पूर्वी जर्मनी : कैसा है यह देश?

बर्लिन से बब्‍बू को - पहला पत्र: पहला हिस्सा

(इस अंश में - 'गुलाब बा' याने उस समय हमारे घर/मकान के रखवाले। 'पिया' याने मेरी भाभीजी, श्रीमती सुशील चन्द्रिका बैरागी। 'पप्‍पू' याने दादा का साला, घन सच्चिदानन्‍द बैरागी। 'गोर्की' याने दादा का छोटा बेटा, मेरा छोटा भतीजा।)

रोस्टोक (पूर्वी जर्मनी से)
8 सितम्बर 76
शाम 4 बजे।

प्रिय बब्बू,

प्रसन्न रहो,

किसी भी देश के बारे में इतनी जल्दी कुछ लिख देना अच्छी बात नहीं होती। कुल जमा 4 दिन हुए हैं मुझे यहाँ पहँचे। याने कि 4 दिनों में क्या कुछ देखा होगा? पर मैं जानता हूँ कि तू और तेरे आसपास के सभी साथी मित्र, मेरे परिचित और हितैषी, मेरे पाठक और श्रोता, मुझ पर श्रद्धा रखने वाले और मुझ से ईर्ष्या करने वाले अनुयायी और विरोधी सभी की दिलचस्पी इस बात में अवश्य होगी कि मैं कहाँ हूँ, कैसा हूँ,क्या कर रहा हूँ और यह देश कैसा है? यहाँ का जन-जीवन, संस्कृति, राजनीति और स्तर किस तरह का है? कई प्रश्न होंगे जो उत्तर चाहते होंगे। मेरे पत्र की प्रतीक्षा तुम सब लोगों को होगी।

मैं कहाँ से शुरु करूँ? एक गुबार सा मेरी कलम की नोक पर उतर कर रास्ता चाहता है। जी. डी. आर. (जिसे हम पूर्वी जर्मनी भी कहते हैं) एक यूरोपीय देश है और 1945 में हिटलर की पराजय के बाद यह देश अस्तित्व में आया। यह तो सर्व विदित है। आबादी यहाँ की कुल एक करोड़ 80 लाख है। पूर्वी बर्लिन इसकी राजधानी (आबादी 11 लाख) होती है। भारत का क्षेत्रफल इससे 33 गुना अधिक है। उधर बँटवारे में पश्चिम जर्मनी जो गया तो अपने साथ कोई सवा छः करोड़ की आबादी भी लेे गया। पश्चिम जर्मनी एक पूँजीवादी देश है। 100 फीसदी अमेरिकन प्रभुत्ववाला। जबकि जिस देश में मैं घूम रहा हूँ वह जी. डी. आर. (जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक) याने जर्मन समाजवादी गणतन्‍त्र अर्थात पूर्वी जर्मनी कहलाता है। यह वही देश है जिसके खिलाड़ियों ने अभी मान्ट्रियल ओलम्पिक की पदक तालिका में रूस के बाद सीधा दूसरा स्थान प्राप्त करके दुनिया को अवाक् कर दिया है। जिस समय मैं यह पत्र तुझे लिख रहा हूँ, यहाँ शाम के 4 बजे रहे हैं। भारत में इस समय रात के 8.30 बजे होंगे। मैं कल्पना कर रहा हूँ कि पिताजी सो गये होंगे। माँ गुलाब बा को हिदायतें दे रही होगी। पप्पू दुकान से लौट आया होगा। पिया रात का खाना खाने की तैयारी रही होगी। और गोर्की? वह पढ़ने का बहाना बनाते हुए रेडियो बजा रहा होगा। रहा सवाल तेरा, तो तू ‘दशपुर-दर्शन’ के लिए समाचारों को अन्तिम रूप दे रहा होगा।

4 अगस्त की सुबह 9 बजे भारतीय समय 4.30 बजे प्रातः हम सकुशल बर्लिन उतरे। शिष्ट मण्डल में कुल 14 मित्र हैं। इन 14 में से 5 लोग हम सीधे काँग्रेस से आते हैं। भू. पू. संसद सदस्या श्रीमती फूलरेणु गुप्ता (बंगाल) हमारे पूरे शिष्ट मण्डल की नेता हैं। शेष 4 में वर्तमान संसद सदस्य श्री दिनेश गोस्वामी (आसाम) श्री प्रफुल्ल गड़ई (महा सचिव, प्रदेश काँग्रेस उड़ीसा) श्री गुप्ता (भू. पू. सदस्य दिल्ली महा पालिका) और मैं हूँ। बाकी जो 9 मित्र हैं वे अलग-अलग स्थानों और निकायों से हैं। इस पूरे शिष्ट मण्डल का प्रवर्तन किया है भारत-जी. डी. आर. मैत्री संघ दिल्ली ने। दूसरों की तो मैं नहीं कहता पर मुझमें रुचि सीधे यहाँ वालों की थी। मेरा नाम पहला नाम था जिस पर इन्दिराजी ने सहमति दी ऐसा मुझे दिल्ली में बता दिया गया था। श्री के.एन. सेठ नामक एक पत्रकार किन्हीं अज्ञात कारणों से नहीं आ सके और चण्डीगढ़ के श्री बंसल पारिवारिक कारणों से ठहर गये। शेष सदस्य हैं प्रो. पाण्डेय (राजस्थान), श्री गोपाल प्रसाद (बिहार), श्री राव (आन्ध प्रदेश), श्री रेड्डी (रिटायर्ड जज मद्रास हाय कोर्ट), श्री श्रीधरन (दल के सचिव), श्री रामनाथन (बंगलौर के वकील), श्री खरसाटी (रिटायर्ड डिप्टी डायरेक्टर एग्रीकल्चर, मेघालय), प्रो. श्री भट्टाचार्य (आसाम, राजनीति शास्त्र के प्राध्यापक), श्री शर्मा (दिल्ली के एक रिटायर्ड प्राचार्य)। सभी सदस्यों की अपनी-अपनी योग्यता है।

इस दल में नेपाल के एक साथी और श्रीलंका के दो भाई भी यहाँ शामिल हो गये हैं। इन 17 सदस्यों को 4 सितम्बर से 22.9.76 तक का बिलकुल व्यवस्थित कार्यक्रम दे दिया गया है। याने अब भारत में मेरा आना 23-9-76 को या फिर 30-9 को ही सम्भव होगा। 23-9 से 27-9 तक के मेरे साहित्यिक कार्यक्रम उधर भारत में तय हैं। केवल 26-27-28 के कार्यक्रमों का पक्का प्रस्ताव मुझे दिल्ली में मिलना है। शायद मिल जाय। 23-24-25 एवम् 29 के मार्यक्रम मेरे तय हैं। और यदि 1-10 को मुझे दिल्ली बोलना ही पड़ा तो फिर मैं 3-10 को मनासा पहुँच पाऊँगा। खैर, ये सब बातें बात की हैं। बात यहाँ से चल रही थी-

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ने भी इस पत्र काेे प्रकाशित किया है। इसे  यहाँ पढ़ा जा सकता है।



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