पुणे में मेरी तीर्थ यात्रा

मेरी यह तीर्थ यात्रा ऐसी रही है जिसमें मैं न तो किसी मन्दिर में गया और न ही किसी देव प्रतिमा के दर्शन किए। भारत सरकार के पुरातत्व विभाग में यह एक ‘संरक्षित स्मारक’ है (जिसमें प्रवेश के लिए पाँच रुपयों का टिकिट लेना पड़ता है) और पुणे नगर परिषद् की सूची में एक ऐसा ‘दर्शनीय स्थान’ जिसे ‘पुणे दर्शन’ के बस मार्ग में शामिल किया गया है।
 
जिस क्षण मेरी पुणे यात्रा निश्चित हुई थी, उसी क्षण मेरी यह तीर्थ यात्रा भी निश्चित हो गई थी। भगवान भला करे अफलू भाई का कि उन्होंने मुझे (यरवदा जेल जाने के) भ्रम से और भटकने से बचा लिया अन्यथा मैं ‘जाते थे जापान, पहुँच गए चीन’ वाली गति को प्राप्त हो कर अपना समय और धन अकारण ही नष्ट कर देता।
 
 
मेरा यह तीर्थ, पुणे का ‘आगा खाँ महल’ था जहाँ गाँधीजी और उनके संगी-साथी बन्दी बनाकर रखे गए थे और जहाँ, गाँधीजी के सचिव महादेव भाई देसाई तथा गाँधीजी की उत्तमार्द्ध कस्तूरबा गाँधी ने प्राण त्यागे। इन दोनों की समाधियाँ इसी आगा खाँ महल में बनी हुई हैं और इन्हीं सब कारणों से मेरे लिए यह ‘तीर्थ क्षेत्र’ बना।

मैं कुछ कहूँ और उसे सुनने/पढ़ने के लिए आप अपना अमूल्य समय नष्ट करें, उससे अच्छा है कि वहाँ के कुछ चित्र प्रस्तुत कर दूँ जिससे आपको आसानी भी होगी और कई बातें, मेरे कहे बिना ही समझ लेंगे।

 
आगा खाँ महल के परिसर में लगा, ‘महल’ का परिचय पट्ट।




 बन्दी काल में मीरा बहन, इस कमरे के इसी कोने में रहती थीं। चित्र ठीक उसी कोने का है।






गाँधीजी की लालटेन।


 
 
चित्र से मालूम नहीं हो पाता कि महादेव भाई और कस्तूरबा की समाधियों पर कौन पुष्पहार चढ़ा रहा है। चित्र की इबारत कुछ इस प्रकार है -
 
बन्दी होने के फौरन बाद ही गाँधीजी 9 अगस्त 1942 से पूना के आगा खाँ महल में लाए गए थे। 21 महीनों तक यहाँ रखने के बाद वे 6 मई 1944 को छोड़े गए। बन्दी अवस्था में ही उनकी धर्मपत्नी कस्तूरबा और सचिव श्री महादेव भाई देसाई का आगा खाँ महल में देहान्त हुआ। उनकी समाधियाँ आज तीर्थ स्थल बन गई हैं।


गाँधीजी की बन्दी अवस्था के दौरान आगा खाँ महल को ‘जेल’ घोषित किया गया था। जेलर का प्रभार अर्देशर ई. कटेली को दिया गया था। श्री कटेली ने अत्यधिक सहृदयता से गाँधीजी सहित अन्य कैदियों की देखभाल की। प्रसन्न होकर गाँधीजी ने अपने हाथ से बनाया एक वस्त्र श्री कटेली को उपहार में दिया था।

 महादेव भाई की मृत्यु और उनकी समाधि को लेकर गाँधीजी की भावनाएँ। गाँधीजी की कही बात शब्दशः सच हुई। यह समाधि स्थल आज (तीर्थ) यात्रा स्थल बना हुआ है।


महादेव भाई की मृत्यु के क्षण का ब्यौरा।


महादेव भाई के साथ गाँधीजी।


  महोदव भाई देसाई का चित्र।


 लिखा-पढ़ी की, दैनिक उपयोग की सामग्री। सूचना पट्ट से स्पष्ट नहीं होता कि ये वस्तुएँ महादेव भाई की हैं या गाँधीजी की।



 महादेव भाई के साथ गाँधीजी। अफलू भाई शायद बता सकें कि महादेव भाई के कन्धों पर कौन बच्चा है।



  महादेव भाई और कस्तूरबा की समाधियों पर गाँधीजी।


 बन्दी काल में गाँधीजी का कमरा। यह कमरा बन्द रहता है। मुझे, बन्द दरवाजे के काच से अपना मोबाइल सटा कर यह चित्र लेना पड़ा।


 कस्तूरबा का निधन भी इसी (ऊपरकेचित्रवाले) कमरे में हुआ था।


 महादेव भाई और कस्तूरबा की समाधियाँ।


महादेव भाई की समाधि पर लगा आलेख पट्ट।


  कस्तूरबा की समाधि पर लगा आलेख पट्ट।


गाँधीजी की भस्म यहाँ रखी गई है।


अपनी मनोदशा को मैं अपनी धरोहर के रूप में खुद तक सीमित रखते हुए भी कुछ प्रतिक्रियाओं से बच नहीं पा रहा हूँ।

सरकारी तौर पर इसे शायद ‘गाँधी स्मृति’ नाम दिया गया है किन्तु इसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। ‘आगा खाँ महल’ को लोग खूब जानते हैं किन्तु गाँधीजी, महादेव भाई देसाई और कस्तूरबा गाँधी से इसका कोई सम्बन्ध है, यह बहुत ही कम लोग जानते हैं। तनिक क्रूर होकर कहूँ तो इस सम्बन्ध के बारे में वे ही जानते हैं जिन्होंने जानना चाहा। जिस ऑटो में हम लोग गए वह इसके महत्व के बारे मे कुछ भी नहीं जानता था। स्थिति यह रही कि उसने हमें, इस स्मारक के उस दरवाजे पर छोड़ दिया जो शायद ही कभी खोला जाता होगा।
 
मुझे यह भी लगा कि सरकार और पुणे नगर निगम इसे विवशता में संचालित कर रही हैं - किसी अनचाही जिम्मेदारी की तरह। किसी भी स्मारक के लिए छापी जानेवाली पुरिचय पुस्तिका भी यहाँ उपलब्ध नहीं है। पुणे में मुझे कहीं भी इस स्मारक के बारे में कोई सार्वजनिक जानकारी नहीं दिखाई दी। हाँ, रास्ता दिखानेवाले बोर्डों पर जरूर इसका उल्लेख है।

मुझे लगता है कि इस स्मारक का यथोचित प्रचार किया ही जाना चाहिए तथा इसके प्रति सरकार की तथा पुणे नगर निगम की चिन्ता सतह पर, प्रखरता से अनुभव होनी चाहिए।

फिलहाल तो इतना ही। बाकी सब कुछ मेरा निजी।

4 comments:

  1. निश्चय ही यह एक तीर्थ स्थान है..

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  2. पुणे रहकर भी देख न सका बड़ा अफसोस हुआ चलिए अब पूरा करेंगे अधुरा काम

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  3. फेस बुक पर श्री रवि कुमार शर्मा, इन्‍दौर की टिप्‍पणी -

    आगा खॉं महल स्थित 'गॉंधी स्‍मृति' तीर्थ यात्रा पर मेरी भी जाने की इच्छा है। जब भी पुणे जाऊंगा, यहाँ अवश्य जाऊंगा।

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  4. बा और महादेव देसाई की समाधियों पर गांधीजी के साथ समूह का जो चित्र है उसमें सबसे बांई तरफ खडे टोपी वाले सिपाही के बगल में युवा नारायण देसाई हैं । उनके पिता की मृत्यु के बाद गांधीजी के आग्रह पर वे जेल में बंदी के रूप में गांधीजी के साथ रहे थे। रपट कितनी जरूरी है यह रमाकान्तजी की टिप्पणी से सिद्ध होता है।

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आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.