सूर्योपासनार्थ भास्कर-स्तवन
यह संग्रह श्री वीरेन्द्र मिश्र को समर्पित किया गया है।
सूर्योपासनार्थ भास्कर-स्तवन
ओऽम् भास्कराय नमः
तपन! तापन!! हे महेश्वर!!!
लोकसाक्षी! हे विकर्तन!!
लोकचक्षु! गभस्तिहस्त!!
त्रिलोकेश! हे विवस्वान!
मार्तण्ड! भास्कर!! रवि!!! ब्रह्मा!!!!
कर्त्ता! हर्त्ता!! लोकप्रकाशक!!!
सप्ताश्ववाहन! सर्वदेव!!
हे तमिस्त्रहा! शुचि!! हे श्रीमान्!!!
मैं नमस्कार में नत-विनीत
दो, कोटि किरण का दिव्यदान
हे त्रिलोकेश! हे विवस्वान!!
ओऽम् भास्कराय नमः!!!
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टिप्पणी -
(1) भगवान भुवन भास्कर के ये 21 नाम ‘गुप्त नाम माला’ के रूप में जाने जाते हैं। स्वयम् ब्रह्मा ने ये नाम सूर्यदेव को दिये थे।
(2) मुझे ये नाम रतलाम (मध्यप्रदेश) के एक साहित्यकार मित्र श्री नन्दलाल उपाध्याय ‘अतुल विश्वास’ से प्राप्त हुए हैं। मैंने केवल छन्दोबद्ध किए हैं।
(3) सूर्याेपासकों के लिये यह छन्द मन्त्र-माला का काम देता है।
(4) जिन संज्ञाओं के आगे ‘सम्बोधन चिन्ह’ (!) लगे हैं वे ही इस नामावली के मुक्तामणि हैं।
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‘मन ही मन’ की दूसरी कविता ‘मुझसे यह नहीं होगा’ यहाँ पढ़िए।
मन ही मन (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पड़ाव प्रकाशन
46-एल.आय.जी. नेहरू नगर, भोपाल-462003
संस्करण - नवम्बर 1997
मूल्य - 40 रुपये
आवरण - कमरूद्दीन बरतर
अक्षर रचना - लखनसिंह, भोपाल
मुद्रक - मल्टी ग्राफिक्स, भोपाल
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यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है।
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती।
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।