शहद को डण्डा : कोला को दण्डवत


आपकी-हमारी सेहत को लेकर हमारी सराकर चिन्तित हो गई है। देश के लोगों को मिलवाटी शहद से बचाने के लिए उसने अपना फौलादी इरादा जाहिर कर दिया है - शहद में कीटनाशकों और एण्टीबायोटिक्स की उपस्थिति बर्दाश्त नहीं की जाएगी। जो भी शहद-निर्माता यह अपराध करेगा उसकी अनुज्ञप्ति (लायसेंस) तो निरस्त होगी ही, उसे जेल भी जाना पड़ सकता है।

लेकिन यह तो बाद की बात है। डॉक्टर सुनीता नारायण की पहल पर शुरु हुई मूल बात पेश की जाए, उससे पहले, उपरोक्त क्रम में कुछ बातें और।

भारतीय संसद द्वारा गठित, खाद्य सुरक्षा तथा मानक प्राधिकरण (अर्थात् फूड सेफ्टी एण्ड स्टैण्डर्ड अथॉरिटी अर्थात् एफएसएसए) द्वारा शहद के गुणवत्ता मानक निर्धारित करते हुए शहद निर्माताओं के लिए जारी दिशा निर्देशों के अनुसार शहद निर्माता अब शहद के प्राकृतिक रंग से छेड़छाड़ नहीं कर सकेंगी। याने, अब प्राकृतिक रूप से तैयार शहद ही बेचा जा सकेगा। ऐसा न करनेवाले निर्माताओं की अनुज्ञप्ति जब्त कर उन पर क्षाद्य अपमिश्रण कानून 1955 के तहत दाण्डिक कार्रवाई की जाएगी।
उपभोक्ता मामलों के मन्त्रालय के प्रवक्ता के अनुसार शहद की गुणवत्ता के लिए 11 सूत्री मानक निर्धारित किए गए हैं जिनके तहत शहद का ‘निर्माण तापमान’ 27 डिग्री, नमी का प्रतिशत 25, शकर मात्रा 65 प्रतिशत तथा ग्लूकोज की मात्रा 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। इसी प्रकार मेटल की मात्रा के लिए भी आठ सूत्री मानक निर्धारित किए गए हैं। मन्त्रालय के अनुसार शहद के उपरोक्त घरेलू मानक निर्धारित करते समय अन्तरराष्ट्रीय मानकों का भी ध्यान रखा गया है ताकि निर्यातकों को किसी प्रकार की परेशानी नहीं हो। जाहिर है कि घरेलू मानक किसी भी प्रकार से अन्तरराष्ट्रीय मानकों से निचले स्तर के नहीं होंगे अन्यथा निर्यातकों को कठिनाई हो सकती थी क्योंकि शहद की गुणवत्ता के लिए जो नियम, कानून (और मानक भी) भारत में हैं, वे ही नियम, कानून (और मानक भी) योरोपीय संघ और अमेरीका में भी हैं।

भारतीय गुणवत्ता परिषद् (अर्थात् क्वालिटी कौंसिल ऑफ इण्डिया याने क्यूसीआई) के मुताबिक निर्माता कम्पनियों के उत्पादों की नए सिरे से जाँच की जा सकेगी और नए मानकों पर खरा उतरनेवाले निर्माताओं को ‘ए ग्रेड’ का प्रमाण-पत्र दिया जाएगा।

सरकार ने कहा है कि शहद की पेकिंग, मार्किंग और लेबलिंग के लिए उसने पहले से ही दिशा निर्देश जारी कर रखे हैं। अब इस कानून पर कठोरता से अमल किया जाएगा ताकि शहद में किसी भी प्रकार की मिलावट को रोका जा सके।

और अब, यह है डॉक्टर सुनीता नारायण द्वारा उठाई गई मूल बात

भारतीयों के जीवन के प्रति सरकार द्वारा बरती जा रही आपराधिक लापरवाही को बार-बार उजागर करने का श्रेयस्कर परिश्रम और प्रयत्न करनेवाले, अहमदाबाद स्थित गैर सकरारी संगठन ‘विज्ञान एवम् वातावरण केन्द्र’ (अर्थात् ‘सेण्टर फॉर साइन्स एण्ड एनवायर्नमेण्ट’ याने ‘सीएसई’) का यशस्वी नेतृत्व करनेवाली डॉक्टर सुनीता नारायण ने 16 सितम्बर को (अर्थात् लगभग तीन सप्ताह पूर्व) एक रिपोर्ट जारी की थी जिसके अनुसार शहद के 10 में से 9 नमूनों में एण्टीबायोटिक की मात्रा स्वीकृत स्तर से कई गुना अधिक पाई गई थी। इतना ही नहीं, विदेशी ब्राण्डों के दो नमूनों में भी यह मात्रा अधिक पाई गई थी।

समाचार चैनलों ने यह समाचार प्रमुखता से प्रसारित किया था। कुछ चैनलों ने डॉक्टर सुनीता नारायण सहित देश के कुछ वैज्ञानिकों की ‘जीवन्त बहस’ भी कराई थी। सबने एकमत से डॉक्टर सुनीता नारायण के निष्कर्षों से असंदिग्ध सहमति जताई थी। इस बहस में ‘डाबर’ के भी एक सज्जन ने अपना मत और अपनी कम्पनी का पक्ष रखा था।

हम सबने खुश हो जाना चाहिए और अपनी सरकार पर गर्व करना चाहिए कि उसने हमारी सेहत की चिन्ता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी और हमें मिलावटी तथा कीटनाशकों और एण्टीबायोटिक्स की मिलावटवाले शहद से बचा लिया।

किन्तु यहीं हमारी सरकार का पाखण्ड भी उजागर होता है। इन्हीं डॉक्टर सुनीता नारायण ने बरसों पहले से साबित कर रखा है कि भारत में उपलब्ध कराए जा रहे कोला शीतल पेयों में आपत्तिजनक रासायनिक तत्व मिलाए जा रहे हैं और वे भी वांच्छित मात्रा से कहीं अधिक। डॉक्टर सुनीता नारायण ने सप्रमाण बताया कि भारत में बेचे जा रहे समस्त कोला पेय भारतीय नागरिकों के जीवन के लिए प्राणलेवा सीमा तक घातक हैं।

वैज्ञानिक परीक्षणों के निष्कर्षों के आधार पर डॉक्टर सुनीता नारायण ने भारत सरकार से तत्काल प्रभावी हस्तक्षेप कर इन कोला पेयों के मानकीकरण (स्टैण्डर्डाइजेशन) तथा इन कोला पेयों में उपलब्ध तत्वों और उनकी मात्रा को कोला पेयों की बोतलों पर प्रदर्शित करने की अनिवार्यता हेतु आवश्यक आदेश जारी करने की माँग की। डॉक्टर सुनीता नारायण ने ही बताया कि खुद अमरीका में ही (जहाँ से ये कोला कम्पनियाँ आकर भारत में व्यापार कर रही हैं और भारतीयों को आर्थिक तथा दैहिक रूप से क्षति पहुँचा रही हैं) इनके लिए मानक निर्धारित हैं और बोतलों पर इनके तत्वों की मात्रा प्रदर्शित की जाती है। डॉक्टर सुनीता नारायण ने माँग की कि भारत में उपलब्ध कराए जा रहे ‘कोला’ पर भी अन्तरराष्ट्रीय मानक लागू किए जाएँ।

डॉक्टर सुनीता नारायण की इस माँग पर सरकार में तो उथल-पुथल मची ही, उससे पहले कोला कम्पनियों की चूलें हिल गईं और वे फौरन ही अपनी ‘परम्परागत हरकतों’ पर उतर आईं। वे सरकार को लापरवाह बनाने और बनाए रखने में लम्बे समय तक सफल रहीं। किन्तु मामला संसद के दोनों सदनों में बार-बार उछला और अन्ततः सरकार को एक संसदीय समिति बनानी पड़ी। कोला कम्पनियों ने इस समिति को भी प्रभावित करने की यथा सम्भव कोशिशें कीं। कुछ हद तक वे सफल भी रहीं किन्तु समिति को अपने निष्कर्ष प्रस्तुत करने से रोक नहीं पाईं। समिति ने भी डॉक्टर सुनीता नारायण के निष्कर्षों और आग्रहों से सहमति जताई।

इसके आगे, जहाँ तक मेरी जानकारी है, सर्वोच्च न्यायालय ने भी शायद भारत सरकार को निर्देशित कर, कोला पेयों के मानकीकरण तथा कोला पेयों की बोतलों पर पेयों में उपलब्ध तत्वों की मात्रा प्रदर्शित करने के लिए कह रखा है।

ये दो मामले हैं जो हमारी सरकार के पाखण्ड और अमरीकापरस्ती को उजागर करते हैं। शहद व्यापार करनेवाली कम्पनियों में अधिकांश कम्पनियाँ ‘देसी’ हैं और ‘परदेसी’ कम्पनियाँ नाम मात्र की हैं। शहद का कारोबार नाम मात्र का है जबकि कोला का कारोबार अरबों-खरबों का है। शहद पर डण्डा चलाने से प्रभावित होनेवाली कम्पनियों में अमरीकी कम्पनी शायद ही कोई हो जबकि ‘कोला’ के बहाने भारत का शोषण कर रही तमाम कम्पनियाँ अमरीकी हैं। शहद का उपयोग केवल आवश्यकतानुसार ही किया जाता है, दिखावे के लिए नहीं जबकि ‘कोला’ का उपयोग बिना किसी बात के, बिना किसी कारण के और बिना किसी प्रसंग के किया जाता है, वह भी धड़ल्ले से। शहद की मिलावट से होनेवाले नुकसान लगभग उपेक्षनीय हैं, कहने भर के। वे भी तब, जबकि बीस-तीस बरसों तक उसका नियमित सेवन किया जाए। जबकि ‘कोला सेवन’ का नुकसान तो पहले ही घूँट से शुरु हो जाता है।

जाहिर है कि मिलावटी शहद बरसों तक बिकते रहने के बाद भी उतना नुकसान नहीं कर पाता जितना कि ‘कोला’ पहली ही बूँद से करता है। याने, प्राणलेवा प्रहार करने के मामले में कोला की एक बूँद, शहद के मनो-टनों वाले भण्डारों को भी मात देती है।

फिर क्या कारण है कि शहद पर फौरन डण्डा चलाने वाली, हमारी सेहत की फिकर में दुबली हो रही हमारी सरकार को ‘कोला’ की ‘जान-लेवा, धन-लेवा’ हरकतें नजर नहीं आ रहीं?

नजर तो आ रही हैं किन्तु करे क्या? वे सबकी सब अमरीकी जो हैं! और आप-हम क्या, सारी दुनिया जानती है कि अमरीका तो हमारा माई-बाप है। जिस सरकार के प्रधान मन्त्री और योजना आयोग के उपाध्यक्ष के पदों पर विश्व बैंक के भूतपूर्व कर्मचारी आसीन हों, वह सरकार भला किसी अमरीकी कम्पनी पर कार्रवाई करना तो दूर, उनकी ओर आँख उठाकर भी कैसे देख सकती है? और केवल सरकार ही क्यों? बाकी सारी पार्टियों ने भी तो चुप्पी साध रखी है! शायद चुनावी चन्दे की मार ही ऐसी होती है कि अच्छे-अच्छों की बोलती बन्द हो जाए।

इसीलिए हमारे देसी शहद पर डण्डे चलाए जा रहे हैं और अमरीकी कोला को दण्डवत किया जा रहा है।

यह अलग बात है कि शहद पर की गई डण्डों की शुरुआत आगे-पीछे इन कोला कम्पनियों तक पहुँचेगी जरूर।

‘कोला’ के विरुद्ध डॉक्टर सुनीता नारायण की लड़ाई के वांछित मुकाम पर पहुँचने का रास्ता साफ हो गया है। उन्हें शुभ-कामनाएँ और सफलता की अग्रिम बधाइयाँ देने का यह ठीक समय है।

सुनीताजी! आगे बढ़िए। सरकार भले ही आपकी अनदेखी, अनसुनी कर रही हो किन्तु पूरा देश जान रहा, समझ रहा है कि आप अपनी नहीं, देश की और देश की अस्मिता की लड़ाई लड़ रही हैं।

खुद को अकेला मत समझिएगा। कई सिरफिरे और पागल लोग आपके साथ हैं।

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8 comments:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति। नवरात्रा की हार्दिक शुभकामनाएं!

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  2. देर सबेर कोला पर डंडा चलेगा ही. सुन्दर प्रस्तुति.

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  3. इसका एक रास्ता ये हो सकता है कि हम कोला का प्रयोग बंद कर दे (वेसे भी ये कोई आवश्यक वास्तु नहीं है) और अन्य लोगो को भी प्रेरित करे कि वे कोला न पीये.

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  4. bade hi sahsi , saty aur vastavikta adharit vichaar .... deshhit meyn hi aapka darpan sacchi tasveer pesh karta hai. badhai.

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  5. cola daat kharab kerta hai, haddiyo ko nuksaan pahuchaa hai, sugar level ko badhata hai aur unchahi calori bhi deta hai. Ye kitna ghatak hai ye aap tab sahi samajh payenge jab apne ghar ka ganda toilet us se dhoyenge, ye harpic ka bhi baap hai - kerke dekhiye, fir peena kabhi accha na lagega

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  6. सुनीता जी आप सच मे अकेली नही बहुत सारे आप के साथ होंगे, आप के लेख से सहमत हे जी, धन्यवाद

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  7. शहद पर पहरे, कोला से बहरे।

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  8. मैंने तो कई वर्षो से शीतल पेयों का उपयोग बन्द कर दिया है। सरकार के भरोसे रहने से कुछ नहीं होगा सबके अपने-अपने स्वार्थ है। हमें ही अपने बच्चों को समझाना होगा।

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