न्याय ही रास्ता है
मैंने नहीं सुना एक भी मुसलमान को कन्हैयालाल के हत्यारों के पक्ष में बोलते हुए। सभी कन्हैयालाल के लिए संवेदना व्यक्त कर रहे हैं और हत्यारों के लिए कड़ी-से-कड़ी सजा की माँग कर रहे हैं।
मारे जाने पर हिन्दुओं को हत्यारों के पक्ष में जुलूस निकालते, अदालतों पर भगवा लहराते, हत्यारों को रथ पर बिठाकर जयकारे लगाते देखा है। कठुआ में मन्दिर में सात साल की बच्ची को सात-सात दिन रौंदने और फिर हत्या करने वालों के पक्ष में तिरंगा जुलूस निकालते देखा है। गरीब की बेटी आसिफा की वकील का रास्ता रोकते देखा है।
हिंसा गलत है, सबके लिए गलत है। हत्या गलत है, सबके लिए गलत है। खून में रंगे हर हाथ को पकड़ने की जरूरत है। हिन्दू का हाथ और मुसलमान का हाथ, गरीब का और अमीर का हाथ, मजदूर और हुक्मरानों का हाथ ढूँढने से नहीं चलेगा। खून-खराबे के इस दौर को रोकना है तो न्याय करना होगा। न्याय के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं। सारा दारोमदार हुक्मरानों और अदालतों पर है। आम आदमी समाज में सच बोल सकता है, बहनापा-भाईचारा बनाए रखने के लिए सबसे प्रेम कर सकता है, करना चाहिए - ‘भरसक हम कर भी रहे हैं।’ इतने से नहीं होगा। हुक्मरानों और अदालतों पर दबाव बनाना होगा कि वे अपना काम ठीक से करें।
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माफ करो
(इस्लाम के विद्वान अध्येता स्व. मौलाना वहिदुद्दीन खान की पोती तथा इस्लाम की सुविख्यात व्याख्याकार)
अभी एक राजनेता ने पैगम्बर मुहम्मद के खिलाफ कुछ बातें कहीं।
मुसलमानों ने इस पर अपना गुस्सा प्रकट किया और माँग की कि उस राजनेता को सजा दी जाए। सच तो यह है कि पैगम्बर साहब का अपमान उनके जीवन काल में भी हुआ था। कुरान में वे कहते हैं: ‘उन्होंने जो कहा उसकी अनसुनी करो और उन्हें समझाओ।’ लोग जब बुरा-भला कहते हैं तो पैगम्बर उसी भाषा में उसका जवाब नहीं देते हैं, न वे गुस्से का मुकाबला गुस्से से करते हैं। यदि कोई आपके लिए बुरी भाषा का इस्तेमाल करता है तो आप यह माँग नहीं कर सकते कि उसे सजा दी जाए। यदि कोई आपकी धार्मिक भावनाओं को चोट पहुँचाता है तो आप न उसका हिंसक प्रतिवाद करें, न सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाएँ। आप उस आदमी का पुतला न जलाएँ, न सड़कों पर उतरकर चीख-चिल्ला कर नारे लगाएँ, न पत्थरबाजी करें। अगर आप ऐसा करते हैं तो यह पैगम्बर के खिलाफ काम करना होगा। हम नफरत का जवाब ज्यादा नफरत फैला कर नहीं दे सकते। इसलिए पैगम्बर ने कहा कि खुदा बुराई के जवाब में बुराई नहीं करता है। वह बुराई का जवाब भलाई से देता है।
इस्लाम कहता है कि पैगम्बर की निन्दा या ईशनिन्दा का जवाब शारीरिक दण्ड नहीं हो सकता है, माफी माँगने जैसी बात भी नहीं की जा सकती है। इस्लाम स्पष्ट कहता है कि पैगम्बरों को हर गाँव-कस्बे-शहर में जाना होता है और ऐसी हर जगह पर उनका अपमान होता है। लेकिन ऐसे शाब्दिक अपमानों के खिलाफ किसी सजा की बात उठाने से कुरान मना करता है। कुरान ऐसा इसलिए कहता है कि लोगों को अपने मन की कोई भी बात कहने का अधिकार है। खुदा ने किसी को भी यह अधिकार नहीं दिया है कि वह लोगों की इस आजादी पर बन्दिश डाले। यदि कोई पैगम्बर के खिलाफ बयान देता है तो आप भी उसकी आपत्तियों के बारे में अपना बयान दे सकते हैं लेकिन कुरान कहीं भी उसकी इजाजत नहीं देता है कि आप उसे बोलने से रोकें और वह न रुके तो उसके लिए सजा की माँग करें या ‘धड़ तन से जुदा’ जैसा रास्ता पकड़ें।
पैगम्बर की पत्नी हजरत आयशा ने, जो इस्लाम के प्रारम्भिक काल की नामचीन बौद्धिक हस्ती थीं, कहा है कि कोई पैगम्बर अपनी निजी बातों के खिलाफ कही गई बातों का बदला नहीं लेते हैं। यदि आप पैगम्बर के खिलाफ कोई बात करते हैं तो पैगम्बर उसके खिलाफ न नाराजगी भरा बयान देते हैं, न उस पर आरोप लगाते हैं। वे ऐसे लोगों के सम्मुख धीरज से काम लेते हैं। पैगम्बर धीरज से काम क्यों लेते हैं, अपमान व आरोपों की झड़ी को वे माफ क्यों कर देते हैं? इसलिए कि पैगम्बर की कोशिश लोगों की आध्यात्मिक उन्नति है और वे इस आरोहण में समाज की मदद करना चाहते हैं। ऐसे में यदि पैगम्बर बदला लेने लगें और लोगों को उग्र, कटु विवादों में घसीटने लगें तो न तो कोई शान्ति बनी रह सकती है, न कोई रचनात्मक काम हो सकता है। इसलिए खुदा की खोज में लोगों की मदद कर, उन्हें आध्यात्मिक ऊँचाइयों तक पहुँचाने के लिए पैगम्बर हर सम्भव प्रयास करते हैं कि समाज घृणा व हिंसा के जंगल में न बदल जाए। इसलिए पैगम्बर नकारात्मक जहर को सकारात्मक भाव से बे-असर करना चाहते हैं, उसका धीरज से सामना करते हैं। वे कहते हैं: ‘उन सबको माफ करो जो तुम्हारे लिए बुरा चाहते व कहते हैं। जो बुरा करते हैं, तुम उनका भला करो।’ हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि पैगम्बर की शान व प्रतिष्ठा में, टीवी या सोशल मीडिया पर कोई भड़काऊ बयानबाजी कर नुकसान नहीं पहुँचा सकता है। जिसने पैगम्बर का अपमान किया है उसे अपमानित कर हम पैगम्बर की शान बढ़ा नहीं सकते हैं। अपने जीवन-काल में पैगम्बर ने खुदा की मदद से अपनी प्रतिष्ठा स्वयं ही बनाई व बचाई है। यह सारा कुछ इतिहास में दर्ज है। इसलिए आज कोई उनके लिए बुरा बोलकर उनकी प्रतिष्ठा कम नहीं कर सकता है। पैगम्बर के जीवन-काल में उनका एक कटु निन्दक था। साथियों ने पैगम्बर से इल्तजा की कि वे उसके लिए बद्दुआ करें, लेकिन पैगम्बर ने उस निन्दक के भले के लिए प्रार्थना की। आज ऐसे आदमी के भले के लिए प्रार्थना करने की बात तो दूर, हम उसके लिए बुरी-से-बुरी सजा की माँग करते हैं।
इसलिए हमें आत्म-निरीक्षण करने की जरूरत है - क्या पैगम्बर की शान व उनकी विरासत को सड़कों पर उतार कर, सोशल मीडिया पर बुरा लिखकर हम बचा सकते हैं?
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(द्विमासिक ‘गांधी मार्ग’ के मई-जून 2022 अंक से साभार।)