सब विफल हो गए?

यह किसकी विफलता है? धर्म की? धर्म गुरुओं की? या धर्मानुयायियों की?

हम दुहाई देते हैं कि हम अपने धर्माचार्यों, सन्तों
से निर्देशित होते हैं, जीवन की दिशा प्राप्त करते हैं। इतना ही नहीं, हममें से कई तो चाहते हैं कि हमारा ‘राज्य’ भी धर्माचार्यों से परामर्श ले और ‘धर्म मार्ग’ पर चले। याद आता है मुख्यमन्त्री के रूप में उमा भारती का शपथ ग्रहण समारोह जिसमें अनेक धर्म गुरु अपनी प्रिय साध्वी को एक शासक के रूप में शपथ लेने के साक्षी बनने हेतु भोपाल के लाल परेड ग्राउण्ड में पधारे थे। एक बड़ा मंच इन धर्म गुरुओं के लिए अलग से बनाया गया था। सारे धर्म गुरु, राजकीय अतिथि थे।

लेकिन यह समाचार तो पूरा नक्शा ही बदल रहा है! हजारों अनुयायियों (ये अनुयायी धर्म के भी रहे होंगे और धर्माचार्य के भी) की उपस्थिति में एक धर्माचार्य, ‘सीकरी’ से हस्तक्षेप की माँग कर रहा है। समाचार में यद्यपि उपस्थिति के आँकड़े का कोई संकेत नहीं दिया गया है तदपि सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि धार्मिक ‘दीखने’ का कोई भी मौका न छोड़नेवाले धर्मालु, हजारों की संख्या में उपस्थित रहे होंगे। लेकिन लगता है, एक ने भी धर्माचार्य का आह्वान सर-माथे नहीं लिया। अन्यथा ऐसे आयोजनों में, धर्माचार्यों के आह्वान के परिपालन के लिए धार्मिक लोगों में होड़ लग जाती है। पूजा प्रक्रिया के विभिन्न चरणों का श्रेय लेने के लिए बोली लगानेवालों में प्रतियोगिता छिड़ जाती है। बात सैंकड़ों, हजारों से होती हुई लाखों तक पहुँच जाती है। सबको मालूम हो जाता है कि किसने, धर्म की किस विधि का, कितनी बड़ी रकम से, धर्म-लाभ लिया।

लेकिन यहाँ धर्माचार्य की बात पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। यहाँ बात त्याग की थी, प्रदर्शन से दूर रहने की थी। धर्माचार्य ने पटाखों से दूर रहने की बात कही थी। कहा था कि जिस देश की आधी से अधिक आबादी गरीबी रेखा के नीचे जी रही है वहाँ पटाखों से देश में प्रति वर्ष अरबों रुपये भस्म कर देने का तमाशा अपमानजनक और घृणास्पद है।

धर्माचार्य ने जानकारी दी थी कि पटाखों के शौक के कारण केवल राजस्थान में ही प्रति वर्ष 70 हजार से अधिक लोगों को शारीरिक क्षति पहुँचती है - कोई जल जाता है, किसी की आँखों की रोशनी चली जाती है, कोई बहरा हो जाता है।

पटाखों के दुष्प्रभाव गिनाते हुए धर्माचार्य ने कहा कि इनके कारण बूढ़े और बीमार लोग सो नहीं पाते, परीक्षा की तैयारी कर रहे बच्चे पढ़ नहीं पाते, इनकी आवाज से पशु-पक्षी-बच्चे डर जाते हैं, वायु मण्डल अत्यधिक प्रदूषित हो जाता है, लोगों को अस्थमा, उच्च रक्त चाप, चमड़ी की एलर्जी जैसी घातक बीमारियाँ हो जाती हैं, पटाखों की फैक्ट्रियों में काम करनेवाले श्रमिक कभी स्वस्थ दशा में घर नहीं लौटते क्योंकि बारूद का जहर उनकी उम्र कम कर देता है।

उपरोक्त तमाम तथ्यों के प्रकाश में धर्माचार्य ने ‘सरकार से माँग की’ कि सरकार ने जिस प्रकार बाल विवाह, सती प्रथा, पॉलीथिन आदि के विरुद्ध कानून बनाए हैं, उसी प्रकार पटाखों पर प्रतिबन्ध के लिए भी कानून बनाए। धर्माचार्य ने धर्म गुरुओं, पालकों और शिक्षकों से भी आग्रह किया समाज और मानवता का भला करने के लिए वे बच्चों और युवाओं को समझाएँ।

सामाजिक बदलावों के लिए कोई धर्माचार्य ‘राज्य’ से माँग करे यह अटपटा ही लगता है। लोग अपने नेताओं और अफसरों की बात एक बार भले ही न मानें किन्तु अपने धर्माचार्यों की बात न मानने से पहले हजार बार सोचते हैं।

आदर्श स्थिति तो यही होती कि पटाखों की घातकता और अनौचित्य प्रस्तुत करने के साथ ही साथ धर्माचार्य अपने अनुयायियों को, पटाखे न छोड़ने के लिए संकल्पबद्ध करते। यदि उन्होंने ऐस नहीं किया तो सहज अपेक्षा होती है कि अपने आचार्य की इच्छा जानकर, वहाँ उपस्थित अनुयायी (भले ही सबके सब नहीं, कुछ ही सही) पटाखे न छोड़ने का संकल्प लेकर अपने धर्माचार्य के प्रति आदर और निष्ठा प्रकट करते। किन्तु न तो इन्होंने कहा और न ही उन्होंने। इन्होंने कहा, उन्होंने सुन लिया। मानो, धर्मोपदेश एक खानापूर्ति मात्र हो।

ऐसे सन्दर्भ-प्रसंगों में सहसा ही भक्ति काल के धर्माचार्य याद आ जाते हैं जिन्होंने समाज को दिशा दी। उनके पीछे पूरा समाज चला और उन सन्तों ने समाज को कष्टों से छुटकारा दिलाया।

पर आज सब कुछ पूरी तरह से बदल गया है। अब तो धर्माचार्य कहते रहते हैं और लोग एक कान से सुनकर दूसरे कान से उसे निकालते रहते हैं। धर्माचार्य भी इस वास्तविकता को भली प्रकार जानते हैं। तभी तो वे लोगों से आग्रह/अपेक्षा नहीं करते, नहीं, ‘राज्य’ से ‘माँग’ करते हैं।

धर्म कभी जड़ नहीं होता। वह तो व्यक्ति के विकास का श्रेष्ठ औजार होता है, बशर्ते उसे आचरण में उतारा जाए। लेकिन अब धार्मिक होना जोखिमभरा हो न हो, नुकसानदायक जरूर हो सकता है। सो धार्मिक दीखने में ही भलाई है।

यह किसकी विफलता है?
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7 comments:

  1. दिये जलें, सुगन्धयुक्त पटाखे भी। प्रदूषण न फैलाया जाये।

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  2. इन्होंने कहा, उन्होंने सुन लिया। मानो, धर्मोपदेश एक खानापूर्ति मात्र हो
    इससे अधिक कुछ है भी नहीं।

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  3. धर्म के प्रति लोगों का विश्‍वास देखकर बहुत सारे ठगों ने इस क्षेत्र में प्रवेश किया है .. जनसामान्‍य की आस्‍था में कमी आना स्‍वाभाविक है !!

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  4. 6.5/10

    सामाजिक सरोकार से जुडी विचारणीय पोस्ट

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  5. विफलता तो हम सब की है, धार्मिक हों या केवल धार्मिक दिखने का स्वांग रचते हों.

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  6. जेसा गुरु वैसा चेला.... यानि आज के यह धर्माचार्य महा पाखंडी तो चेला उन से चार कदम आगे, सब सिर्फ़ खाना पुर्ति कर रहे हे, बहुत सुंदर ढंग से आप ने आज के बारे लिखा धन्यवाद

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  7. `उमा भारती का शपथ ग्रहण समारोह जिसमें अनेक धर्म गुरु अपनी प्रिय साध्वी को एक शासक के रूप में शपथ लेने के साक्षी '

    और बेचारी को पार्टी से निकालने पर किसी ने आह नहीं भरी :(

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