बी.ए. के बाद एलकेजी की पढ़ाई

प्रशिक्षण पाठ्यक्रम का ब्यौरा देखकर कुढ़न हुई। लगा, मुझ बी.ए. पास को पहली कक्षा में बैठाया जा रहा है। किन्तु जब, प्रशिक्षण का स्तर निर्धारण करने हेतु हम लोगों के ‘ज्ञान’ की जानकारी लेने वाला प्रश्न-पत्र सामने आया तो लगा, पहली कक्षा में नहीं, मुझे तो बालवाड़ी या आँगनवाड़ी (जिसे ‘भद्रलोक’ की भाषा में कहा जाता है - एल.के.जी.) में बैठाया जाना चाहिए। और प्रशिक्षण के पहले दिन के पहले सत्र के ठीक बाद की मेरी प्रतिक्रिया थी - ‘हे! भगवान! यह सब मुझे, बाईस वर्ष पहले, बीमा एजेन्सी लेने के फौरन बादवाले, पहले ही दिन क्यों नहीं पढ़ाया गया?’

इन्‍दौर स्थित, भा.जी.बी.नि.का विक्रय प्रशिक्षण केन्‍द्र

अपने एजेण्टों को तराशने, उन्हें निरन्तर काम में लगाए रखने और उनसे, अधिकाधिक बीमा व्यवसाय प्राप्त करते रहने के लिए, भारतीय जीवन बीमा निगम पूरे वर्ष भर प्रशिक्षण की प्रक्रिया निरन्तर बनाए रखता है। एजेण्टों के व्यवसाय के आधार पर उन्हें विभिन्न स्तर की क्लब सदस्यता दी जाती है और ऐसे प्रत्येक क्लब सदस्य एजेण्ट को, चार वर्ष में एक बार प्रशिक्षण प्राप्त करना ही पड़ता है। मैंने सितम्बर 2008 में प्रशिक्षण लिया था जिसका ब्यौरा मैंने इन दो पोस्टों में दिया था।  मैंने अभी-अभी, ‘निगम’ के इन्दौर स्थित विक्रय प्रशिक्षण केन्द्र में, 23 से 25 जुलाई तक (तीन दिनों का) प्रशिक्षण लिया।

अब तक मैं लगभग आठ बार प्रशिक्षण ले चुका हूँ। इससे पहले वाले तमाम प्रशिक्षण, ‘कम से कम समय में अधिकाधिक बीमा कैसे बेचा जाए’ पर ही केन्द्रित रहे थे। मैं इसी मानसिकता से इन्दौर पहुँचा था। किन्तु इस प्रशिक्षण ने मुझे अचरज में डाला। इस बार बीमा बेचने की बात दूसरे-तीसरे क्रम पर थी। देश का वित्तीय ढाँचा, वित्तीय गतिविधियों की प्रणालियों की जानकारी, वित्त व्यवस्था और उसका संचालन, वैश्विक वित्तीय परिदृष्य में भारतीय वित्त व्यवस्था, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के मायने, सेंसेक्स का अर्थ, महत्व और उसके निर्धारण के मानक, मुद्रा स्फीति के कारण और प्रभाव, रुपये और डॉलर का अन्तर्सम्बन्ध जैसे विषयों पर यथा सम्भव अधिकाधिक विस्तार और स्पष्टता से बताया गया। जैसे-जैसे ये जानकारियाँ सामने आती गईं वैसे-वैसे हममें से अधिकांश (हम 34 एजेण्ट थे इस प्रशिक्षण में) एजेण्टों को यह अनुभव करते हुए अचरज हो रहा था कि ये सारी बातें, बीमा बेचने को किस हद तक प्रभावित करती हैं!

मैंने पहली बार जाना कि अर्थ-नीति (इकॉनॉमिक पॉलिसी), मौद्रिक-नीति (मॉनीटरी पॉलिसी) और वित्त-नीति (फिस्कल पॉलिसी) के मतलब अलग-अलग होते हैं। रेपो-रेट, रिवर्स रेपो रेट, सीआरआर, एसएलआर का मतलब पहली बार जाना। मुझे पहली बार ज्ञान हुआ कि मँहगाई बढ़ने/घटने के पीछे  रेपो रेट ही एक मात्र कारक होता है। यह सब सुन-सुन कर और जान कर मुझे अपने आप बहुत ही झेंप आ रही थी। अपने वर्तमान और भावी ‘अन्नदाताओं’ (पॉलिसीधारकों) से बात करते हुए मैं ये सारी वित्तीय शब्दावलियाँ, अपने सम्पूर्ण आत्म विश्वास से, अधिकारपूर्वक प्रयुक्त करता रहा हूँ - वह भी कुछ इस तरह मानो मेरी कही बात ही आधिकारिक और अन्तिम हो। अब लग रहा है कि मेरी बातें चुपचाप सुन कर मेरे अन्नदाताओं ने अतिशय उदारता और शालीनता बरत कर मेरे अज्ञान को सहन किया होगा।

सेंसेक्स की बात करना हम एजेण्टों के लिए ‘अनिवार्य विवशता’ है। किन्तु हम सबने पहली बार जाना कि सेंसेक्स के बिन्दुओं (प्वाइण्टों) के निर्धारण-मानक क्या होते हैं। अपने ग्राहकों से बात करते हुए हम एजेण्ट लोग ‘एनएवी’ का उपयोग प्रचुरता से करते हैं किन्तु हम सबने (जी हाँ, हम सबने) पहली बार जाना कि  ‘एनएवी’ का निर्धारण कैसे होता है। इसी तरह, शेयर बाजार से जुड़े ‘प्रायमरी मार्केट’, ‘सेकेण्डरी मार्केट’, ‘इक्विटी’, ‘लार्ज केप’, ‘मिड केप’, ‘स्माल केप’, ‘प्रिफरेंशियल शेयर’, ‘इक्विटी शेयर’ का अर्थ हम लोगों ने पहली बार जाना जबकि ये सारे शब्द हम एजेण्ट लोग दिन भर में सौ-दो सौ बार तो बोलते ही हैं। इसी प्रकार, म्युचअल फण्ड की विविधता और उसका आधारभूत चरित्र हमने पहली ही बार जाना। हमने पहली बार जाना कि म्यूचअल फाण्ड कोई एक व्यक्ति संचालित नहीं कर सकता। कोई ट्रस्ट ही इसका संचालन कर सकता है। केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) और आय कर विभाग को मैं दो स्वतन्त्र निकाय/विभाग मानता था। लेकिन मालूम हुआ कि आय कर विभाग तो, सीडीबीटी द्वारा निर्धारित नीतियों का क्रियान्वयन करता है। ये सारे विषय, बीमा बिक्री से कितनी सघनता से जुड़े हैं, यह कोई बीमा एजेण्ट ही अनुभव कर सकता है।

मेरी सुनिश्चित धारणा (मुझे ‘धारणा’ के बजाय ‘निष्कर्ष’ शब्द प्रयुक्त करना अच्छा लग रहा है) है कि ये सारी बातें हम बीमा एजेण्टों के लिए उतनी ही महत्वपूर्ण हैं जितना कि किसी भाषा के लिए व्याकरण या कि अच्छी फसल लेने के लिए ‘खेत की तैयारी’ या फिर किसी देश के विकास के लिए आधारभूत संरचना होती है। मेरी तो यह भी सुनिश्चित धारणा बनी कि ये सारी बातें प्रत्येक एजेण्ट को, एजेन्सी लेने के पहले ही दिन पढ़ाई जानी चाहिए। यही बात मैंने, सत्र समापन समारोह में, ‘अपनी बात’ के रूप में कही।

हमारा समूचा प्रशिक्षण हिन्दी में ही हुआ। मैंने इसे सहजता से लिया। किन्तु वास्तविकता कुछ और ही थी। मालूम हुआ कि देश में स्थित, ‘निगम’ के  34 विक्रय प्रशिक्षण केन्द्रों में से केवल इन्दौर स्थित विक्रय प्रशिक्षण केन्द्र में ही हिन्दी प्रयुक्त की जा रही है। तब मुझे समझ में आया कि हमारे प्राध्यापकों में से एक श्री डी. मोहन क्यों बार-बार हमसे सहयोग माँग रहे थे। मोहनजी मूलतः हैं तो दक्षिण भारत से किन्तु मुम्बई में बस गए हैं। हम देख रहे थे कि हिन्दी बोलने में उन्हें भरपूर असुविधा हो रही है। फिर भी, अत्यधिक असुविधा और कष्ट उठा कर उन्होंने बहुत अच्छी हिन्दी में हमें पढ़ाया। इस जानकारी ने मेरी जिज्ञासा बढ़ाई। तलाश किया तो मालूम हुआ कि इसके पीछे, प्रशिक्षण केन्द्र की प्राचार्य श्रीमती प्रीती पँवार हैं। मैं उन्हें धन्यवाद नहीं दे सका क्योंकि यह जानकारी मुझे बहुत बाद में, काफी देर से मिली।

इन्हीं प्रीतीजी के बारे में और उनके बहाने कुछ और बातें, अगली पोस्ट में।

3 comments:

  1. इस उम्र में आकर एल के जी में पढना कितना लाभकारी रहा!

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  2. आत्मचिंतन को प्रेरित कराती पोस्ट .अति खुबसूरत और आत्मविवेचक बैटन के लिए धन्यवाद्

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  3. कभी कभी मौलिक विषय को प्रारम्भ से पढ़ना सुखद होता है।

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