यह बात कल रात मन में अचानक ही आई। मुझे ‘सिविल सोसायटी’ का रास्ता आसान नहीं लग रहा। कहीं ऐसा तो नहीं भाई लोग इसके कन्धों पर अपनी राजनीति कर रहे हैं?
‘जन लोकपाल’ के अपने मसौदे के एक-एक बिन्दु को स्वीकार कराने के लिए जूझ रही सिविल सोसायटी की बातों को सरकार भोथरा करे और इसकी विश्वसनीयता को संदिग्ध करे, यह तो समझ में आता है। किन्तु शेष राजनीतिक दलों में से कोई भी खुलकर ‘सिविल सोसायटी’ को ‘बिना शर्त समर्थन’ देता नजर नहीं आ रहा।
‘सिविल सोसायटी’ के ‘जन लोकपाल ड्राफ्ट’ के नाम पर, सरकार के तमाम विरोधी दल सरकार को निशाने पर लिए हुए हैं। जी भर उसकी खिल्ली उड़ा रहे हैं, उसकी फजीहत कर रहे हैं और अपनी सारी राजनीतिक भड़ास निकाल रहे हैं। किन्तु अचानक ही इस बात ने मेरा ध्यानाकर्षण किया कि ‘जन लोकपाल बिल’ की आड़ में सरकार की धज्जियाँ उड़ा रहे राजनीतिक दलों और नेताओं में से एक ने भी नहीं कहा कि वह ‘सिविल सोसायटी’ के ‘जन लोकपाल ड्राफ्ट’ को जस का तस स्वीकार करता है और संसद में आँख मूँदकर इसका समर्थन करेगा।
रह रह कर मुझे यह सवाल कचोट रहा है कि ‘सिविल सोसायटी’ का नाम लेकर सरकार की धज्जियाँ उड़ा रहे राजनीतिक दल, संसद में इसके ‘जन लोकपाल ड्राफ्ट’ का समर्थन करेंगे भी या नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं कि ये सब, ‘सिविल सोसायटी’ की दुहाइयाँ देकर अपने-अपने राजनीतिक लक्ष्य हासिल करने की चेष्टा मात्र कर रहे हैं?
ईश्वर करे कि मेरा यह सन्देह झूठा साबित हो। किन्तु यदि वह सच साबित हो गया तो ‘सिविल सोसायटी’ तो संसद में पूरी तरह से अकेली पड़ जाएगी! सरकार तो उसका विरोध कर ही रही है, बाकी राजनीतिक दल भी उसे मझधार में छोड़ देंगे!
तब, पूरे देश की आशाओं का क्या होगा?
तब, पूरे देश की आशाओं का क्या होगा?
क्या सबके सब, संसद में एकजुट होकर ‘सिविल सोसायटी’ (और उसके जरिए देश के तमाम लोगों) को ठग लेंगे?
मुझे आसार अच्छे नहीं लग रहे।