बधाई याने धन्यवाद याने क्या फर्क पड़ता है?

ऐसा मेरे साथ पहले कम होता था, बहुत कम। कभी-कभार ही। किन्तु अब तो अत्यधिक होने लगा है - महीने में पन्द्रह-बीस बार। याने, तीन दिनों में दो बार। जब भी ऐसा होता है, झुंझला जाता हूँ। खीझ/चिढ़ आ जाती है। भयभीत होने लगा हूँ कि कहीं मैं भी यही सब न करने लग जाऊँ।

लोगों ने ‘बधाई’ और ‘धन्यवाद’ में अन्तर करना बन्द कर दिया है। दोनों को पर्याय बना दिया है। जहाँ बधाई देनी होती है वहाँ धन्यवाद दे रहे हैं और जहाँ धन्यवाद देना होता है, वहाँ बधाई दे रहे हैं। यह सब इतनी तेजी से, इतनी अधिकता से और इतनी सहजता से हो रहा है कि किसी से नमस्कार करने में भी डर लगने लगा है।

हो यह रहा है कि किसी से आमना-सामना हुआ तो ‘राम-राम, शाम-शाम’ के बाद, सम्वाद कुछ इस तरह से होता है -

‘बधाई दादा आपको। बहुत-बहुत बधाई।’

‘बहुत-बहुत धन्यवाद। लेकिन किस बात की?’

‘वो आपने अपने लेख में मेरा जिक्र किया था ना? उसी की।’

‘तो उसके लिए तो आपने धन्यवाद कहना चाहिए।’

‘वही तो कहा!’

‘वही कहाँ कहा? आपने तो मुझे बधाई दी। धन्यवाद नहीं दिया।’

‘एक ही बात है। मैंने बधाई कहा। आप उसे धन्यवाद समझ लीजिए। क्‍या फर्क पड़ता है?’

‘एक ही बात कैसे? और बधाई को धन्यवाद कैसे समझ लूँ? फर्क क्‍यों नहीं पड़ता? दोनों में जमीन-आसमान का अन्तर है। बधाई तो सामनेवाले के यहाँ कोई खुशी होने पर, उसे कोई उपलब्धि होने पर, कोई उल्लेखनीय सफलता मिलने पर, उसका कोई रुका काम पूरा हो जाने पर जैसी स्थितियों में दी जाती। ऐसा कुछ तो मेरे साथ हुआ नहीं। इसके उल्टे, मेरे लेख में आपका जिक्र होने से आपको मेरे कारण खुशी मिली, मेरे कारण आपका नाम हुआ इसलिए आप तो मुझे धन्यवाद देंगे, बधाई नहीं।’
‘आप विद्वानों के साथ यही दिक्कत है। बात को समझने के बजाय शब्दों को पकड़ कर बैठ जाते हैं! इतनी बारीकी आपको ही शोभा देती है। हम भी ऐसा करने लगेंगे तो आपमें और हममें फर्क ही क्या रह जाएगा? हमारे लिए तो दोनों बराबर हैं।’

मैं चाह कर भी कुछ नहीं कह पाता। चुप रह जाता हूँ। जब-जब भी समझाने की कोशिश की, हर बार जवाब मिला - ‘आप हो तो सही! जब भी कोई बात समझनी होगी तो आपको फोन लगा कर पूछ लेंगे।’

मैं हतप्रभ हूँ। बधाई और धन्यवाद में किसी को कोई अन्तर अनुभव नहीं हो रहा! दोनों को पर्याय माना जा रहा है! टोकने पर कहा जा रहा है - बधाई को धन्यवाद समझ लिया जाए।


यह सब क्या है? भाषा के प्रति असावधानी, उदासीनता या उपेक्षा?

11 comments:

  1. यह तो वही है जी जिसे "चलता है" कहते हैं। लेकिन ऐसा नहीं हो सकता कि जो व्यक्ति आज इन दो शब्दों को एक समझ रहा है वह पहले इनमें अंतर कर पाता होगा। मुझे लगता है कि है कि उस व्यक्ति को इन शब्दों के भेद कभी बताये/पढाये ही नहीं गये और स्वयं जानने का प्रयास करने का समय किसके पास है।

    ReplyDelete
  2. जन्मदिन की बधाई,
    नववर्ष की शुभकामनायें,
    हमारे काम में हाथ बंटाने के लिये धन्यवाद,
    इस उत्तम पोस्ट के लिये आभार,

    विष्णु जी एक पोस्ट हिन्दी में ऐसे ही अन्य प्रयोग होने वाले संदेशों पर लिखें तो अच्छा होगा जो आगे सनद की तरह काम आ सके ।

    ReplyDelete
  3. भाव के सामने तुच्‍छ साबित होते शब्‍द.

    ReplyDelete
  4. हमारे आस-पास ऐसी कई बाते होती है जिनको सुनकर एकदम खटक जाता है जैसे श और स का गलत इस्तेमाल.यहाँ मालवा में मिटाने को मिटारना,पत्थर को फत्थर आदि बोलते है बच्चे इन्ही शब्दों को सही समझते है और टोकने पर हमें ही गलत कह जाते है.

    ReplyDelete
  5. ऐसे कुछ हादसे हमारे साथ भी हुए हैं. टोकने पर पलटवार हो जाता है, आपके समझ में आ गया ना ? मेरा पुत्र ही कहता है, आप जानते हो, मै क्या कहना चाहता हूँ.

    ReplyDelete
  6. बहुत बधाई इतना अच्छा लेख लिखने के लिये। बहुत धन्यवाद क्योंकि यह अन्तर पहली बार मेरी समझ में आ गया।

    ReplyDelete
  7. हिन्दी के शब्दों का ग़लत प्रयोग करना एक स्टेटस सिंबल बन चुका हैं। जैसे ही कोई हिन्दी का ग़लत प्रयोग करता हैं और लोग उसे पकड़ते वो ये मान लेता है कि सामनेवाला समझ गया कि उसकी अंग्रेज़ी बहुत शानदार होगी। आखिर हिन्दी जो ग़लत बोल रहा है...

    ReplyDelete
  8. बधाई. धन्यवाद. ओह, धन्यवाद. बधाई. :)

    ReplyDelete
  9. रख लीजिए 'बधाई' को एडवांस समझ के,
    मिलती है अगर मुफ्त में, कहकर के धन्यवाद,
    'दीप्ति' कथनानुसार है 'अँगरेज़दां' अगर,
    दे डाले धन्यवाद जब 'पापा' कभी बने!

    http://aatm-manthan.com

    ReplyDelete
  10. रख लीजिए 'बधाई' को एडवांस समझ के,
    मिलती है अगर मुफ्त में, कहकर के धन्यवाद,
    'दीप्ति' कथनानुसार है 'अँगरेज़दां' अगर,
    दे डाले धन्यवाद जब 'पापा' कभी बने!

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.