साहस-किरण


इन्दौर से प्रकाशित हो रहे, सान्ध्य दैनिक ‘प्रभातकिरण’ ने साहसभरा वह प्रेरक और अनुकरणीय काम किया है जिसकी दुहाई तो हम सब देते हैं किन्तु समय आने पर हम खुद ही उससे कन्नी काट लेते हैं ।


इस सान्ध्य दैनिक का ‘आईने में आईना’ शीर्षक स्तम्भ अत्यन्त लोकप्रिय है । इस स्तम्भ में, इन्दौर से प्रकाशित हो रहे कुछ प्रमुख दैनिक समाचार पत्रों की लघु समीक्षा (रविवार को छोड़कर) प्रतिदिन प्रकाशित होती है ।


25 नवम्बर को तीन विवाह समारोहों मे उपस्थिति अंकित कराने की व्यस्तता के कारण मैं, ‘प्रभातकिरण’ का, 25 नवम्बर का अंक नहीं देख पाया था । कल रात देख पाया ।


विधान सभा चुनाव के प्रत्याशियों का प्रचार अभियान उन दिनों अपने चरम पर था । सो समाचार पत्रों में प्रचार अभियान का छाए रहना बहुत ही स्वाभाविक बात थी । ‘पत्रिका’ में, इन्हीं से सम्बन्धित प्रकाशित समाचारों की समीक्षा करते हुए लिखा है - ‘समझ में नहीं आता कि कौनसा आयटम उम्मीदवार ने पैसे देकर छपवाया है और कौनसा अखबार ने अपनी मर्जी से छापा है ।’ ‘राज एक्सप्रेस’ में प्रकाशित उस दिन के, चुनावी समाचारों की समीक्षा करते हुए लिखा है - ‘यहाँ पर भी खूब सारी चुनावी खबरें हैं और पता नहीं चलता कि किस खबर के मालिक को पैसा मिला है और किस खबर के लिए संवाददाता को । बहरहाल पैसा जरूर मिला है ।’


मेरे कस्बे में कार्यरत कुछ बीमा एजेण्ट ऐसे हैं जो अपने ग्राहकों से प्रीमीयम की रकम लेकर जमा नहीं कराते, हजम कर जाते हैं । ऐसे एजेण्टों के नाम हम सब एजेण्ट भली प्रकार जानते हैं और अवसर प्राप्त होने पर उनके नाम ले-ले कर उन्हें कोसते भी हैं क्यों कि उनके कुकर्मों के कारण हम लोगों को, ‘फील्ड’ में परेशानी होती है, ग्राहकों की व्यंग्योक्तियाँ और आक्रोश झेलना पड़ता है । लेकिन जब भी ‘लिख कर देने की बात’ अथवा आमने-सामने कहने की बात आती है तो हम सब ‘नर-पुंगव’ चुप हो जाते हैं जबकि अपने व्यवसाय के शुद्धिकरण के लिए हमने बोलना चाहिए ।


ऐसे में ‘प्रभातकिरण’ ने वास्तव में साहस दिखाया है । जिन समाचार पत्रों के समाचारों का उल्लेख समीक्षा में किया गया है, वे दोनों ही ‘प्रभातकालीन’ समाचार पत्र हैं । उन दोनों समाचार पत्रों के साथ ‘प्रभातकिरण’ की कोई व्‍यावसायिक प्रतियोगिता कोसों दूर तक नहीं है । किसी भी वर्ग अथवा समुदाय को, अपनी सार्वजनिक छवि को निष्‍कलंक बनाए रखने के लिए, अपने अन्दर ही झाँकना होता है । निस्सन्देह यह ऐसा ही स्तुत्य प्रयास है ।


कृपया मेरा दूसरा ब्लाग ‘मित्र-धन’ (http://mitradhan.blogspot.com) भी पढें

4 comments:

  1. sir jee agar baki raha ho to hamare sriganganagar me aa jao. narayan narayan

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  2. यही प्रभात किरण अपने अखबार एक दिन में दो अलग पन्नों पर दो बार खबरें छापने,वर्तनी की उलूल जुलूल गलतियाँ करने और कई बार भाजपा और हिन्दू संगठनों की एक तरफ़ा आलोचना करने की मूर्खताएँ भी करता है . तब लगता है कि यह अखबार सम्पादकविहीन या सम्पादकीय सोचविहीन है. समाचार पत्र को अपने कभी कभी गिरेबाँ में भी झाँक लेना चाहिये. क्या ऐसी हिम्मत भी प्रभात किरण दिखा सकता है कि वह अपने अखबार में की जा रही गलतियों पर पाठकों के पत्र बिना काँटछाँट के छापे

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  3. निष्पक्ष रहना एक कठिन प्रयास है और उसके लिए भी अनुशासन की ज़रूरत होती है. मैंने तो कभी प्रभात किरण नहीं पढा लेकिन अगर कुनाल की बात सही है तब तो यह "पर उपदेश कुशल बहुतेरे" जैसी बात भी हो सकती है.

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  4. कुणालजी और स्‍मार्ट इण्‍डि‍यनजी,
    अच्‍छी बातों को अधि‍कतम लोगों तक पहुचाने की सदाशयता के अधीन ही यह सूचना ब्‍लाग पर पोस्‍ट की ताकि‍ न केवल, अच्‍छा काम करने वाला प्रोत्‍साहि‍त हो अपि‍तु अन्‍य भी वैसा ही करने हेतु प्रेरि‍त हों ।
    सम्‍पादकीय सन्‍दर्भों में प्रभातकि‍रण कैसा है, उसका आचरण, उसकी रीति‍-नीति क्‍या है अथवा क्‍या होनी चाहि‍ए, यह न तो मेरे सोच का वि‍षय रहा और न ही इस मेरा कोई नि‍यन्‍त्रण‍ है । अच्‍छा होगा कि‍ आप अपनी भावनाएं सीधे ही प्रभातकि‍रण सम्‍पादक को पहुंचाएं । यदि‍ आप मुझसे यह अपेक्षा कर रहे हों तो कृपया उदारता और बडप्‍पन बरतते हुए मुझे क्षमा कर दीजि‍एगा-यह मैं नहीं कर सकूंगा ।
    वैसे, जब जब चि‍ट्ठाकार अपनी पोस्‍ट पर आई टि‍प्‍पणि‍यों को नि‍रस्‍त अथवा सम्‍पादि‍त करने का अधि‍कार रखता है तो मेरे वि‍चार से, कि‍सी भी अखबार के सम्‍पादक को भी यह अधि‍कार मि‍लना चाहि‍ए ।
    मुझे लगता है, सही बात को गलत जगह कहना हमारी आदत बन गई है । इस 'हमारी' में मैं भी शरीक हूं ।
    28 नवम्‍बर की सवेरे यात्रा पर नि‍कला था । आज ही लौटा । अपनी बात कहने में वि‍लम्‍ब का यही कारण रहा ।

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