव का छेद कितना ही छोटा या बारीक हो, नाव को डुबाने के लिए पर्याप्त होता है।

बीमा एजेण्ट हूँ। घर-घर जाता हूँ और देखता हूँ कि छोटे-छोटे छेदों की अनदेखी करते-करते, किस तरह हमने देश को डूबती नाव में बदल दिया है।

मुझे किसी भी घर में बाल पत्रिकाएँ देखने को नहीं मिलती। महापुरुषों, शहीदों के जीवन चरित की चर्चा कोई नहीं करता। नैतिकता और आदर्शों की बातें सबको विकर्षित करती हैं। बच्चों की अनुचित बातों पर कोई नहीं टोकता। बच्चे अपने/अपनी अध्यापक की खिल्ली उड़ाते हैं और माता-पिता उसमें रस लेते हैं। डाँटना तो दूर रहा, टोकते भी नहीं।

माता-पिता और बच्चों की बातें ध्यान से सुनता हूँ और दुःखी होता हूँ। सबके सब, अपने-अपने बच्चे को, उसके सहपाठियों का ‘प्रतिद्वन्द्वी’ बना रहे हैं। वे ‘प्रतिभागी’ और ‘प्रतिद्वन्द्वी’ का अर्थ भूल चुके हैं। सहपाठी की चिन्ता करने, उसकी सहायता करने की सीख कोई नहीं देता। इसके विपरीत शिकायत करते हैं कि कक्षा का कोई भी बच्चा उनके बच्चे की मदद नहीं करता। होमवर्क के लिए कॉपी नहीं देता। ऐसी शिकायत करते समय वे भूल जाते हैं कि दूसरे माता-पिता भी अपने बच्चे को वही सब सिखा रहे हैं जो वे अपने बच्चे को सिखा रहे हैं। ‘सबके भले में ही अपना भला है’ वाली सूक्ति अक कहीं सुनने को नहीं मिलती। इसके उल्टे, प्रतियोगिता के लिए तैयार करते हुए एक पिता ने अपने बच्चे को रटाया - ‘तोड़ दूँगा, फोड़ दूँगा। सबको पीछे छोड़ दूँगा।’ कोई महसूस करने को तैयार नहीं कि अपने बच्चे को सबसे आगे देखने की उतावली में वे देश को पीछे धकेल रहे हैं।

सामाजिक व्यवहार को लेकर बच्चों और बड़ों के बीच अब कोई सम्वाद नहीं होता। पढ़ो-पढ़ो और केवल पढ़ो। सुबह स्कूल जाओ, दोपहर को ट्यूशन और शाम को कोचिंग क्लास। पारिवारिकता और रिश्तेदारियाँ, बच्चों के लिए कौतूहल का विषय बनती जा रही हैं। कोई रिश्तेदार आता है तो भी बच्चा अपने कमरे में बैठकर पढ़ता रहता है। उसे ‘डिस्टर्ब’ नहीं किया जाता। जात-बिरादरी के आयोजनों, भोजनों में जाने से वह बेरुखी से मना कर देता है। माँ-बाप भी पहले ही इंकार में मान जाते हैं - ‘हाँ। क्या करेगा वहाँ चलकर? उसे कम्पनी नहीं मिलेगी।’ ऐसे में सामूहिकता, सामाजिकता जैसी भववाचक संज्ञाएँ उसकी जिन्दगी में कैसे आ सकती हैं? दया, करुणा, सहानुभूति, सम्वेदना जैसे शब्द अब बच्चों की जिन्दगी से लुप्त होते जा रहे हैं। ‘खुद की चिन्ता करो। दुनिया जाए भाड़ में’ सिखाया जा रहा है। प्रायः हर घर में अब एक ही बच्चा है। सो, अतिरिक्त चिन्ता की जाती है बच्चे की। इतनी कि बच्चे को घर के अभावों की भी जानकारी नहीं हो पाती। नतीजा यह है कि बच्चा अपनी हर माँग को फौरन ही पूरी होते देखना चाहता है। उसे अपनी कक्षा में दूसरों बच्चों के मुकाबले किसी भी मामले में दूसरे नम्बर पर नहीं रहना है। इसलिए, साथी बच्चे के पास कोई ‘लेटेस्ट चीज’ आए, उससे पहले, उसे चाहिए। हर कीमत पर। माँ-बाप हैं कि डरे हुए। इकलौता बच्चा है! पता नहीं क्या कर बैठे? इसलिए कहने की हिम्मत ही नहीं होती कि अभी जेब में पैसे नहीं है, पहली तारीख पर ले आएँगे।

बच्चों की भाषा से आदरसूचक शब्द गुम होते जा रहे हैं। ‘आईए’, ‘बैठिए’, ‘कहिए’ की जगह ‘आओ अंकल’, ‘बैठो अंकल’, ‘कहो अंकल’ ने ले ली है। बच्चे की आँखों में असम्मान नहीं है किन्तु नहीं जानता कि भाषा के भी संस्कार होते हैं। कैसे जाने?

ऐसी ‘छोटी-छोटी’ बातें ही हमें हिमालय के पिघलने से आनेवाली बाढ़ से बचा पाएँगी। ऐसी ‘छोटी-छोटी बातें’ ही हमारे शिखर को मजबूती दे पाएँगी। लेकिन ये बातें काफी मेहनत, असीमित धैर्य माँगती हैं। वह हमारे पास नहीं है। इसीलिए हमें हिमालय का पिघलते रहना और शिखरों का दरकते रहना झेलना ही पड़ेगा।

छोटी-छोटी बातें, छोटी नहीं होतीं। यह छोटी सी बात हम इसी क्षण समझ लें, इसी में हमारी भलाई है, इसी में हमारा बचाव है और इसी मे हमारी बेहतरी है।

12 comments:

  1. फेस बुक पर, श्री हेमन्‍त वैष्‍णव, रायपुर की टिप्‍पणी -

    मां बाप बेटे को बड़ा आदमी,पद में देखना चाहते बजाय नेक ईंसान।

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  2. आपने मेरे मन की बात कह दी!

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  3. ना जाने क्या हाल होगा इस देश का?

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  4. सारी शिक्षा और संस्‍कार टीवी के टीआरपी कार्यक्रमों से आ रहे हैं.

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  5. सच कहा आपने, छोटे छोटे छेदों का सतत कार्य है समाज का। उसे भूल कर हम आसमान पर उड़ने की सोचते रहें तो समाज डूब जायेगा। मैं आपसे समहत हूँ।

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  6. प्रत्येक माँ बाप को बच्चे को इंसान बनाना चाहिए,पैसे कमाने वाली मशीन नही । आज के बच्चे सामाजिक नही कहे जा सकते,क्योंकि वे सामाजिक कार्यक्रमों से दूर रहते है । हम सुधरेंगे युग सुधारेगा की तर्ज़ पर चलने की ज़रूरत है वरना भविष्य सामने दिख रहा है ।

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  7. दिल्ली में तो ये हालत है कि मेरे आइए, बैठिए, बोलिए बोलते ही लोग पूछना शुरु कर देते है उत्तर प्रदेश से है क्या मैडम? आपकी हिन्दी बहुत अच्छी है। उन्हें ये समझाना पड़ जाता है कि ये मुद्दा हिन्दी का नहीं आचरण का है।

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  8. फेस बुक पर, श्री अभिषेक कुमार, इंग्‍लैण्‍ड की टिप्‍पणी -

    "बात तो सही है के ये छोटे छेद रोके जाने चाहिए। लेकिन इसी बात का दूसरा पहलू यह है कि देश की डूबती नाव से निकल कर हर कोई अपनी नाव बनाने में लगा हुआ है। अगर देश की नाव के कुछ छेद बचाने जायेंगे तो आपकी अपनी नाव छोटी हो जाएगी। दरअसल, देश की नाव को बचाने के चक्कर में कोई भी अपनी नाव छोटी करने को तैयार नहीं है। जरुरत फिर कुछ क्रांतिकारियों की है जो अपनी नाव का ख्याल न कर, बड़ी नाव को बचने में लग जायें। लेकिन मुसीबत इस हद तक बढ़ चुकी है की इन क्रांतिकारियों को कोई हवा देने को भी राजी नहीं है। अगर भगत सिंह आज पैदा होता तो उसे आवारा करार दिया गया होता और लोग अपने बच्चों को उससे दूर रहने की सलाह दे रहे होते। :)"

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  9. आपकी बातों से पूर्णतः सहमत

    छोटी-छोटी बातें, छोटी नहीं होतीं। यह छोटी सी बात हम इसी क्षण समझ लें, इसी में हमारी भलाई है, इसी में हमारा बचाव है और इसी मे हमारी बेहतरी है।

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  10. छोटी-छोटी बातें, छोटी नहीं होतीं। यह छोटी सी बात हम इसी क्षण समझ लें, इसी में हमारी भलाई है, इसी में हमारा बचाव है और इसी मे हमारी बेहतरी है।

    truth of life

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  11. बिलकुल सहमत ... सूक्ष्म अवलोकन ... ये छोटी छोटी बातें ही व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं

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  12. तोड़ दूँगा, फोड़ दूँगा। सबको पीछे छोड़ दूँगा।’........parinam samne aane suru ho gaye hain.......


    pranam.


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