लो! बन गया नक्सली

ऐसी घटना पूरे देश में कहीं न कहीं घटती ही रहती होगी। चौबीसों घण्टे। किन्तु बोलो! नक्सलवादी बन जाऊँ? वाली मेरी पोस्ट, चौबीस घण्टों से भी कम समय में, मेरे ही आसपास सच साबित हो जाएगी, यह तो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। इन्दौर प्रकाशित हो रहे, सान्ध्यकालीन दैनिक प्रभातकिरण के आज (21 अक्टूबर 2009, बुधवार) के अंक में, मुख पृष्ठ पर प्रकाशित समाचार की कतरन यहाँ प्रस्तुत है।







मात्र सोलह पंक्तियों का यह समाचार अविकल रूप से भी प्रस्तुत है-




बीमार बहन के लिए बना नक्सली


मंत्री को धमकाया



दमोह-मध्यप्रदेश के जल संसाधन, आवास और पर्यावरण मंत्री जयंत मलैया को टेलिफोन पर जान से मारने की धमकी देने वाला अपनी बीमार बहन की जान बचाने की नीयत से नक्सली बना।




दमोह (ग्रामीण) थाने के नरसिंहगढ़ गांव के शैलेष (16) ने अपनी बहन स्वाति की बीमारी से परेशान होकर मंत्री को धमकाया था। मलैया ने भी उसकी कहानी जानने के बाद उन्हें धमकाने की पुलिस कार्रवाई वापस लेकर उसे माफ कर दिया है। दरअसल शैलेष की बहन पिछले एक साल से बे्रन हेमरेज की शिकार है। शैलेष ने मलैया से मदद मांगी तो आश्वासन मिला, लेकिन सरकारी काम ‘सौ दिन चले, अढ़ाई कोस’ की चाल से चलता है, जिसके कारण कुछ परिणाम नहीं निकला। इन हालात से निराश और परेशान शैलेष ने मन्त्री को धमकाने का दुस्साहस जुटाया और पुलिस की गिरत में पहुंच गया।




हमारे नेता और हमारी व्यवस्था किस प्रकार लोगों की अनदेखी करती है और किस प्रकार लोगों को नक्सलवादी बनाती है, यह उसका बहुत ही छोटा नमूना है।




राहुल गाँधी! कहाँ हो युवराज? सुन रहे हो?



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6 comments:

  1. नक्सलवादी निर्माण करने वाली यह फैक्ट्री जब उन से लड़ने की बात करती है तो हँसी और रोना दोनों आते हैं।

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  2. जिस घटना का उल्लेख किया है, इसमें नक्सल होने का ढोंग रचा गया है. बना नहीं है.

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  3. अब कोई करे भी तो क्या करे
    लोगों ने इन नेताआें की दरबार भी जा जा कर देख लिए
    ...बातों से मानने वाले भूत कहां हैं ये लोग

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  4. भारत में इलाज का खर्च उठाने में कितने ही घर बरबाद हो जाते हैं। जनसंख्या की समस्या तो है ही किन्तु इलाज के बिना भी तो नहीं रहा जा सकता। ये समस्याएँ ऐसी हैं कि सोचो तो मस्तिष्क फट जाए । इसलिए ही अधिकतर लोग आँखें मूँदे ही रहते हैं। मैं भी।
    घुघूती बासूती

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  5. "मैं अपने घर का स्वामी हूं लेकिन यह कहने के लिए मुझे मेरी पत्नी की अनुमति की आवश्यकता होती है पूरी तरह अपनी पत्नी पर निर्भर । धनपतियों की दुनिया में घूमने के बाद का निष्कर्ष कि पैसे से अधकि गरीब कोई नहीं ।"

    आपने अपनी पत्नी को तो आड़े हाथों ले लिया लेकिन धनपतियों को धनपशु लिखते समय घबरा गए !

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  6. घटना दुखद है मगर यह क्या कम है की लोकतंत्र में नक्सली बन्ने का विकल्प भी खुला है, नक्सली राज (साम्यवाद - चीन का ही उदाहरण ले लीजिये) में तो गरीब की ज़िंदगी मौत से भी बदतर है.

    व्यवस्था में बेशक खामियां हैं, स्वार्थ और भ्रष्टाचार भी है, मगर लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबी यही है की उसमें परिवर्तन की, सुधार की आशा और गुंजाइश दोनों ही हैं जबकि नक्सलवाद, माओवाद, साम्यवाद, फासीवाद, नाजीवाद, आतंकवाद आदि में ऐसी किसी भी उम्मीद की निर्दय भ्रूण ह्त्या कर दी जाती है.

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