‘भावी रक्षक देश के’ - पहला बाल-गीत ‘आह्वान’
आह्वान
आशीषों का आँचल भर कर,
प्यारे बच्चों! लाई हूँ।
युग जननी मैं भारत माता,
द्वार तुम्हारे आई हूँ।
प्यारे बच्चों! लाई हूँ।
युग जननी मैं भारत माता,
द्वार तुम्हारे आई हूँ।
तुम मेरी आँखों के तारे,
मेरे राजदुलारे हो।
मेरे आँगन की शोभा हो,
धरती के उजियारे हो।
तुम ही मेरे भावी रक्षक,
तुम ही मेरी आशा हो।
तुम ही मेरे भाग्य-विधाता,
तुम ही प्राण-पिपासा हो।
पंचशील गौतम से पाया,
शील मिला रघुराई से।
कर्म, भक्ति का पाठ मिला है,
तुमको कृष्ण कन्हाई से।
विष्णुगुप्त चाणक्य सिखाता,
किसे प्रतिज्ञा कहते हैं।
भगतसिंह-से मेरे जाये,
हँस कर फाँसी सहते हैं।
चन्द्रगुप्त की तड़प भरी,
तलवार मिली है थाती में।
साँगा की साँसें चलती हैं,
वीर! तुम्हारी छाती में।
दयानन्द ने स्वाभिमान की,
सौरभ तुम्हें लुटाई है।
पौरुष की प्रतिमा कहलाती,
रानी लक्ष्मी बाई है।
वीर हकीकतराय हठीला,
आन-बान का पूरा था।
बन्दा बैरागी के बिन तो,
मेरा प्राण अधूरा था।
गुरु गोविन्द का गौरव तुममें,
सरर सरर सरसाता है।
प्रिय अशोक का पावन झण्डा,
युग-युग से लहराता है।
गुरु वशिष्ठ और द्रोण, भीष्म का,
बहता रक्त शिराओं।
महा भीम का बल पाया है,
तुमने अपनी बाँहों में।
कपिल, कणाद सरीखे ऋषिवर,
देते हैं संस्कार तुम्हें।
रंग-बिरंगे, मनहर, मोहक,
मिले हुए त्यौहार तुम्हें।
चेतक वाले महाराणा ने,
मरना तुमको सिखलाया।
वीर शिवा ने लोहा लेकर,
जीवन का पथ दिखलाया।
बापू ने आजादी लाकर,
दी है नन्हे हाथों में।
नेहरू चाचाने ढाला है,
तुम सबको इस्पातों में।
लालबहादुर ने सिखलाई,
हथियारों की परिभाषा।
छिपी नहीं है बेटों! तुमसे,
मेरे मन की अभिलाषा।
दुर्गा, लक्ष्मी, मातु शारदा,
सबकी तुम पर छाया है।
वेदों और पुराणों ने भी,
शौर्य तुम्हारा गाया है।
जग को तुमने ज्ञान दिया है,
संस्कृतियों के दाता हो।
आर्य-सभ्यता के उन्नायक,
सबको शान्ति प्रदाता हो।
वीर-प्रसूता युग जननी हूँ,
मैं विक्रम की माता हूँ।
तुलसी, सूर, कबीरा, मीरा,
सबकी मात सुगाता हूँ।
रणबाँके अलबेले मेरे,
स्वर्ग बसाते आये हैं।
मेरी खातिर समय-समय पर,
शीश कटाते आये हैं।
शीश हथेली पर लेकर जब,
दो-दो- हाथ दिखाते हैं।
महाकाल तक डर के मारे,
तिनके सा थर्राते हैं।
पानीदार दुधारों वाले,
बिन मारे कब मरते हैं?
इतिहासों पर गर्म लहू से,
वे हस्ताक्षर करते हैं।
मेरे जाये आक्रान्ता को,
पीठ नहीं दिखलाते हैं।
रण-मेलों में रक्त बहा कर,
मेरा दूध चुकाते हैं।
मात, पिता औ’ गुरु का कर्जा,
यहीं चुका कर जाते हैं।
सच मानो तो ऐसे ही नर,
मेरे सुत कहलाते हैं।
सैनिक, शासक, अभिनेता या,
नेता जो भी बन जाओ।
सिर्फ मुझे ही माँ मानो औ’,
केवल मेरे कहलाओ।
प्यारे बेटों! तुम पर अपना,
रोम-रोम निछराती हूँ।
जैसे भी हो, बस मेरे हो,
आओ सिर सहलाती हूँ।
जहाँ कहीं भी रहो लाड़लों!
भारत वासी कहलाना।
कभी पुकारूँ, ललकारूँ तो,
नंगे पाँव चले आना।
मेरा दूध पिया है तुमने,
इसे कभी मत बिसराना।
सम्भव हो तो युग का कर्जा,
थोड़ा-बहुत चुका जाना।
मुझे वचन दो, करो प्रतिज्ञा,
मेरा मान बढ़ाओगे।
जनम-जनम तक मेरे बेटे,
बन कर सुख पहुँचाओगे।
तुतले बोल उचारो बेटों!
सुनने को अकुलाई हूँ।
युग जननी मैं भारत माता,
द्वार तुम्हारे आई हूँ।
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भावी रक्षक देश के - दूसरा बाल-गीत ‘सहगान’ यहाँ पढ़िए
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भावी रक्षक देश के (कविता)
रचनाकार - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली
मुद्रक - शिक्षा भारती प्रेस, शाहदरा, दिल्ली
मूल्य - एक रुपया पचास पैसे
पहला संस्करण 1972
कॉपीराइट - बालकवि बैरागी
रचनाकार - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली
मुद्रक - शिक्षा भारती प्रेस, शाहदरा, दिल्ली
मूल्य - एक रुपया पचास पैसे
पहला संस्करण 1972
कॉपीराइट - बालकवि बैरागी
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यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है।
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
पंचशील गौतम से पाया,शील मिला रघुराई से। ये नहीं है।
ReplyDeleteबल्कि ये है - मर्यादा और त्याग शील का पाठ मिला रघुराई से।
2- भीष्म पितामह ने सिखलाया किसे प्रतिज्ञा कहते हैं।
धर्मराज की सीख धर्म हित, कैसे संकट सहते हैं। ये है