नाजी संस्कारों से बचाया अपने बच्चों को



बर्लिन से बब्‍बू को
तीसरा पत्र - पहला हिस्सा


यूसाडेल, मित्रोपा मोटेल
न्यूब्रान्डेनवर्ग काउन्टी
14 सितम्बर 76
रात्रि 8.30


प्रिय बब्बू,

प्रसन्न रहो,

मेरे दो पूर्व पत्र मिल गये होंगे।

जी. डी. आर. (पूर्वी जर्मनी) के बारे में मैं बहुत कुछ लिखता जा रहा हूँ। यह मान कर लिखता हूँ कि और किसी तक यदि मेरा लेखन नहीं भी पहुँचे तो कम से कम मेरे परिजनों तक तो मेरे बहाने बहुत आसानी से पहुँच ही जाये। अस्तु।

विश्व विद्यालय जी. डी. आर. के
कल मध्याह्न भोजन के बाद हम लोगों ने रोस्तोक छोड़ दिया है। उस काउण्टी के राजनेताओं और कार्यकर्ताओं ने हमें भावभीनी विदाई दी। चलने से पूर्व सुबह का समय रोस्तोक विश्व विद्यालय में बिताया। कोई दो ढाई घण्टे हम लोग वहाँ प्रश्न और चर्चा करते रहे। विश्व विद्यालय के लिये कुछ बड़ी-बड़ी बातें लिख रहा हूँ।

1. यह विश्व विद्यालय 560 वर्ष पुराना है। संसार के विश्व विद्यालयों में इसकी बड़ी प्रतिष्ठा है। सन 1945 में दूसरे विश्व युद्ध के कारण यह बन्द हो गया था। इसे वापस चालू किया गया।
2. संसार में कोई 50 देशों के विद्यार्थी इसमें पढ़ते हैं। पढ़ाई का स्तर तकनीकी और व्यावहारिक अधिक है। कला संकाय में बहुत कम विद्यार्थी हैं।
3. विश्व विद्यालय की लायब्रेरी में केवल 12 लाख पुस्तकें हैं।

4. विगत 25 वर्षों में सरकार ने इस विश्व विद्यालय के लिए मात्र 25 लाख मार्क याने सिर्फ 100 करोड़ भारतीय रुपये खर्च किए हैं। केवल चार करोड़ रुपया सालाना।

5. विश्व विद्यालय के केण्टीन में विद्यार्थियों को बीयर, ब्राण्डी, व्हिस्की, वोदका, कोनिया और अन्य शराबें सहज उपलब्ध हैं।

6. छात्राेंं की संख्या घटती बढ़ती रहती है पर होती है हजारों में।

हमारे विश्व विद्यालयों की अपनी समस्याएँ हैं और एक साम्यवादी विकसित देश और एक समाजवादी विकासशील देश की तुलना करना निरर्थक है। इस विश्वविद्यालय के जिम्मेदार अधिकारियों ने हमें कोई विभाग या कक्षा नहीं दिखाई। कई प्रश्नों को वे टाल भी गये। कक्षा दिखाने की माँग का उत्तर यह था कि हमारे बच्चे पढ़ रहे हैं उन्हें बाधा पहुँचाना उचित नहीं होगा।

सब कुछ, कितना नियोजित
बात फिर घूम फिर कर बच्चों और जवानों पर आती है। पता नहीं भारत के समाचार पत्रों में यह समाचार किस तरह स्थान बना पाया है कि विगत सप्ताह ही पूर्वी बर्लिन के एक प्रेरक और राष्ट्रीय समारोह में यहाँ की सोशलिस्ट यूनिटी पार्टी के प्रथम सचिव और राष्ट्र एवं प्रशासन के सर्वेसर्वा श्री होनेकर ने माण्ट्रीयल ओलम्पिक में भाग लेने वाले पूर्वी जर्मनी के खिलाड़ी दल का वीरोचित राष्ट्रीय सम्मान किया है। यहाँ के अखबारों ने इस समारोह को मुखपृष्ठ पर आठ कालम न्यूज और आठ कालम फोटो देकर अपना कर्तव्य पूरा किया है। यशस्वी खिलाड़ियों को राष्ट्र के सर्वोच्च सम्मान दिये गये। दूसरों को यथोचित सम्मान प्रदान किया गया।

इस स्थिति की तैयारी इस देश ने 1945 से की है। 1945 से हिटलर के पतन के तत्काल बाद वाले मात्र चार महीनों में कोई 19000 उन शिक्षकों को स्कूलों से निकाल दिया गया जिन पर फासिस्ट और नाजी होने का या नाजियों से उनका सम्पर्क भर होने का सन्देह था। प्रमाण की बात नहीं, केवल सन्देह भर लिख रहा हूँ मैं। अपने बच्चों को कितनी सतर्कता के साथ नाजी संस्कारों से बचाया इस देश ने। भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक और प्रशिक्षित कार्यकर्ता, शिक्षा विभाग में सर्वाधिक घुसपैठ क्यों कर गये और कर रहे हैं, उसकी रणनीति यहाँ समझ में आती है। भारत के लोकतन्‍त्र की जड़ों पर चोट करने का आर. एस. एस. का तरीका वास्तव में नाजियों और फासिस्टों का तरीका है। भारत में समाजवाद और लोकतन्त्र के हामियों के आगे पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और मुस्लिम लीग जैसे संगठित फासिस्ट गिरोहों पर निर्ममता पूर्वक निर्णय लेकर प्रहार करना होगा। वर्ना हम अपनी दो पीढ़ियों को तबाह कर चुके हैं। तीसरी पीढ़ी को बचाने का क्षण हमारे सामने उपस्थित है। इस देश ने उन 19000 शिक्षकों के बदलेे नये प्रशिक्षित 40 हजार शिक्षकों की ताबड़तोड़ व्यवस्था की। आज यहाँ प्रत्येक 6 बच्चों के पीछे एक प्रशिक्षित शिक्षक का औसत आता है। राष्ट्र की नींव पुख्ता भरी जा रही है और उत्कृष्ट राष्ट्रीयता एवम् स्वर्णिम भविष्य के प्रति पूरा राष्ट्र आश्वस्त है। सुरक्षित तो है ही।

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (08-07-2018) को "ओटन लगे कपास" (चर्चा अंक-3026) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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