(पहले यह आलेख पढिए और इसके अन्त में पढिए, इसे यो प्रस्तुत करने की कथा)
खोजी पत्रकारिता का यू-टर्न
दिनांक 2 जनवरी 09 को दैनिक भास्कर, भोपाल के खोजी पत्रकारिता परिशिष्ट, डी बी स्टार ने, भीमसिंह मीणा की एक रपट ‘‘ब्लेक एण्ड व्हाईट’’ प्रकाशित हुई। इस कहानी को डी बी स्टार ने स्टार एक्सपोज का दर्जा देते हुए शीर्षक दिया हैं ‘‘एक व्यक्ति दो रूप’’।
लगभग तीन पृष्ठों की इस रपट में अखबार ने कतिपय दस्तावेज भी प्रकाशित किये हैं, जिनसे यह साबित होता है कि किस तरह भोपाल की नरेला विधानसभा सीट के विधायक ने, लघु वनोपज संघ का अध्यक्ष बनने के लिए, खुद को, तेन्दूपत्ता तोडकर जीवन यापन करने वाला वनोपज संग्राहक होना प्रदर्शित किया हैं, जबकि वे करोड़ों की सम्पत्ति के मालिक हैं । अखबार के मुताबिक यह सब सालाना 600 करोड़ रुपये के बजट से लाभ लेने के लिए किया गया।
अगले 48 घण्टों में कुछ ऐसा घटित हुआ, कि दैनिक भास्कर ने, यू टर्न लेते हुए, पुनः एक रिर्पोट प्रकाशित की, लिखा कि सारंग पर झूठे दस्तावेजों के आधार पर आरोप लगाये गये थे। और यह भी लिखा कि डी बी स्टार ‘सच के सबूत’’ सामने ला रहा है।
48 घण्टों के भीतर छपी ये दो परस्पर विरोधी रिपोर्टें दैनिक भास्कर समाचार पत्र समूह के पाठक वर्ग को यह सोचने पर विवश करती हैं कि वे 2 जनवरी की रिर्पोट पर विश्वास करें या पश्चातवर्ती 4 जनवरी की रिपोर्ट पर? यदि पश्चातवर्ती रिर्पोट तथ्यपरक है तो 2 जनवरी को, एक लोकप्रिय विधायक की उजली छवि को, धूमिल करने की जिम्मेदारी किसकी हैं? नरेला विधानसभा क्षेत्र के विधायक समर्थकों की भावनाएँ, दिनांक 2 जनवरी को दैनिक भास्कर ने आहत की हैं। क्या इस प्रकार भास्कर न केवल विधायक की चरित्र हत्या करने का अपितु भोपाल की जनता को झूठी सूचनाएँ देने का अपराधी नहीं हैं? क्या दैनिक भास्कर को अपने इस अपराध के लिए भोपाल की जनता एवं नरेला के विधायक से सार्वजनिक माफी नहीं माँगनी चाहिए?
4 जनवरी की रिपोर्ट में प्रकाशित किया गया है कि ‘‘सारंग पर झूठे दस्तावेज के आधार पर आरोप लगाये गये है,’’ और ''डी बी स्टार सच के सबूत सामने ला रहा हैं''। तब क्या अखबार यह कहना चाह रहा है कि झूठे दस्तावेजों के आधार पर सारंग पर दैनिक भास्कर ने नहीं अपितु किसी और समाचार पत्र में झूठे आरोप लगाये गये हैं और अब, वह, सच के सबूत सामने ला रहा हैं? यदि ऐसा नहीं है तो डी बी स्टार ने पूरी पड़ताल किये बिना दो जनवरी की रिपोर्ट प्रकाशित ही क्यों की?
अब जरा दोनों रिर्पोटों में प्रकाशित दस्तावेजी साक्ष्य को सिलसिले से देख लें -
दिनांक 2/1/09 को प्रकाशित किया गया दस्तावेज क्रमांक-1, प्राथमिक वनोपज संस्था, मुडियाखेडा उप नियमों की फोटो प्रति है, जिसके अनुसार:-
अ. किसी भी प्राथमिक वनोपज संस्था का सदस्य वही बन सकता है जो समिति के कार्यक्षेत्र का निवासी हो। एवम्
ब. जो स्वयं जीवीकोपार्जन हेतु लघु वनोपज के संग्रहण का कार्य भी करता हो।
2. दूसरा दस्तावेज शासकीय भूमि से तेन्दूपत्ता संग्रहण विवरण के साप्ताहिक संग्रहण पुस्तिका के पृष्ठ क्रमांक 5,4 अस्पष्ट 233 की फोटोप्रति है जिसमें क्रमांक-74 पर विश्वास सारंग के नाम के आगे 600 गड्डी एकत्र करने के साथ साथ एक अगूँठा का निशान भी लगाना दर्शाया गया हैं। डी बी स्टार ने लिखा है कि विश्वास सारंग ने मई माह की 21 से 27 तारीखों में तेन्दूपत्ता तोडने का पारिश्रामिक 270/-रुपये लिए। इस आरोप के साथ इस राशि को लेने के लिए उनके नाम के सामने अंगूठा लगाया गया हैं जबकि उस समय वे न तो वहाँ के स्थाई निवासी थे, न ही मुडियाखेडा क्षेत्र में उनकी कोई जमीन थी।
3. तीसरे दस्तावेज के रूप में वर्ष 2007 की सामूहिक जीवन बीमा के हितग्राहियों की सूची की फोटोकापी प्रकाशित की गई हैं, जिसके अनुसार सारंग परिवार ने वर्ष 2007 में 600 गड्डी पत्ता तोडा हैं। इस प्रकार यह दस्तावेज प्रमाणित करता है कि वर्ष 2007 एवं 2008 में विश्वास सारंग ने ग्राम पंचायत मुडियाखेडा के फडसाकंल में तेन्दूपत्ता तोडने वाले संग्राहक की हैसियत से कार्य कर रहे थे जिसके परिणाम स्वरूप तेन्दूपत्ता संग्राहकों के लिए लागू सामूहिक जीवन बीमा योजना के वह सदस्य थे एवं इसी जीवन बीमा योजना में उनकी पत्नी और उनके पिता भी शामिल हैं। वर्ष 2008 की जीवन बीमा हितग्राही सूची में सारंग परिवार द्वारा 1205 गड्डी तेन्दूपत्ता संग्रहण किया जाना बताया गया हैं।
4. 2 जनवरी 09 में प्रकाशित स्टोरी में घनश्याम पुत्र टीकाराम निवासी साँकल जाति आदिवासी द्वारा माननीय व्यवहार न्यायालय प्रथम श्रेणी गैरतगंज में प्रस्तुत शपथ पत्र की फोटोप्रति प्रकाशित की गई है, जिसमें स्वयं घनश्याम ने अपने आपको आदिवासी होना बताया हैं। इसके साथ ही श्री विश्वास सारंग द्वारा माह फरवरी-08 में ग्राम साँकल में क्रय की गई जमीन की रजिस्ट्री के उस पृष्ठ की प्रतिलिपि भी प्रकाशित की गई है, जिसमें घनश्याम ने अन्य विक्रेताओं के साथ अपने आपको घनश्याम पुत्र टीकाराम माहेश्वरी बताया गया हैं। इस प्रकार दिनांक 2 जनवरी 09 की रिर्पोट में यह बताया गया है कि रजिस्ट्री में चाहे विक्रेता की जाति माहेश्वरी लिखी हो, परन्तु विक्रेता ने स्वयं के द्वारा माननीय न्यायालय में प्रस्तुत किये गये शपथ पत्र में अपने आपको आदिवासी होना बताया है। उपरोक्त आरोपों की सफाई में डी बी स्टार द्वारा दिनांक 4/1/09 को यू टर्न लेते हुए कहा है कि ‘‘सारंग पर लगाये गये आरोप झूठे थे’’ और अब सच के सबूत पेश किये जा रहे हैं। सच के सबूत के तौर पर जो 4 दस्तावेज पेश किये गये हैं वह ‘‘सबूत जो सामने आये’’ शीर्षक के अन्तर्गत प्रकाशित किये गये हैं। इनमें से एक तो वह पत्र हैं जो गृह सचिव, म0प्र0 ने प्रमुख सचिव, मछली पालन विभाग को लिखा है और जिसमें यह लिखा है कि ‘‘आर. के. महाले, जो उन पर आरोप लगा रहे हैं, के खिलाफ पुलिस में कई प्रकरण दर्ज है और वह जनता के भड़काने की कार्यवाही करते रहते हैं।’’ उक्त दस्तावेज से श्री विश्वास सारंग पर लगाये गये आरोपों का खण्डन तो कतई नहीं होता। दूसरा दस्तावेज जो प्रस्तुत किया गया है वह लघु वनोपज संग्रहण पारिश्रामिक कार्ड क्र0 16326 है, जिसमें संग्रहणकर्ता परिवार के मुखिया के रूप में श्री विश्वास सारंग एवं उनकी पत्नी रूमा बाई एवं उनके पिता श्री कैलाश सारंग के नाम क्रमांक-56 पर दर्ज हैं। यह संग्रहण कार्ड लघु वनोपज संग्रहण और उसके पारिश्रामिक का विवरण देता हैं जो दिनांक 2/1/09 को श्री सारंग पर लगाये गये आरोपों की पुष्टि ही करता हैं, उनका खण्डन नहीं करता। तीसरा दस्तावेज जो मुडियाखेडा के घनश्याम पुत्र टीकाराम से खरीदी गई जमीन की रजिस्ट्री है, जिसे घनश्याम को सामान्य जाति का साबित करने के लिए प्रकाशित किया गया हैं। उल्लेखनीय है कि 2 जनवरी 09 को भी यही रजिस्ट्री प्रकाशित की गई है, किन्तु 2 जनवरी को इस रजिस्ट्री के साथ घनश्याम का वह शपथ पत्र भी प्रकाशित किया गया है जिसमें उसने स्वयं को आदिवासी होना बताया है।
सबूत के तौर पर जो चौथा दस्तावेज प्रकाशित किया गया है वह तेन्दूपत्ता अधिनियम 1964 की धारा-2 डी के भाग-बी पर प्रकाश डालता हैं जिसमें यह कहा गया है कि तेन्दूपत्ता उगाने वाले से तात्पर्य किसी इकाई के अन्तर्गत आने वाले ऐसे खाते के यथास्थिति भू-धारक या भाडे़दार या शासकीय पट्टाधारी या ऐसी शासकीय भूमि के धारक से है जिसमें तेन्दूपत्ता के पौधे उगते हैं। अब लोकनीय है कि उपरोक्त प्रावधान तेन्दूपत्ता उत्पादक के लिए है, न कि तेन्दूपत्ता संग्राहक के लिए।
अब जरा दिनांक 2/1/09 एवं 4/1/09 की कहानियों को साथ-साथ देखें।
दिनांक 2/1/09 को प्रकाशित पहले दस्तावेज, मुडियाखेडा समिति के उप नियमों के सम्बन्ध में बाद वाली स्टोरी ( दि0 4/1/09) पूरी तरह मौन हैं, क्योंकि इसमें सन्देह की गुंजाईश ही नहीं है कि श्री विश्वास सारंग प्राथमिक वनोपज संस्था समिति के कार्यक्षेत्र के निवासी नहीं हैं। दि0 2/1/09 को प्रकाशित उप नियमों के अनुसार - सदस्य को जीवीकोपार्जन के लिए तेन्दूपत्ता संग्रहण का कार्य करना चाहिए परन्तु 4/1/09 की रिर्पोट में लेख है श्री विश्वास सारंग तेन्दूपत्ता के उत्पादक हैं और निजी उत्पादकों से निजी वनोपज कार्य कराना सोसायटी का उद्देश्य हैं, अतः वह सदस्य बनने के पात्र हैं। जबकि सोसायटी के उप नियमों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिससे किसी तेन्दूपत्ता उत्पादक को प्राथमिक वनोपज सहकारी संस्था के सदस्य बनने की अर्हता प्राप्त होती हो। यह उल्लेखनीय है कि जो रजिस्ट्री फरवरी-08 में की गई है उसके अनुसार भी भूमि में तेन्दूपत्ता के मात्र 05 पेड़ हैं। इन 05 पेड़ों से दो वर्षो में 1800 गड्डी पत्ता तोडा जाना बताया गया है जो कतई सम्भव नहीं हैं। तथापि इस सम्भावना को भी सत्य मान लिया जाये कि श्री विश्वास सारंग अपने पेड़ों में ऐसी खाद देते थे जिससे पत्ते का उत्पादन 4 गुना हो जाता हैं तो भी उन्हें दो वर्षो में 1800 गड्डियों का 55/- रूपये के मान से 99,000/- आय होती है। माननीय विधायक महोदय द्वारा चुनाव में दिये गये अपने शपथ पत्र के मुताबिक वे करोड़ों की सम्पत्ति के स्वामी हैं। इसके बावजूद वह रोजाना 200 किलो मीटर की यात्रा कर तेन्दूपत्ते का उत्पादन कर, इतनी राशि भी कमा लेते हैं कि उनका एवं उनके परिवार का जीवीकोपार्जन हो सके।
प्राथमिक समिति के उपनियमों में तेन्दूपत्ता उत्पादक की सदस्यता का कोई प्रावधान नहीं हैं। मात्र वनोपज संग्राहक, जो स्वयं वनोपज संग्रहण करता है एवं जैसा करना श्री सारंग ने कागजों में बताया है, वह संग्राहक ही वनोपज संघ की सदस्यता की अर्हता रखता है। एक विरोधाभास यह भी है कि तेन्दूपत्ता संग्रहण की अवधि में उनका भोपाल नगर में रहना ही समाचार पत्रों में प्रकाशित इनके चित्रों एवं खबरों से प्रमाणित होता है। इन कतरनों को दिनांक 2 जनवरी की रिपोर्ट में प्रकाशित भी किया गया हैं। इस प्रकार श्री सारंग ने पत्ते का संग्रहण तो किया ही नहीं हैं, अपितु पत्तों का संग्रहण करना असत्य रूप से दर्शाया भी हैं। इस प्रकार जहां एक ओर वे सदस्यता के पात्र नहीं हैं, वहीं दूसरी ओर वह कार्य नहीं करने के बावजूद संघ से पारिश्रामिक प्राप्त कर, अवैध लाभ प्राप्त करने के उत्तरदायी हैं। दिनांक 4/1/09 की स्टोरी में यह लेख किया है कि श्री विश्वास सारंग के पिता और पत्नी वनोपज संघ के सदस्य नहीं अपितु बीमाधारी हैं। तथ्य यह है कि तेन्दूपत्ता संग्रहण कर, पत्ता जमा करने के बाद ही वनोपज संघ, संग्राहक एवं उसके परिवार का बीमा करता हैं। श्री कैलाश सारंग और श्रीमती रूमा सांरग के नाम इन बीमाधारकों की सूची में दर्ज हैं। केन्द्र शासन की जनश्री जीवन बीमा योजना, जिसमें वन संग्राहकों को सामूहिक जीवन बीमा का प्रीमीयम केन्द्र एवं राज्य शासन द्वारा प्रतिवर्ष जीवन बीमा निगम को अदा किया जाता हैं, की बीमा सूची में नाम होने का उद्देश्य भी यही है कि गरीब वनोपज संग्राहक को दुघर्टना एवं आकस्मिक मृत्यु की दशा में, कुछ आर्थिक भरपाई की जा सके। इसी कारण किसी करोड़पति उत्पादक को सामूहिक जीवन बीमा योजना में शामिल नहीं किया जाता।
अन्त में दि0 4/1/09 की कहानी में यह लेख किया गया है कि जो अंगूठे का निशान विश्वास सारंग का बताया गया है वह उनका नहीं है बल्कि उनके अधिकृत मदनलाल का हैं। इसी के चलते पंजी पर उनके नाम के आगे किसी अन्य व्यक्ति के अंगूठे का निशान है। मस्टर रोल नियमों के तहत किसी भी विभाग में, कोई अन्य व्यक्ति, किसी से अधिकार प्राप्त कर, अपने हस्ताक्षर अथवा अंगूठा लगाकर राशि प्राप्त नहीं कर सकता। नियमों के अनुसार पारिश्रामिक प्राप्त करने वाला व्यक्ति यदि पारिश्रामिक प्राप्त करने नहीं आता है तो उसे अगले भुगतान के लिए रोक लिया जाता हैं। वनोपज संघ द्वारा जारी किया गया कार्ड, जो इसी रिर्पोट के साथ प्रकाशित किया गया है, के बिन्दु क्रमांक-4 के अनुसार सप्ताह के अन्त में संग्रहण का योग निकालकर भुगतान यथासम्भव मुखिया की पत्नी को ही दिये जाने के निर्देश हैं। अतः श्री सारंग का यह कहना कि उनके द्वारा अधिकृत व्यक्ति ने अंगूठा लगाकर भुगतान प्राप्त किया हैं, न तो शासन के भुगतान सम्बन्धी नियमों के अनुरूप है न ही मध्यप्रदेश वनोपज संघ के नियमों के अनुरूप। अपितु इसके विपरीत उनका यह कथन यही सिद्ध करता है कि उन्होंने मदनलाल को अधिकृत कर 600 गड्डी का भुगतान केवल 270/- रुपये प्राप्त किया है, जिससे उनकी जीवीकोपार्जन में उन्हें अत्यन्त सुविधा हुई हैं।
अब निर्णय पाठक को लेना है।
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यह आलेख यहां देने की कथा
यह समूची ब्लाग विधा से अपेक्षा का ही नहीं, ब्लाग विधा की प्रभावोत्पादकता और इसकी सामाजिक उपयोगिता के प्रति जन-विश्वास का भी प्रमाण-पत्र है।
यह आलेख मुझे परसों, शनिवार को डाक से मिला था। पहली नजर में तो मैं समझ नहीं पाया कि यह मुझे क्यों भेजा गया है। किन्तु अगले ही क्षण पूरी बात ‘फ्लेश बेक’ की तरह मेरी आँखों के सामने से गुजर गई।
दिनांक 8 नवम्बर 2008को मैंने समाचार न छपने का समाचार शीर्षक वाली पोस्ट लिखी थी। जिसे सरिता अरगरे ने 9 नवम्बर को 'करोडपति बीडी मजदूर का राजनीतिक सफर' (http://sareetha.blogspot.com/2008/11/blog-post_09.html) शीर्षक पोस्ट से सहारा दिया था। उसक बाद मैं तो इस मामले को भूल ही गया था क्योंकि इसे याद रखने का कोई कारण मेरे पास नहीं था।
किन्तु अचानक ही दो जनवरी को मेरे गुरु श्री रवि रतलामी ने ई-मेल सन्देश दिया कि भोपाल से प्रकाशित हो रहे ‘डीबी स्टार’ ने अनेक अभिलेखों और तथ्यों सहित, विश्वास सारंग पर केन्द्रित समाचार को 'मुखपृष्ठ कथा' के रूप में छापा है जिसमें मेरी पोस्ट के कई तथ्य समावेशित किए गए हैं। सूचना मेरे लिए उत्साहवर्ध्दक और रोमांचक थी। मैं ने रविजी से फोन पर बात की। वे प्रसन्न थे और मेरी पोस्ट को समाचार की भूमिका के रूप में लेकर मुझे बधाइयाँ दे रहे थे।किन्तु आठ जनवरी को सरिता अरगरे की पोस्ट 'या इलाही ये माजरा क्या है........'(http://sareetha.blogspot.com/2009/01/blog-post_08.html)ने
चौंका दिया। पोस्ट पढ़कर तय कर पाना मुश्िकल हो रहा था कि इसे पत्रकारिता की विवशता माना जाए या विफलता माना जाए या फिर व्यावसायिकता के समक्ष पत्रकारिता का समर्पण?
और परसों मुझे यह आलेख मिला। पूरा पढ़ने के बाद जी किया कि इसे अपने ब्लाग पर ही दूँ। किन्तु 'विवेक' ने चेताया कि इस पर पहला नैतिक अधिकार सरिताजी का बनता है। सो, ई-मेल के जरिए उन्हें भेजा। उनका उत्तर मिला कि तकनीकी कारणों से वे उसे पढ़ ही नहीं पा रही हैं। यह स्वीकार करने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि उनके इस उत्तर से मुझे प्रसन्नता ही हुई - अब इसे मैं अपने ब्लाग पर दे सकूँगा।
सो, मुझे प्राप्त लेख अविकल रूप से यहाँ प्रस्तुत है। मुझे इसकी विषय वस्तु से कोई सरोकार नहीं है। यह सच है अथवा नहीं, यह चिन्ता भी मैं नहीं कर रहा हूँ। मैं तो मात्र इस भावना के अधीन इसे यहाँ दे रहा हूँ कि मीडीया से निराश लोग अब ‘ब्लाग जगत’ को आशा, अपेक्षा और विश्वास की नजरों से देखने लगे हैं। उन्हें लगने लगा है कि ‘ब्लाग जगत’ उनकी ‘अनसुनी’ को जगजाहिर करने मे उनकी सहायता कर सकता है।
आलेख से तीन बातें मुझे साफ-साफ अनुभव हो रही हैं। पहली तो यह कि इसका लेखक न केवल कुशल पत्रकार है अपितु इस समाचार कथा से सम्बन्धित तमाम तथ्य और अभिलेख उसके पास हैं। दूसरी बात यह कि मुझे भेजने से पहले यह आलेख डीबी स्टार को अवश्य ही पहुँचाया गया होगा और वहाँ से समुचित कार्रवाई नहीं हुई होगी। और तीसरी तथा अन्तिम बात यह कि यह आलेख और लोगों को भी भेजा गया होगा क्योंकि मुझे इसकी फोटो प्रति मिली है।
यहाँ प्रस्तुत आलेख को आप पढ़ें या न पढें, उससे सहमत हों या असहमत, इस सबके परे जाकर, सबसे पहले समूचे ब्लाग जगत को मेरी ओर से बधाइयाँ-ब्लाग जगत अब ‘जनापेक्षा’ का माध्यम बनने की दिशा में चल पड़ा है।
हाँ, आप सबको यह जानकर अच्छा लगेगा कि यह आलेख मैं कल ही डीबी स्टार, भोपाल के सम्पादकजी को ई-मेल से भेज कर सूचित कर चुका हूँ मैं इसे अपने ब्लाग पर दे रहा हूँ।
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