भक्त भूखे: भगवान को अजीर्ण


धर्म के नाम पर हमारे देश में कुछ भी हो सकता है और कुछ भी किया/कराया जा सकता है। हमारी राष्ट्रीय भावनाएँ अपवादस्वरूप भी आहत हो जाएँ तो बड़ी बात किन्तु धार्मिक भावनाएँ कभी भी, किसी भी बात पर आहत हो जाती हैं। धार्मिक परम्पराओं के साथ छोटी सी छेड़-छाड़ भी हमे बर्दाश्त नहीं होती। यह अलग बात है कि जब हमें धार्मिक परम्पराओं से छेड़-छाड़ करनी होती है तो हम ‘परम्परा का विस्तार’ जैसे तर्क देकर अपने अधर्म को छुपा लेते हैं।


दीपावली के अगले दिन अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है। इसे, दीपावली के दूसरे दिन ही मनाए जाने का प्रावधान है। किन्तु मेरे कस्बे में यह महोत्सव, देव प्रबोधनी एकादशी तक, याने पूरे दस दिनों तक मनाया जाता है-किसी दिन किसी मन्दिर पर तो किसी दिन दूसरे मन्दिर पर। दिन तो गिनती के दस ही होते हैं और मन्दिरों की संख्या अधिक! सो, किसी-किसी दिन दो-दो या तीन-तीन मन्दिरों पर एक साथ अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है।


इसकी शुरुआत कोई मन्दिर नहीं करना चाहता। प्रत्येक मन्दिर के अनुयायी चाहते हैं कि किसी न किसी मन्दिर पर शुरुआत हो जाए। इसके पीछे केवल प्रतियोगिता और प्रदर्शन की भावना होती है - धर्म का अता-पता शायद ही रहता हो। प्रत्येक मन्दिर के अनुयायी चाहते हैं कि उनके मन्दिर का अन्नकूट कस्बे का ‘सर्वाधिक सम्पन्न और समृद्ध अन्नकूट’ हो। किन्तु किसी न किसी मन्दिर को तो शुरु करना ही होता है। सो, शुरुआत करने वाले मन्दिर का अन्नकूट, लाख कोशिशों के बावजूद, कस्बे के अन्य मन्दिरों के अन्नकूट के मुकाबले में ‘गरीब और सादा अन्नकूट’ साबित होता है क्योंकि उस मन्दिर का अन्नकूट देखने के बाद अन्य मन्दिरों के अनुयायी अपने-अपने मन्दिर के अन्नकूट को उससे बेहतर तथा संख्या और मात्रा में अधिक व्यंजनों वाला बनाने की कोशिश करते हैं।


यहाँ दिया गया, प्रेस फोटोग्राफर शाहीद मीर का यह चित्र दैनिक भास्कर (रतलाम संस्करण) से उठाया गया है। मेरे कस्बे के सर्वाधिक सघन, वाणिज्यिक स्थल माणक चौक स्थित महालक्ष्मी मन्दिर के अन्नकूट के ढेर सारी थालियों में रखे व्‍यंजन तो नजर आ रहे हैं किन्‍तु ऐसा काफी कुछ है जो दिखाई नहीं दे रहा।


इस मन्दिर के अन्नकूट के लिए बनाए गए व्यंजनों में लगने वाले कच्चे माल के आँकड़े, अलग-अलग अखबारों में अलग-अलग छपे थे। उनमें से सबसे कम वाले आँकड़े इस प्रकार हैं - 25 क्विण्टल आटा, 40 डिब्बे देसी घी और 5 ड्रम (प्रत्येक ड्रम 200 लीटर का) मूंगफली तेल। मावा, बेसन और प्रयुक्त मसालों का आँकड़ा किसी ने नहीं दिया किन्तु 15 क्विण्टल नमकीन और मिठाई के लिए 50 किलो काजू/बादाम प्रयुक्त किए जाने की सूचना अवश्य दी। इस महोत्सव के लिए प्रयुक्त सब्जियों का वजन किसी ने नहीं बताया किन्तु यह अवश्य बताया कि सब्जियों को काटने/छीलने के लिए सैंकड़ों महिलाएँ और बच्चे (याने बच्चियाँ) दो दिन तक जुटे रहे। व्यंजन बनाने के लिए 30 कारीगर (हलवाई) तीन दिन-रात लगे रहे। ढाई सौ थालियों में ये पकवान (अर्थात् पकवानो के नमूने) प्रदर्शित किए गए। यह स्थिति मेरे कस्बे में पूरे दस दिनों तक चलती है। अपना अन्नकूट सर्वाधिक समृद्ध और सम्पन्न बनाने की जोड़-तोड़-होड़ लगी रहती है। इन दस दिनों में अन्नकूट का खर्च करोड़ का आँकड़ा तो पार कर ही लेता है।


कस्बे के तमाम मन्दिरों पर होने वाले, अन्नकूट महोत्सव के इन पकवानों की सामग्री पर और इनके बनाने पर कितना खर्च आया होगा और कितने हजार लोगों ने, कितनी देर पंक्तिबद्ध-प्रतीक्षारत रहकर प्रसादी ग्रहण की होगी, यह अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है। किन्तु इसके समानान्तर कुछ बातों के लिए अनुमान लगाने की आवश्यकता नहीं क्योंकि ये ‘बातें’ नहीं ‘तथ्य’ हैं। इनमें प्रमुख हैं -मेरे कस्बे के अधिकांश सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में बिजली कनेक्शन नहीं है। इस कारण गर्मियों के दिनों में बच्चों और अध्यापकों/अध्यापिकाओं को पढ़ने/पढ़ाने में अत्यधिक असुविधा होती है तथा सर्दी और बरसात के मौसम में कमरों में अँधेरा छाया रहता है। अधिकांश स्कूलों में चपरासी की व्यवस्था नहीं होने से बच्चों को अपनी कक्षाओं में झाड़ू लगाना पड़ता है। कुछ स्कूलों में मूत्रालयों की समुचित व्यवस्था नहीं है। फलस्वरूप लड़के स्कूल परिसर में पेशाब करते हैं, लड़कियों को अत्यधिक असुविधा झेलनी पड़ती है और अध्यापिकाओं को (स्कूल के) पड़ौसियों के मूत्रालयों का सहारा लेना पड़ता है।


अनुमान लगाया जा सकता है कि किसी भी एक मन्दिर के अन्नकूट पर खर्च होने वाली एक वर्ष की सकल रकम से बहुत कम रकम में ही मेरे कस्बे के तमाम स्कूलों में ये सारी सुविधाएँ जुटाई जा सकती हैं। किन्तु यह सब करना ‘धार्मिक’ नहीं होता।
कहाँ तो जुलूस का मार्ग बदलने की बात पर मार-काट मच जाती है और यहाँ धार्मिक प्रावधान की धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं! धर्म तो आचरण का विषय होता है किन्तु उसे किस फूहड़ता से प्रदर्शन में बदल दिया जाता है? वह भी गर्वपूर्वक?


सरकारी आँकड़ों के अनुसार देश की 35 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही है। एक अन्य चर्चित रिपोर्ट के मुताबिक देश के 65 प्रतिशत से भी अधिक लोग, 20 रुपये प्रतिदिन से भी कम पर गुजारा करने को अभिशप्त हैं। ऐसे में, ये अन्नकूट क्या साबित करते हैं?


यह कैसी धार्मिकता है कि भक्त भूखों मरें और भगवान अजीर्ण से परेशान रहें?


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5 comments:

  1. बैरागी जी, इन से हमें पीछा छुड़ाने में बहुत समय लगेगा। इस के आयोजन कर्ताओं की संख्या बहुत है और पीछा छुड़ाने की सोचने वाले बहुत कम।

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  2. वाह साब और मुझे तो लगा था की दाल की बढ़ते दाम के चलते अच्छे अच्छे लोगो की दाल नहीं गल पा रही होगी, लेकिन यहाँ केवल दाल ही नहीं गल रही है.
    और भी बहुत कुछ है जो गल रहा है और सड़ भी रहा है.
    लोग क्यों नहीं समझते की भगवान् को आधा टुकडा चाहिए वो भी चावल के एक दाने का. जिमाओ तो सुदामा को जिमाओ वो भी एक-दो दिन के लिए नहीं हमेशा के लिए. यार तुम लोगो ने इतना पैसा लगाया दो-तीन दिन लोगो को जिमाया - इतने के आधे से भी कम मई ये मंदिर कही सही जगह पुनर्स्थापित हो जाता. माताजी को सब्जी मण्डी की गंदगी से छुटकारा मिल जाता.
    है तो लक्ष्मी मैया लेकिन उनको भी सड़क पैर बैठा रखा है.
    अब जिस शहर की लक्ष्मी मैया ही सड़क पैर अतिक्रमण करेगी तो शहर वासियों के घर मई जाने का मौका कब और कैसे मिलेगा, इधर लक्ष्मीजी किसी के यहाँ थोडा देर के लिए गई और वह उनकी सड़क पैर किसी और ने अतिक्रमण केर लिया तो.
    खेर यार ये पढ़ केर अच्छा लगा की बड़े शेहेरो वाला रिशेशन अभी डालू मोती बाज़ार नहीं पंहुचा है.
    टीवी तो तुम लोग भी देखते होगे एक विज्ञापन देखना किसी बीमा कंपनी का है, उसमे एक बच्चे को दिखाया है. वो कहता है "पापा मेरे फुअचर के बारे मे क्या सोचा है" ... और यह कहने के बाद उसका बाप भी वैसे ही निरुतर हो जाता है जैसे की आज मुझे इस "भंडारे" ने किया है.
    बैरागी साब धन्यवाद कभी इस ओर ध्यान ही नहीं गया था.

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  3. हमें अपनी प्राथमिकताओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है. जब देश में दूध घी की नदियाँ बहती थीं तब आन्कूत के सामूहिक भोज का आनंद अलग ही रहा होगा मगर आज यदि इस भोग के सहारे भूखों को भोजन नहीं दिया जा सकता है तो सचमुच ऐसे आयोजनों में क्रांतिकारी परिवर्तन की ज़रुरत है.

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  4. is vishaya par mai likhane vala hi tha, aur aapki yaha post padi, fir bhi mujhe lagata hai ki is vishaya par likhana chahiyen, ek samadhan ke satha....
    so, 1-2 din me post karonga, aap jaroor paden v apana mat batayen....

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