महिलाएँ: पूर्वी जर्मनी की और भारत की


'बर्लिन से बब्‍बू को'- पहला पत्र - चौथा हिस्सा

यूरोप शब्द से ही हमारे यहाँ स्वच्छन्द सेक्स का अर्थ लिया जाता है। पर इस देश में इतना घूमने के बाद अभी तक हम लोगों ने एक भी महिला शराब में धुत्त या अर्ध नग्न नहीं देखी। खुले गले या खुली पीठ के कपड़े नहीं देखे। सड़कों पर लिपटे-चिपटे जोड़े या युगल नहीं नजर आते। कहीं कोई चूमा चाटी का दृश्य नहीं दिखाई पड़ा। महिलाएँ इस देश में 56 या 58 प्रतिशत हैं। पुरुषों का प्रतिशत कम है। यह युद्ध का अभिशाप है। पर नारी के प्रति पर्याप्त आदर इस समाज में है। किसी भी महिला को गहनों से लदी-फँदी नहीं देखी। एकाध अँगूठी किसी की ऊँगली में है तो अच्छा, नहीं तो नहीं। नाक, कान, हाथ, गले पहुँची, टखने सब बिना गहनों के। पत्थरों या बारीक मोतियों की या फिर ऊलजलूल धातुओं या डोरों की मालाएँ इधर की कम उम्र की लड़कियाँ पहन लेती हैं। पर वे भी नहीं के बराबर। पुरुष कोई गहना नहीं पहनते। जीवन के हर क्षेत्र में नारी आगे है। ट्राम चलाना, बस चलाना, हवाई अड्डा, फैक्ट्री, स्कूल, होटल, घर, जहाज, खेत सब कुछ नारी पूरी दबंगता से सम्हालती है। स्कूलों में उनका साम्राज्य है। खुलकर सिगरेट पीना और भोजन के समय शराब और बीयर पीना उनके लिये सामान्य बात है। खूब ठठाकर हँसना, विनोद करना और जीवन को पूरी जिम्मेदारी और उमंग से जीना यहाँ की जीवन पद्धति है। समाजवाद से आगे बढ़कर अब यह देश साम्यवाद की ओर चल पड़ा है।

पूरे देश में निरक्षरता का कोई दाग नहीं है। हर व्यक्ति पढ़ा लिखा है। पढ़ाई पूरी मुफ्त है। रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और चिकित्सा सहज सुलभ है। शिक्षा और अस्पताल सबको फ्री है। बीमारी का डर इतना है कि यदि आप मात्र संकेत कर दें कि आज कुछ तबीयत गड़बड़ है, बस! आप सीधे अस्पताल पहुँचा दिये जायेंगे। आपकी जाँच पड़ताल कोई 10-12 डॉक्टर करेंगे और इतनी विकट करेंगे कि आपको वे हर तरह बीमार सिद्ध करके छोड़ेंगे। और अस्पताल से छुट्टी? आपकी मर्जी से नहीं। डॉक्टर कहेगा तब आप मुक्त होंगे। आप पर हजारों रुपये खर्च कर देंगे। साधारण सर्दी या जुकाम का इलाज भी यहाँ राष्ट्रीय स्तर पर होता है।

सौन्दर्य, प्रणय व विवाह पर मैं बहुत थोड़े से कुछ कहूँगा। नारी यहाँ प्रायः  गोरी चमड़ी वाली तो है ही पर न उसके पास उत्तेजक सौन्दर्य है न वह मादक व माँसल। स्वप्निल तो है ही नहीं। वह ललना, बाला, रमणी, रम्भा, सुन्दरी, रूपसी, रूपा, कमनीया या कोमलांगी नहीं है। ऐसा सौन्दर्य नहीं देखा कि देखते ही आग लग जाये। मेरा अनुमान है कि औरत तब ही औरत होती होगी जबकि वह या तो शादी करे या पुरुष के साथ संसर्ग करे या पिर बच्चा जने। इन तीन स्थितियों के सिवाय यहाँ औरत एक भरपूर पुष्ट शरीर और वर्कर है। ऊँचाद्व पूरा शरीर, बेहद मोटे नितम्ब और भरे पूरे स्तन, भद्दी मोटी पिण्डलियाँ और भागती सी चाल। निर्द्ंद्व, निस्संकोच और निश्चिन्त है यहाँ की नारी। पुरुष से किसी क्ष्ोत्र में पीछे नहीं। हर जगह आगे और तनाव रहित। खुद कमाती है, खुद पूर्णतया सुरक्षित है।

शादी भी, तलाक भी
विवाह अमूमन शनिवार को होता है। पहिले गिरजाघरों में होते थे पर समाजवादी समाज रचना में गिरजा का स्थान चुपचाप रजिस्ट्रार ने ले लिया। शादी के लिये नगरपालिका सादा समारोह करती है। धूमधाम वाली बात नहीं। 10-15 लोग कुल आमन्त्रित होते हैं। चार-चार, पाँच-पाँच माह पहले रजिस्ट्रार से तारीख माँगना होती है। पर यदि शनिवार का मोह नहीं हो तो फिर कभी भी शादी हो सकती है। शनिवार और रविवार यहाँ सम्पूर्ण छुट्टी के दिन होते हैं। इसलिये शादी में सुविधा होती है। पर गिरजाघर में भी शादी होती ही है। कैथोलिक ईसाईयों के गिरजे यहाँ प्रोटेस्टेण्ट ईसाईयों की तुलना में कम हैं और उन्हें उतना सामाजिक या शासकीय आदर भी प्राप्त नहीं है। प्रोटेस्टेण्ट चूँकि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में सन्तुलन बनाते-बिगाड़ते हैं इसलिये उनका पूरा ध्यान रखा जाता है। तलाक यहाँ बहुत आसान है। मियाँ-बीबी की नहीं बनी तो अलग हो गये। कोई शिकायत नहीं। बच्चे यदि माँ के साथ हैं तो खर्चा पिता देगा और यदि पिता के साथ गये तो माँ खर्चा देगी।

सेक्स माने, फूहड़ता नहीं
उन्मुक्त प्रणय का कोई फूहड़ दृष्य अभी तक मैंने नहीं देखा पर एक स्कूल में प्रश्न का सीधा उत्तर आया कि कोई 20 प्रतिशत बच्चे अपने स्कूली जीवन में ही यौन सम्बन्ध या प्रणय व्यापार कर लेते हैं। फूहड़ता से यह देश स्वयं को कितना बचाता है इसका एक दिलचस्प उदाहरण अगली घटना है। शाम को कोई 6 बजे यहाँ बाजार सामान्यतः बन्द हो जाते हैं। दुकानों पर कोई लोहे के शटर या दरवाजे नहीं होते। दीवाल साईज के बड़े-बड़े शीशे भरपूर प्रकाश में सारी रात अपने भीतर की वस्तुओं को दर्शाते रहते हैं। न कोई चौकीदार न पुलिस। शो रूम की हर चीज इत्मीनान से देखते घूमो। ऐसे में हम लोगों ने देखा कि एक दुकान का पारदर्शी शीशा कपड़े से ढका हुआ है। पर्दे की तरह। हमारी उत्सुकता जागी। पास गये।  बगल के शीशे के भीतर झाँका। देखा कि 5-6 आदमकद नारी मूर्तियाँ बिलकुल नंगी खड़ी हैं। यह शो रूम रेडीमेड कपड़ों का था और ये मूर्तियाँ उसी समय उस दुकान में सजावट के लिए लाई गई थीं। उन्हें जब तक कपड़े नहीं पहिनाये जाते, तब तक शीशे से उनका नग्न प्रदर्शन इस देश की शान के खिलाफ होता। इसलिये बड़ा पर्दा डालकर नग्नता को ढँक दिया गया।

पहला पत्र: पाँचवाँ हिस्सा निरन्तर


‘बर्लिन से बब्बू को’ - पहला पत्र: तीसरा हिस्सा यहाँ पढ़िए।
‘बर्लिन से बब्बू को’ - पहला पत्र: पाँचवाँ हिस्सा यहाँ पढ़िए।


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