मोदी याने अमरबेल याने यह राधा नहीं नाचेगी - 2


अब यह भी कोई रहस्योद्घाटन नहीं है कि रंच मात्र भी राजनीतिक जिम्मेदारी और जोखिम लिए बिना, सत्ता-सुख सहित तमाम राजनीतिक सुख हासिल करना, ‘संघ’ की एकमेव सांस्कृतिक गतिविधि और एकमेव लक्ष्य है। पूरे देश में, भाजपा के, तमाम संगठन मन्त्री, अनिवार्यतः ‘संघ’ से यूँ ही नहीं आते! ‘संघ’ और इसके स्वयम् सेवकों के सत्ता-प्रेम की रोशनी में तनिक ध्यान से एक बात तलाश कीजिए कि ‘संघ’ से भाजपा के संगठन मन्त्री के पद पर आए कितने स्वयम् सेवक, वापस ‘संघ’ में अपनी पुरानी हैसियत में या ‘संघ’ के किसी अन्य आनुषांगिक संगठन में लौटे? ऐसे मामले ‘अपवादों में अपवाद’ की तरह ही सामने आएँगे जबकि अन्य आनुषांगिक संगठनों में भेजे गए स्वयम् सेवकों की, उसी हैसियत में ‘संघ’ में वापसी के मामले ढेर सारे मिल जाएँगे। 

सो, जहाँ भाजपा सत्ता में है वहाँ संघ के किसी निष्ठावान, समर्पित और आज्ञाकारी स्वयम् सेवक का सत्ता-प्रमुख होना सहज अनिवार्यता है ही। अपने इन्हीं गुणों के कारण मोदी को गुजरात का सत्ता सिंहासन मिला और उन्होंने वह कर दिखाया जो अन्य किसी भी प्रदेश का भाजपाई मुख्यमन्त्री अब तक नहीं कर सका। आजादी के बाद, देश में पहली बार (और अब तक ‘एकमात्र’), संघ की कट्टर वैचारिकता को उन्होंने गुजरात में साकार कर दिखाया। उन्होंने गुजरात को हिन्दुत्व की प्रयोगशाला में बदलने का इतिहास रच दिया। अपने सपनों को धरती की वास्तविकता में बदल देनेवाले अपने ऐसे अनूठे स्वयम् सेवक पर ‘संघ’ भला गर्व क्यों न करता? क्यों न इठलाता? सो, वह गर्व करता रहा और इठलाता रहा। किन्तु गर्वित रहने और इठलाने की, इस ‘आत्म-मुग्धता की तल्लीनता’ में उसे पता ही नहीं चला कि कब मोदी विराट बन गए और संघ वामन रह गया। मोदी के कद की बात छोड़िए, मोदी की परछाई ही इतनी घनी और व्यापक हो गई कि संघ नजर ही नहीं आता। मोदी का जूता इतना बड़ा हो गया कि उसे पहनने के चक्कर में, अपने तमाम आनुषांगिक संगठनों सहित समूचा संघ उसमें गुम हो गया। अनवरत कठिन परिश्रम करते हुए, सुनियोजित कार्यशैली और रणनीति से अर्जित उपलब्धियाँ पूरी तरह से अपने व्यक्तिगत खाते में जमा कर, लोकप्रियता, जनाधार और चुम्बकीय लोकार्षण के दम पर मोदी ने मानो संघ को परिदृष्य से ही ओझल कर दिया। आज पूरे गुजरात में संघ और उसके तमाम आनुषांगिक संगठन, ‘समृद्ध-कमाऊ और बलशाली पुत्र के हाथों लतियाए-जुतियाए पिता’ की दशा प्राप्त कर चुके हैं। वे सब मोदी के कृपा-दया-आश्रित निरीह पात्र बन कर रह गए हैं। मोदी के सामने इनकी दशा ‘जबरा मारे, रोने न दे’ जैसी होकर रह गई है। ‘कहा भी न जाए, चुप रहा भी न जाए’ वाली दशा ऐसी ही होती होगी। लेकिन जब मीठा खाना जीवन का मकसद बन जाए और व्यसन भी, तो फिर नीची नजर किए जूठा खाने से परहेज नहीं किया जा सकता। इस मामले में यह कह कर तसल्ली तलाशी जा सकती है कि झूठा हो या जूता - है तो अपनेवाले का ही!   

संघ से पहचान और अवसर पानेवाले नरेन्द्र मोदी आज संघ और भाजपा के पर्याय पुरुष और भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता दिलाने के लिए अपरिमित सम्भावनाओं के कोष बन गए हैं। उनके लिए गुजरात अब ऐसा ‘राजसी छप्पर पलंग’ बन कर रह गया है जिस पर लेटने पर उनके पैर बाहर लटकते हैं। अब उन्हें ‘राज्य’ नहीं, ‘राष्ट्र’ चाहिए। 

एक ओर अपने भ्रष्टाचार और अपनी अकर्मण्यता के कारण चरम अलोकप्रियता और जन-असन्तोष से घिरी यूपीए सरकार और दूसरी ओर मोदी जैसा, लोक-लुभावन, वोट जुटाऊ सक्षम, दक्ष नेता। याने, भाजपा के लिए सत्ता सम्भावनाओं का ऐसा स्वर्णिम अवसर जो अब तक कभी नहीं मिला और भविष्य में शायद ही मिले। सो, सत्ता लपकने के लिए संघ परिवार के पेट में मरोड़ें उठने लगें तो अस्वाभाविक क्या? सो, पूरा देश ये उठती मरोड़ें देख रहा है। 

लेकिन यही वह क्षण है जहाँ संघ परिवार ठिठका नजर आ रहा। क्या किया जाए और क्या नहीं? मोदी एक मात्र तारणहार। लेकिन दूध का जला हुआ जब छाछ को ही फूँक-फूँक कर पीता हो तो भला दूध को पीने के लिए तो उसे अतिरिक्त आत्मबल जुटाना पड़ेगा। पीने से पहले सौ बार सोचना पड़ेगा। इसी सोच ने जकड़न पैदा कर रखी है।

अपनी जिन खूबियों के दम पर मोदी, भाजपा और दिल्ली की दूरी न्यूनतम कर सकते हैं उन्हीं खूबियों ने परिजनों को भयाक्रान्त कर रखा है। गुजरात में मोदी ने खुद को जिस तरह से साबित किया, उसी से दहशत भी फैली हुई है। मोदी जहाँ होते हैं वहाँ फिर और कोई नहीं होता। हो ही नहीं सकता। फिर मोदी होंगे और केवल मोदी ही होंगे। अब भला ‘ऐसे’ मोदी को कैसे और क्यों कर लाया जाए जो लानेवालों का वजूद ही नहीं रहने दे? गोया, मोदी, मोदी न हुए, अमरबेल हो गए! जिस पर छा गए, उसे ही निष्प्राण कर दिया! तब मोदी को लानेवालों का क्या होगा? वे मोदी को किसके लिए लाएँगे - खुद के लिए या मोदी के लिए?  

यही मुश्किल है। मोदी के बिना दिल्ली से नजदीकी बनना कठिन और मोदी को लाना याने खुद को विसर्जित करने के लिए तैयार रहना। गोया, स्थिति कुछ ऐसी कि जिस स्वर्ग की प्राप्ति के लिए सब कुछ किया जा रहा हो, उस स्वर्ग के मिलने के पहले ही क्षण प्राणान्त का खतरा! 

तो फिर क्या किया जाए? आज जैसे भी और जितने भी हरे-भरे हैं, वैसा ही, उतना ही हरा-भरा रह कर प्रसन्नतापर्वूक जी लिया जाए या सुनहरी अमरबेल ओढ़ कर निष्प्राण हो लिया जाए? मर-मर कर जीया जाए या एक बार जी कर मर जाएँ?

ऐसे क्षणों में जिन्दगी अचानक ही बहुत प्यारी लगने लगती है। जिन्दा रहे तो बेहतरी ले आएँगे। लेकिन जिन्दा ही नहीं रहे तो?

सो, मुझे लगता है कि सत्ता-सुख के अपने सांस्कृतिक लालच के चलते संघ परिवार भले ही एक बार जोखिम उठाने की बात सोच ले किन्तु में भाजपा में, जिन्दा रहने की ललक रखनेवाले, जिन्दगी को प्यार करनेवाले लोग अधिक हैं। एक, दो की बात होती तो शायद सोचा जा सकता था। किन्तु बात जब बीसियों लोगों की हो और बीसियों लोग भी वे जो महत्वाकांक्षाएँ लिए बैठे हों तो फिर वे सब के सब, सामूहिक आत्महत्या कर, किसी एक को उपकृत करेंगे? उन्हें यदि आत्महत्या ही करनी होती तो भला राजनीति में आते? राजनीति तो आया ही इसलिए जाता है कि अपनेवालों के कन्धों पर चढ़कर सिंहासन तक पहुँचा जाए और विरोधियों की सहायता से वहाँ सुखपूर्वक बैठा रहा जाए। 

लेकिन, मोदी के प्रधानमन्त्री न बन पाने का, मुझे यह कारण भी अन्तिम नहीं लग रहा। 

अगला कारण यद्यपि सुपरिचित, जगजाहिर और घिसा-पिटा है। लेकिन वह, अगली कड़ी में। 

(यहॉं प्रस्‍तुत समस्‍त चित्र गूगल से लिया गया है। इसका उपयोग किसी आर्थिक लाभ के लिए नहीं किया जा रहा है। यदि आपत्ति हो तो सूचित करें। उस दशा में इसे अविलम्‍ब हटा लिया जाएगा।)

6 comments:

  1. 1**जब मीठा खाना जीवन का मकसद बन जाए और व्यसन भी, तो फिर नीची नजर किए जूठा खाने से परहेज नहीं किया जा सकता। इस मामले में यह कह कर तसल्ली तलाशी जा सकती है कि झूठा हो या जूता - है तो अपनेवाले का ही!
    2** सत्ता-सुख के अपने सांस्कृतिक लालच के चलते संघ परिवार भले ही एक बार जोखिम उठाने की बात सोच ले किन्तु में भाजपा में, जिन्दा रहने की ललक रखनेवाले, जिन्दगी को प्यार करनेवाले लोग अधिक हैं।

    गजब की बेबाकी जिसका मैं कायल हूँ

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  2. राजनीति से अधिक श्रेयस्कर है कि विकास के एक एक पहलू पर विस्तृत चर्चा हो। आम व्यक्ति के लिये भला राजनीति में क्या सुख?

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  3. मेरे ख़याल से मोदी प्रधान मंत्री नही बन सकते,इस पर आप TV सिरियल की तरह कई एपिसोड लिख सकते है,और वे रोचक भी होंगे,इसलिए लिखते रहिए ....

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  4. आपका धन्यवाद एक अच्छे लेख के लिए ..

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  5. KABHI APNEE LEKHANEE KO KASHMIR KI TARAF LIKHANA KE SURUAAT KARE TAAKI JO AAP KE SAGE LOG HAI JO KI DESHHIT MAIN KAM KAR RAHE HAI...


    JAI BABA BANARAS...

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    1. अमूल्‍य परामर्श के लिए कोटिश: धन्‍यवाद। आपका कहा न मान पाने के लिए कृपया मुझे क्षमा कीजिएगा। जिस विषय में मरी जानकारी नहीं उस पर लिखने का मूर्खतापूर्ण दुस्‍साहस नहीं कर पाता।

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