हम पर है उपकार कितना तेरा
हाँ तेरा,
अरे ओ! मिट्टी के कण!
कैसे इतना कर्ज उतारे
छोटा सा जीवन
हमारा छोटा सा जीवन
ओ मिट्टी के कण!
हाँ तेरा,
अरे ओ! मिट्टी के कण!
कैसे इतना कर्ज उतारे
छोटा सा जीवन
हमारा छोटा सा जीवन
ओ मिट्टी के कण!
-1-
जननी के आँचल में तू ही दूध बना प्यारे
तूने ही ममता के सारे खोल दिये द्वारे
(पर) दो किलकारी में ही सारा बीत गया बचपन
(अब) कैसे इतना कर्ज उतारे छोटा सा जीवन
अरे ओ मिट्टी के कण!
हम पर है उपकार कितना तेरा.....हाँ तेरा.....।।
-2-
तू ही खून पसीना बन कर यौवन कहलाया
तूने ही दी भरपूर उमंगें दी कंचन काया
(पर) दो सपने देखे ना देखे बीत गया यौवन
(अब) कैसे इतना कर्ज उतारे छोटा सा जीवन
ओ मिट्टी के कण!
हम पर है उपकार कितना तेरा..........हाँ तेरा.....।।
-3-
मिला बुढ़ापा झुकी कमरिया झुकी नजरिया रे
मानो झुक कर ढूँढ रही है गई उमरिया रे
ढूँढ-ढँूढ कर काया हो गई मरघट का ईंधन
(अब) कैसे इतना कर्ज उतारे छोटा सा जीवन
ओ मिट्टी के कण!
हम पर है उपकार कितना तेरा..........हाँ तेरा.....।।
-4-
आज नहीं तो कल या परसों कर्ज चुकायेंगे
तेरा यह अहसान चुकाने फिर से आयेंगे
लाख जनम माँगेंगे तुझसे ऐसा ही जीवन
(अब) कैसे इतना कर्ज उतारे छोटा सा जीवन
ओ मिट्टी के कण!
हम पर उपकार कितना तेरा..........हाँ तेरा.....।।
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भावी रक्षक देश के - चौथा बाल-गीत ‘प्रतिज्ञा’ यहाँ पढ़िए
भावी रक्षक देश के (कविता)
रचनाकार - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली
मुद्रक - शिक्षा भारती प्रेस, शाहदरा, दिल्ली
मूल्य - एक रुपया पचास पैसे
पहला संस्करण 1972
कॉपीराइट - बालकवि बैरागी
रचनाकार - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली
मुद्रक - शिक्षा भारती प्रेस, शाहदरा, दिल्ली
मूल्य - एक रुपया पचास पैसे
पहला संस्करण 1972
कॉपीराइट - बालकवि बैरागी
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‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
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