आज तो आपने लूट लिया

अखबारों और पत्र/पत्रिकाओं में आए दिनों कभी ‘हिंगलिश’ के पक्ष में सीनाजोरी से दिए तर्क सामने आते हैं तो कभी हिन्दी के पक्ष में, गाँव-खेड़ों, कस्बों से उठते एकल स्वर सुनाई देते हैं। सीनाजोरी का विरोध करने और एकल स्वरों में अपना स्वर मिलाने को मैंने अपनी फितरत बना रखी है ताकि सीनाजोरों की निर्द्वन्द्वता, नाम मात्र को ही सही, बाधित हो और एकल स्वरों को अकेलापन न लगे। ऐसे सैंकड़ों पत्र मैंने लिखे किन्तु उनका कोई रेकार्ड नहीं रखा। 5 सितम्बर को अचानक ही विचार आया कि इन पत्रों का रेकार्ड रखा जाना चाहिए। इसीलिए इन पत्रों को 5 सितम्बर से अपने ब्‍लॉग पर पोस्ट करना शुरु कर दियाँ। ये मेरे ब्‍लॉग की पोस्टों में शरीक नहीं हैं। मैं जानता हूँ इनकी न तो कोई सार्वजनिक उपयोगिता है और न ही महत्व। यह जुगत मैंने केवल अपने लिए की है।


प्रिय रघुरामनजी,

सविनय सप्रेम नमस्कार,

आज (11 अक्टूबर 2010 को) तो आपने आत्मा प्रसन्न कर दी। लूट लिया मुझे और मुझ जैसे समस्त लोगों को। यह ‘रघुरामन’ अब तक कहाँ छिपा हुआ था?

‘दैनिक भास्कर’ में आज, आपके स्तम्भ ‘मैनेजमेंट फंडा’ में प्रकाशित आलेख ‘समझें ब्रांडिंग और पैकेजिंग की महत्ता’ में आपने वे ही अंग्रेजी शब्द प्रयुक्त किए हैं जिनके शाब्दिक आनुवादिक हिन्दी शब्द यदि प्रयुक्त करते तो वह हिन्दी, सहज हिन्दी न होकर ‘कृत्रिम हिन्दी’ हो जाती।

हालाँकि इसमें प्रयुक्त ‘रूट’ के लिए ‘मार्ग’ और ‘कोऑपरेटिव स्टोर’ के स्थान पर ‘सहकारी भण्डार’ (‘सहकारी भण्डार’ शब्द न केवल महाराष्ट्र में अपितु समूचे हिन्दी अंचल में समान रूप से जाना, पहचाना, बोला और लिखा जाता है) शब्द प्रयुक्त किए जा सकते थे किन्तु आज आत्मा इतनी प्रसन्न है कि इस ओर देखने की इच्छा ही नहीं हो रही।

आपकी आजकी इस प्रस्तुति को मैं आपका मुझ पर निजी उपकार मानता हूँ और इस हेतु आपके प्रति अपने अन्तर्मन से कोटिशः आभार व्यक्त करता हूँ।

आपसे आग्रह, आशा और अपेक्षा है कि कृपया हिन्दी के प्रति यही सजगता और चिन्ता, निरन्तर और नियमित रूप से बरतते रहें और हिन्दी आपके कारण तथा आप ‘हिन्दी के यशस्वी सपूत’ की तरह पहचान पाएँ।

अपना यह सन्देश मैं कल दिनांक 12 अक्टूबर 2010 को मेरे ब्लॉग ‘एकोऽहम्’ पर ‘आज तो आपने लूट लिया’ शीर्षक से प्रकाशित कर रहा हूँ।

धन्यवाद और शुभ-कामनाओं सहित।

विनम्र,
विष्णु बैरागी

1 comment:

  1. हिन्दी के यशस्वी सपूत


    :)


    पूत सपूत तो क्या धन संचय
    पूत कपूत तो क्या धन संचय....


    -ये तो दोनों मे फिट पाये गये. :)

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