जीएसटी: दरिद्र नागरिकों की अमीर सरकार

‘लोग जीएसटी को खामखाँ बदनाम कर रहे हैं। इसमें कुछ भी उलझनभरा नहीं। बहुत ही आसान। यह फार्मूला अपनाइये - जीतेन्द्र रतलाम में कपड़े का थोक व्यापार करता है। उसका साला वीरेन्द्र इन्दौर में होटल चलाता है। वीरेन्द्र का साला नरेन्द्र भोपाल में ट्रांसपोर्ट का धन्धा करता है। नरेन्द्र के चाचा का लड़का संजय रायसेन में बीमा एजेण्ट है। संजय का चचेरा भाई अजय झाँसी में प्रापर्टी ब्रोकर है। अजय का फूफा विजय लुधियाना में गारमेण्ट फैक्ट्री चलाता है। विजय का दामाद चंचल रोहतक में आरटीओ में बड़ा बाबू है। चंचल की सास आरती बेन सूरत में वार्ड पार्षद है। आरती बेन की बड़ी बेटी किंजल दादर (मुम्बई) में वकालात करती है। आपको करना क्या है? बस यही तलाश करना है कि जीतेन्द्र और किंजल का क्या रिश्ता हुआ? यह समझ गए तो जीएसटी समझ गए। बस! इतनी सिम्पल सी बात भी न समझ सके तो फिर धन्धा क्या खाक करेंगे? यह नासमझी आपकी प्राब्लम है। जीएसटी का कोई दोष नहीं।’ मैं हक्का-बक्का, उनका मुँह देखने लगा। मेरी दशा, ‘आए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास’ जैसी हो गई। मैं गया था जीएसटी समझने और मुझे यह पहेली थमा दी गई।

मेरी दशा देख वे हँस पड़े। वे मेरे कस्बे के जाने-माने सी ए हैं। मुझे जीएसटी समझना था। सोचा, व्यापारियों और राजनेताओं से मिलने का कोई मतलब नहीं। उनके अपने-अपने आग्रह/पूर्वाग्रह हैं। इसलिए कुछ सी ए से मिलना तय किया। यह भी कि केवल भाजपाई सीए से मिलूँगा। पाँच सी ए से मिल चुका था। ये छठवें थे। इनकी और मेरी खूब पटती है। ये भी सीधे मुँह बात नहीं करते और मैं भी। बहुत ही परिहासप्रिय। बोले - ‘आपको क्या समझाऊँ? अभी तो हम सी ए ही इसका आदि और अन्त तलाश कर रहे हैं। इसकी सैद्धान्तिकता और व्याहारिकता का समन्वय बिन्दु खोज रहे हैं। आप पेरासिटामॉल की गोली की तरह समझना चाहे रहे हैं। गोली ली और बुखार दूर। लेकिन यह ऐसा नहीं है। चीज तो अच्छी है लेकिन अमल में आने पर ही सारी चीजें धीरे-धीरे साफ होंगी।’

पूरी बात मुझे किसी एक जगह नहीं मिली। लेकिन छहों जानकारों से मिली बातें कुल मिलाकर भयावह निराशाजनक चित्र ही बनीं।

सबका कहना था कि यह प्रणाली है तो बहुत अच्छी लेकिन इसका निकृष्ट क्रियान्वयन ‘सब-कुछ ध्वस्त होने की सीमा तक गुड़-गोबर कर देगा।’ इसकी परिणति साफ नजर आ रही है - ‘न खुदा ही मिला न विसाले सनम।’ सड़कछाप जबान में ‘खाया-पीया कुछ नहीं। गिलास फोड़ा छः आने।’ 

जीएसटी वस्तुतः कर चोरी को समूल नष्ट करदेनेवाली प्रणाली है। लेकिन कर चोरी हमारी आदत है और पडी आदत तो श्मशान में ही छूटती है। फिर, हम एक आदर्श अनुप्रेरित समाज हैं - ‘जैसा राजा, वैसी प्रजा।’ हम सब अपने राजा की जय भले ही बोलते हैं लेकिन जानते हैं कि हमारे शासक ईमानदार नहीं हैं। ऐसे में जीएसटी लागू करने का मतलब ‘बेईमान नेताओं द्वारा ईमानदार मतदाता की चाहत’ है जो चूँकि वाजिब नहीं है इसलिए सम्भव भी नहीं। इसलिए यह प्रणाली कर संग्रह के मामले में भले ही सरकार की मंशा पूरी कर दे लेकिन कर चोरी रुकने की रंचमात्र भी उम्मीद नहीं।  तब देश में ‘दरिद्र लोगों की अमीर सरकार’ होगी।

इन सी ए के अनुसार यह भाजपा का चारित्रिक बदलाव (रेडिकल चेंज) भी है। अब तक भाजपा को व्यापारियों की पार्टी कहा जाता है। लेकिन जीएसटी लागू कर भाजपा ‘कार्पोरेट घरानों की पार्टी’ में बदल गई है। अब छोटे व्यपारियों के लिए धन्धा कर पाना असम्भवप्रायः हो जाएगा। छोटी दुकानों पर सामान मँहगा मिलेगा और बड़े शो-रुमों/मॉलों में सस्ता। जीएसटी के मुताबिक अब वही व्यापारी काम कर सकेगा जिसके पास आईटी तकनीक के नवीनतम भरपूर साधन और जानकार लोग होंगे। यह सब कार्पोरेट घरानों के पास पहले से ही मौजूद है। जबकि छोटे व्यापारी को यह सब स्थापित करने के लिए ढेर सारी पूँजी लगानी पड़ेगी। पहले दुकानदार एमआरपी से कम पर माल बेच देता था। अब वह सम्भव नहीं होगा। अब उसे मुनाफे में भरपूर कमी करके माल बेचना पड़ेगा। परिणाम होगा कि ग्राहक को माल मँहगा मिलेगा और दुकानदार जिन्दा रहने के लिए संघर्ष करेगा। एक सी ए ने साफ-साफ कहा - ‘अब छोटे दुकानदार बड़े मॉलों में सेल्समेन या मुनीम की नौकरी करते नजर आएँ तो ताज्जुब मत कीजिएगा।’ 

एक सी ए ने बहुत ही आधारभूत बात कही - ‘अस्पष्ट और जटिल कर प्रणाली सदैव व्यापारी और ग्राहक के लिए दुःखदायी होती है। जीएसटी ऐसी ही है। इसकी व्याख्या करने का अधिकार और सुविधा अफसरों को दे दी गई है। अब उनका कहा अन्तिम होगा। इसके चलते मशीनरी खुल कर खेलेगी। अब हालत यह हो जाएगी कि ईमानदार कारिन्दे को भी रिश्वत लेनी ही पड़ेगी। इंस्पेक्टर राज खुलकर खेलेगा और अफसरशाही ताण्डव करेगी। 

एक सी ए ने मानो भविष्यवाणी की - ‘प्रदेश का सेल्स टैक्स (वाणिज्यिक कर) का अमला अब तक भोला था। व्यापारी जो कहता, देता था, प्रसन्नतापूर्वक ले लेता था। क्योंकि पहले सेल्स टैक्स और एक्साइज अलग-अलग लगता था और अधिकांश व्यापारी एक्साइज से मुक्त थे। एक्साइज के अमले के भाव, सेल्स टैक्स वालों के मुकाबले कई गुना होते हैं। अब जीएसटी में सेल्स टैक्स और एक्साइज एक हो गए हैं। इसके चलते सेल्स टैक्स का ‘भोला-भाला’ अमला खूँखार हो जाएगा। ऐसे में अब एक्साइज मुक्त व्यापारी भी एक्साइज का ‘जबराना’ चुकाने को मजबूर होगा।’

जीएसटी को अपने पेशे से जोड़ते हुए एक सी ए ने कहा - ‘अब हम लोग कम व्यापारियों में पहले से ज्यादा व्यस्त हो जाएँगे। पहले व्यापारी को साल भर में पाँच रिटर्न फाइल करने पड़ते थे। अब सैंतीस करने पड़ेंगे। व्यापारी के पास पहले पाँच के लिए ही वक्त नहीं होता था। वह सैंतीस के लिए वक्त कहाँ से लाएगा? जाहिर है कि हमारा काम नौ गुना बढ़नेवाला है।’

एक सी ए ने इसमें रोजगार की सम्भावनाएँ देखीं। कहा कि ऐसे अनेक युवा हैं जो सी ए बनना तो चाहते थे लेकिन बन नहीं पाए। ऐसे तमाम आधे-अधूरे सी ए को ‘पात्र’ (क्वालिफाइड) सी ए की हैसियत मिल जाएगी। इनके अलावा अनेक ‘नीम हकीम सलाहकार’ भी सामने आ जाएँगे। भय यह है कि कर प्रणाली की अस्पष्टता/जटिलता और अधकचरे सलाहकारों की भीड़ के चलते ऊँची दरों वाले बिचौलियों की नई किस्म न विकसित हो जाए।

एक सी ए ने मर्मान्तक पीड़ा से कहा - ‘मैं कट्टर भाजपाई हूँ और मोदी का समर्थक भी। लेकिन एक सी ए के रूप में सचाई से मुँह नहीं मोड़ सकता। मैं साफ देख रहा हूँ कि अपने इंटेंशन्स के मामले में यह (जीएसटी) बुरी तरह से विफल होगी। औंधे मुँह गिरेगी। अफसरों, इंस्पेक्टरों, बाबुओं की रिश्वतखोरी और नेताओं के भ्रष्टाचार में तिल भर भी कमी नही आएगी। सब कुछ वैसा का वैसा ही चलता रहेगा। सरकार को रेवेन्यू तो मिलेगा लेकिन लोगों की बददुआएँ भी मिलेंगी। तकलीफ की बात यह है कि मैं यह सब होते हुए देखूँगा, इसका पार्ट एण्ड पार्सल बनूँगा। लेकिन कर कुछ नहीं पाऊँगा।’

जिन छठवें सी ए सा’ब से बात शुरु की थी, उन्हीं से खतम कर रहा हूँ। मेरे मजे लेने के बाद संजीदगी से बोले - ‘यह सब देखते, कहते बहुत तकलीफ हो रही है। नोटबन्दी नाश थी। जीएसटी सर्वनाश नहीं तो सत्यानाश तो है ही। कोढ़ में खाज वाली कहावत भी इसके सामने कहीं नहीं लगती। भगवान सब ठीक करे।’

जीएसटी से मेरा दूर-दूर का वास्ता नहीं। लेकिन मैं डरा हुआ हूँ। बहुत ज्यादा। पता नहीं, जिनका इससे वास्ता है, उनका क्या हाल होगा।
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(दैनिक 'सुबह सवेरे', भोपाल में 20 जुलाई 2017 को प्रकाशित)

8 comments:

  1. सुन्दर रचना,

    मेरे चिट्ठे (https://kahaniyadilse.blogspot.in/2017/07/foolish-boy.html) पर आपका स्वागत है|

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  2. ऐसा सब पढ़ कर कभी-कभी तो लगता है कि क्या यह योजना ऐसे लोगों ने बनाई है जिन्हें किसी बात का इल्म नहीं है या फिर वही लोग चिल्ला-चिल्ला कर विरोध कर रहे हैं जिन्हें इसके आने बाद अपना बेडा गर्क होते दिख रहा है या सिर्फ विरोध करना है इसलिए विरोध किया जा रहा है ! सुना है दसियों देशों में यह सब सुचारु रूप से चल रहा है, वहाँ से तो कोई विरोधी शब्द सुनाई नहीं देता !!

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    1. इन सब सी ए से मैंने भी यह सब पूछा था। सबसे मिले, अलग-अलग जवाबों का सार था - (1) वहाँ लोगों को टैक्स चुकाने की आदत है। वे कर चोरी में भरोसा नहीं करते। (2) वहाँ के लोग अपने नेताओं को चोर, बेईमान, भृष्ट नहीं मानते। (3) वहाँ जीएसटी सीधा-सादा, बिना किसी उलझन, बिना किसी 'किन्तु-परन्तु' वाला है। (4) वहाँ करों की दरें गिनती की हैं, एक या दो। इन्हीं सब बातों के चलते वहाँ सब राजी-खुशी है।
      इस पोस्ट में मेरी अपनी कोई राय नहीं है। किसी का नाम न दे पाना मेरी 'लेखकीय विवशता' है।

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  3. सरकार के बड़े अधिक समझदार अधिकारियों ने व्यापारी को चोर और डाकू जैसा समझते हुए,अत्यधिक जटिल और बगैर सॉफ्टवेयर के एक इंच भी न सरकने वाला एक्ट GST बनाया है । केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारियों में भी सत्ता और प्रभुत्व को लेकर युद्ध होने की प्रबल संभावना बलवती दिखाई दे रही है । क्यू लगा ये gst, क्यूँ सरकार है अड़ियल न तुम जानो न हम । आपका लेख भयानक सत्य को प्रगट कर रहा है । फिर भी मोदी का जादू काले धागे की तरह बरकरार है ।

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  4. सरकार के बड़े अधिक समझदार अधिकारियों ने व्यापारी को चोर और डाकू जैसा समझते हुए,अत्यधिक जटिल और बगैर सॉफ्टवेयर के एक इंच भी न सरकने वाला एक्ट GST बनाया है । केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारियों में भी सत्ता और प्रभुत्व को लेकर युद्ध होने की प्रबल संभावना बलवती दिखाई दे रही है । क्यू लगा ये gst, क्यूँ सरकार है अड़ियल न तुम जानो न हम । आपका लेख भयानक सत्य को प्रगट कर रहा है । फिर भी मोदी का जादू काले धागे की तरह बरकरार है ।

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  5. प्रभु, बहुत ही सामयिकी विचार लिखा है, जो चोर है वे नयी-नयी प्रणाली ईजाद करेगें, सीए नामक प्राणी है ना, ओर जो नहीं है उनको अगर बाजार में टिकना है तो चोरी करना उनकी विवशता होगी।

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  6. क्या यह योजना ऐसे लोगों ने बनाई है

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  7. ये भारत भूमि है यहाँ हर एक का तोड़,जुगाड़ है सिर्फ कुछ समय दीजिये आप के पास हर समस्या के समाधान CA ही दे देंगे । सब की अपनी व्यवस्था है

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